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“वॉशरूम के लिए गुहार लगाई, तो हमें अपमानित किया गया”

विजी पालिथोडी केरल के कोझीकोड की कार्यकर्ता बनी एक दर्जी हैं, जो कार्यस्थलों पर महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ रही हैं। विडंबना यह है कि उनके पिता द्वारा किए गए उत्पीड़न ने ही उनमें सक्रिय कार्यकर्ता की चिंगारी जलाई। प्रस्तुत है उनकी कहानी उन्हीं के शब्दों में।

मेरे पिता एक ड्राइवर थे। वह अपनी कमाई का ज्यादातर हिस्सा मौज-मस्ती पर खर्च करते थे। मेरी माँ एक नौकरानी थी। वह हमेशा काम करती रहती थी। फिर भी मेरे पिता उनके साथ दुर्व्यवहार करते थे।

उनका मेरी माँ को पीटना मुझे दुखी करता था।

फिर भी, अधिकारों और समानता को लेकर मैं अपने पिता की वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थी। इसलिए मैंने उनके खिलाफ आवाज उठाई। लेकिन यह व्यर्थ था।

लेकिन मेरे अपने घर में उनके उत्पीड़न और अन्याय ने मुझमें एक योद्धा को जगा दिया।

अपनी स्कूली शिक्षा के बाद, मैंने एक स्थानीय नक्सली नेता के साथ मिलकर एक महिला अधिकार समूह का गठन किया। हमने कोझीकोड के सबसे व्यस्त व्यावसायिक क्षेत्र में सिलाई की एक छोटी इकाई शुरू की। सबने हमारा मजाक उड़ाया।

धीरे-धीरे, आर्थिक जिम्मेदारियों के कारण सभी महिलाएं छोड़कर चली गईं। मैंने अकेले संघर्ष करती रही। मुझे गर्व है कि मैं अभी भी वह दुकान चलाती हूँ।

वर्ष 1998 में गरीबी उन्मूलन और महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम, कुदुम्बश्री के शुरू होने के बाद, गृहणियाँ कमाने वाली बन गईं।

2000 के दशक के मध्य तक, दुकानों के मालिक पुरुषों के जगह “अधिक कुशल” महिलाओं को रखने लगे, जिन्हें कम पैसा दिया जा सकता था।

बावजूद इसके कि सैकड़ों महिलाएँ 12 घंटे तक काम करती थी, उनके लिए शौचालय नहीं थे। क्योंकि उन्हें निवृत्ति के लिए मजबूरन इमारतों के पीछे जाना पड़ता था, इसलिए वे एक कप पानी भी पीने से हिचकती थीं। मासिक धर्म के दौरान उनकी परेशानी दुगनी हो जाती थी।

जब हमने वॉशरूम की मांग की, तो हमें अपमान और धमकियों का सामना करना पड़ा। “कल से तुम्हारे लिए कोई काम नहीं” और “पेशाब करने के लिए एक पर्दे का इस्तेमाल कर लो” जैसे शब्दों से हमें चुप करा दिया जाता। कइयों को मूत्र-प्रणाली संक्रमण और दूसरे स्त्री रोग संबंधी समस्याएँ हो गई।

इसलिए इन मानवाधिकारों के उल्लंघन पर काम करने के लिए, मैंने 2009 में “पेनकुट्टू” शुरू किया, जिसका अर्थ है महिलाएँ – एक दूसरे के लिए। अब मुझे विजी “पेनकुट्टू” पुकारा जाता है।

क्योंकि ट्रेड यूनियनों ने हमारी “मूर्खतापूर्ण जरूरतों” का समर्थन करने से इनकार कर दिया, तो बहुत संघर्ष के बाद, हमने 2014 में असंगठित मजदूरों के लिए ‘असंघदिथा मेघला थोझिलाली यूनियन (AMTU) का गठन किया।

मेरी छोटी दुकान AMTU कार्यालय के रूप में भी इस्तेमाल होती थी। हालांकि AMTU में पुरुष सदस्य हैं, लेकिन हम महिलाओं के अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। दुकान मालिकों ने हमें दबाने की बहुत कोशिश की। लेकिन न्याय की जीत हुई।

अथक प्रदर्शनों और हड़तालों के बाद, सरकार ने 2018 में केरल की ‘दुकान और वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम (1960)’ में संशोधन किया, जिसमें महिला कामगारों के लिए शौचालय की सुविधा अनिवार्य कर दी गई। स्थानीय प्रशासन ने कोझिकोड में सार्वजनिक शौचालय बनवाए।

दुकानों में, कामगारों, विशेष रूप से महिलाओं को ग्राहकों के न होने पर भी बैठने की अनुमति नहीं है। हमारे विरोध करने के बाद, सीटें सुनिश्चित करने के लिए एक संशोधित कानून बनाया। अब हम समान वेतन और रोजगार सुरक्षा के लिए लड़ रहे हैं।

मेरे किराए के छोटे से घर में स्मृति चिन्ह और ट्राफियों के ढेर को देखकर, ‘विंग्स’ नामक एक स्थानीय संगठन ने उदार सार्वजनिक योगदान के माध्यम से, मुझे इस साल के शुरू में एक घर उपहार में दिया।

ओह, हाँ, मेरे घर में लैंगिक समानता है।

मेरे पति के. सुरेश भी एक दर्जी हैं, लेकिन वह नाश्ता बनाते हैं, जबकि मैं दोपहर का खाना बनाती हूँ। मेरा बेटा अनंतू, जो इंजीनियरिंग का छात्र है, सारी सफाई करता है। कॉलेज जाने वाली मेरी बेटी अमृता, धुलाई के काम करती है।

जब मुझे 2018 में बीबीसी की “100 प्रभावशाली और प्रेरक महिलाओं” में से एक के रूप में चुना गया, तो एक व्यापारी संघ द्वारा सम्मान के दौरान मैंने अपना भाषण इस तरह शुरू किया – “कृपया मुझे सम्मानित करने की बजाय, कामगारों के लिए बुनियादी सुविधाएं प्रदान करें।” 

जब मुझे अपने अनुभव साझा करने के लिए आमंत्रित किया जाता है, तो मैं अपने को मजबूत और जिम्मेदार महसूस करती हूँ। आखिर मैं बुनियादी अधिकारों के लिए लड़ रही हूँ।

कोझीकोड स्थित पत्रकार, चित्रा अजित की प्रस्तुति।

छायाकार – संतोष, आर.वी. साथी।