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“मैंने लोगों का आशीर्वाद कमाने का फैसला किया”

यह एक जादुई, जीवन बदलने वाला क्षण था, जब एक अजनबी के प्रति उनके पति की उदारता और उनके बीमार बच्चे का इलाज़ एक ही समय पर हो गए। सपना उपाध्याय ने कैंसर से पीड़ित वंचित बच्चों की चिकित्सा जरूरतों को पूरा करने का फैसला किया और उनके परिवारों की सहायता के लिए आजीविका कार्यक्रम शुरू किया। यहां प्रस्तुत है उनके सफर की कहानी, उनकी जुबानी।

वह मेरे जीवन की सबसे काली एक ऐसी रात थी, जब मेरी आत्मा एक अज्ञात डर से कांप रही थी। मैं और मेरे पति लखनऊ के केजीएमयू अस्पताल के बच्चों के विभाग के आईसीयू के बाहर बेसुध खड़े थे।

आईसीयू के अंदर, डॉक्टर मेरी पांच साल की बेटी के तेज बुखार को नियंत्रित करने के लिए जूझ रहे थे।

अचानक मैंने गलियारे के एक अंधेरे कोने में धीमी सिसकियों की आवाज़ सुनी।

यह एक माँ थी, जो अपने बीमार बेटे को घर वापस ले जा रही थी, क्योंकि वह सर्जरी के लिए 16,000 रुपये का खर्च नहीं उठा सकती थी।

मेरे पति ने अपनी इच्छा से पैसे का भुगतान कर दिया।

ठीक उसी समय, जैसे जादू से हुआ हो, मेरी बेटी स्वर्णिमा ठीक होने लगी।

आज वह 24 साल की है, स्वस्थ है और पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही है।

इस घटना ने मेरी जिंदगी बदल दी। मैंने तय किया कि मैं सिर्फ लोगों का आशीर्वाद ही कमाऊँगी।

मैंने सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले सभी वंचित बच्चों को दवा, भोजन और आर्थिक सहायता देना शुरू कर दिया।

जल्द ही मैंने देखा कि उनमें से कई कैंसर के इलाज के लिए आ रहे थे। बहुत से गांवों से आ रहे थे और उन्हें अस्पताल के मैदान में डेरा डालना पड़ता था।

कैंसर का मतलब था, लंबा इलाज और परिवार पर एक बड़ा आर्थिक बोझ। इसलिए मैंने कैंसर पीड़ित बच्चों और उनके परिवारों के लिए काम करने का संकल्प लिया।

शुरू में मेरे कारोबारी पति ने मेरे काम के लिए पैसा दिया। फिर दोस्त और रिश्तेदार भी सहयोग देने लगे। ज्यादा लोगों की मदद के लिए मैंने, 2002 में ‘ईश्वर चाइल्ड वेलफेयर फाउंडेशन’ की शुरुआत की।

हम लखनऊ के दो सरकारी अस्पतालों के वंचित बच्चों को, 1,200 गर्म पका हुआ भोजन दिन में तीन बार प्रदान करते हैं। हम साप्ताहिक रूप से उन माताओं को सूखा राशन भी बांटते हैं, जिनके बच्चे भर्ती रहते हैं।

छह साल पहले मैंने एक हस्तकला ईकाई भी शुरू की। हम बाल कैंसर रोगियों की माताओं को आभूषण और दूसरी शिल्प वस्तुओं को बनाने और बेचने के लिए शामिल करते हैं।

जब मुझे पता चला कि महामारी  के समय इनमें से कई बच्चों के पिता अपनी आजीविका खो चुके हैं, तो हमने मसाले पीस कर पाउडर बनाने की एक “मसाला इकाई” शुरू की। यह अच्छी चल रही है, इसलिए इससे परिवारों को कमाने में मदद मिल रही है।

मैं हर साल कैंसर से ठीक हुई पांच लड़कियों की शादी कराने में भी मदद करती हूँ।

फाउंडेशन की संसाधनों की जरूरत को समझते हुए, मेरी बड़ी बेटी, जो एक इंजीनियर है, ने हर महीने इसमें पैसा देना शुरू कर दिया। यह मेरे लिए एक गर्व का अवसर था।

जब मैं कैंसर से ठीक होने वालों के आस-पास होती हूँ, एक गहरे दर्द को झेलने के बाद उन्हें मुस्कुराते देखती हूँ, और उनके शैक्षणिक सपनों को पूरा करने में उनकी मदद कर पाने के कारण, मुझे जोशपूर्ण आनंद का अनुभव होता है।

मैं इन शुद्ध खुशियों का कोई सौदा नहीं करूंगी।

बेशक ऐसे दिन भी होते हैं, जब मैं बच्चों के दर्द के कारण निराश होकर, खुद को फंसा हुआ महसूस करती हूँ।

लेकिन जब मैं ठीक हुए प्रसन्न लोगों को याद करती हूँ, तो मैं एक नई ऊर्जा के साथ अपने पैरों पर खड़ी हो जाती हूँ। उनकी बीमारी के समय उनकी और उनके परिवारों की ज़रूरतों को पूरा करना मेरे लिए बहुत मायने रखता है और मैं विश्राम नहीं कर सकती।

आखिरकार, मैं यहां दूसरों का आशीर्वाद कमाने के लिए हूँ।

लखनऊ स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार, कुलसुम मुस्तफा द्वारा रिपोर्ट। छायाकार – मेहराज।