मिलिए सिमिलिपाल के युवा वन “संरक्षण सहायकों” से

वन विभाग में "संरक्षण सहायक" पद पर काम करने वाले युवाओं से मिलें, जो अवैध शिकार को रोकने, सिमिलिपाल नेशनल पार्क में अवैध लकड़ी की कटाई रोकने और पार्क संरक्षण के फायदों के बारे में प्रचार करने के लिए नियुक्त हैं।

हेमानंद धीर रोजाना सुबह 9 बजे सिमिलीपाल के जंगलों में घूमते हैं।

शाम 5 बजे तक लगभग 15 किलोमीटर के क्षेत्र में, ध्यान से और सतर्कतापूर्वक वह हर चीज नोट करते हैं, जैसे कि यहां एक नया रास्ता है या वहाँ एक गिरी हुई टहनी है।

वह सिमिलिपाल नेशनल पार्क के युवा पर्यावरण-योद्धाओं की टीम में से एक हैं, जिन्हें आधिकारिक तौर पर ‘सुरक्षा सहायक’ कहा जाता है। उन्हें अवैध शिकार, अवैध लकड़ी की कटाई और जंगल में आग के किसी भी संकेत पर कड़ी नजर रखने के लिए हर दिन जंगल में गश्त करने के लिए, आस-पास के गांवों से चुना जाता है।

सिमिलिपाल क्या है?

सिमिलिपाल ओडिशा के मयूरभंज जिले में एक राष्ट्रीय उद्यान और बाघ अभयारण्य है। अपने काले बाघों और शानदार प्राकृतिक दृश्यों के लिए प्रसिद्ध यह पार्क, 2,750 वर्ग किमी में फैला है। लेकिन इसे अवैध शिकार के खतरों का सामना करना पड़ता था।

अपने बेहतरीन प्राकृतिक दृश्यों वाला सिमिलिपाल नेशनल पार्क को कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ता था|
अपने बेहतरीन प्राकृतिक दृश्यों वाला सिमिलिपाल नेशनल पार्क को कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ता था (छायाकार – देबाशीष मिश्रा)

जब तक कि सुरक्षा सहायकों ने पार्क में गश्त शुरू नहीं की थी। उन्होंने अवैध शिकार की घटनाओं को कम करने में मदद की है और सरकार को बाघों पर नज़र रखने में मदद की है। 

वन संरक्षण में जुटी ‘ग्रीन ब्रिगेड’

वन संरक्षण के लिए स्थानीय युवाओं को शामिल करना 1992 में शुरू हुआ, जब स्थानीय गैर-लाभकारी संगठन ‘संग्राम’ के संस्थापक, वनू मित्र आचार्य ने ‘ग्रीन ब्रिगेड’ की शुरुआत की।

जंगल से साइकिलों पर ले जाई जा रही अवैध लकड़ी से चिंतित, आचार्य ने इस परिपाटी को ख़त्म करने का संकल्प लिया। उन्होंने स्थानीय युवाओं से मुलाकात करके इस पर चर्चा की कि समस्या से कैसे निपटा जाए और इस तरह से ब्रिगेड की शुरुआत हुई।

आचार्य से प्रेरित होकर, रवींद्र महंत 25 साल से ज्यादा समय पहले ब्रिगेड में शामिल हुए और अभी भी ब्रिगेड के सक्रिय सदस्य हैं।

स्वैच्छिक ग्रीन ब्रिगेड सदस्यों के रूप में शुरू करके, स्थानीय युवा वन पर कड़ी नजर रखते हुए संरक्षण सहायक बन गए हैं|
स्वैच्छिक ग्रीन ब्रिगेड सदस्यों के रूप में शुरू करके, स्थानीय युवा वन पर कड़ी नजर रखते हुए संरक्षण सहायक बन गए हैं (फोटो – वन विभाग के सौजन्य से)

वह याद करते हैं – “90 के दशक की शुरुआत में, ग्रामीण बाजारों में अवैध लकड़ी खुले तौर पर बेची जाती थी।”

सिमिलिपाल जैसे उद्यानों की सुरक्षा में ब्रिगेड की संगठित भूमिका

उतार-चढ़ाव के बावजूद ग्रीन ब्रिगेड जंगलों में गश्त करती रही। युवा नि:शुल्क काम करते थे।

आचार्य कहते हैं – “मैंने महसूस किया कि उनके काम को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इसलिए मैंने वन विभाग से उन्हें काम पर रखने का अनुरोध किया।”

शुरु में वन विभाग ने उन्हें खाना और 15 रुपये प्रतिदिन का भुगतान किया, जिसे बाद में बढ़ाकर 25 रुपये कर दिया गया।

लेकिन अब धीर जैसे सुरक्षा सहायकों को प्रतिदिन 315 रुपये मिलते हैं।

मयूरभंज के क्षेत्रीय मुख्य वन संरक्षक, योगजयानंद कहते हैं – “सुरक्षा सहायकों को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और राज्य सरकार द्वारा संयुक्त रूप से भुगतान किया जाता है।”

वन विभाग के पास अब कुल 380 सुरक्षा सहायक हैं।

सुरक्षा सहायकों की बदौलत अवैध शिकार में कमी

सिमिलिपाल में शिकार का एक लंबा इतिहास है। क्षेत्र के ग्रामीण, और कभी-कभी बाहरी लोग भी, हिरण, चीतल और जंगली सूअर जैसे चारा खाने वाले जानवरों का शिकार करते थे।

लेकिन धीर और उनके सहयोगी अर्जुन मोहकुद के अनुसार उनके गश्त और जागरूकता कार्यक्रमों की बदौलत अवैध शिकार में कमी आई है।

जागरूकता अभियान और निगरानी के कारण जानवरों और पक्षियों के बड़े पैमाने पर शिकार में भारी कमी आई है|
जागरूकता अभियान और निगरानी के कारण जानवरों और पक्षियों के बड़े पैमाने पर शिकार में भारी कमी आई है (छायाकार – सम्राट गौड़ा, IFS)

वन विभाग गश्त के सकारात्मक परिणाम के सबूत के रूप में, पिछले कुछ वर्षों में दर्ज किए गए अवैध शिकार और अवैध कटाई के मामलों की संख्या का हवाला देता है।

टाइगर रिजर्व में 209 टीम हैं, जिनमें प्रत्येक में एक वन कर्मचारी और दो या तीन सुरक्षा सहायक हैं, जो लगभग 15 वर्ग किमी में गश्त लगाते हैं।

बाघों की निगरानी टेक्नोलॉजी की मदद से

निगरानी में टेक्नोलॉजी भी मदद करती है। सुरक्षा सहायक 2017 से बाघों के लिए निगरानी प्रणाली, ‘गहन सुरक्षा और पारिस्थितिक स्थिति (M-STrIPES) का उपयोग कर रहे हैं।

सहायक एक ऐप में वनस्पतियों, जीवों, उनके रहने के स्थानों में गड़बड़ी, देखे गए जानवरों की तस्वीरें और गश्त की दूरी के बारे में जानकारी डालते हैं। तब NTCA इस कीमती सूचना का विश्लेषण करता है।

योगजयानंद कहते हैं – “गश्ती की गहनता के मामले में सिमिलिपाल भारत के बाघ अभयारण्यों में दूसरे नंबर पर है। इसके सकारात्मक परिणाम मिले हैं। यहां बाघों का शिकार नहीं हो रहा है।”

वर्ष 2018 की ‘बाघ स्थिति रिपोर्ट’ के अनुसार, अभयारण्य के भीतर आठ वयस्क बाघों की पहचान की गई थी।

वार्षिक सामूहिक शिकार पार्टी को खत्म करना

भूमि और जानवरों की नाजुकता के बारे में जागरूकता अभियान चलाने का भी सिमिलिपाल पर बड़ा प्रभाव पड़ रहा है।

उदाहरण के लिए, क्षेत्र की जनजातियाँ हर वर्ष अप्रैल में एक वार्षिक सामूहिक शिकार पार्टी आयोजित करती थीं।

हजारों आदिवासी धनुष और तीर लेकर खाने के लिए पक्षियों और छोटे जानवरों का शिकार करने के लिए जंगल में घुसते थे। रिजर्व के अंदर के 65 गांवों के कारण, जैव विविधता को नुकसान होता था।

योगजयानंद का कहना है कि जागरूकता अभियान के कारण, पिछले पांच वर्षों में यह शिकार काफी कम हो गया है।

लेकिन सिमिलिपाल में केवल शिकार ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली समस्या नहीं है।

जंगल की आग के खतरे को नियंत्रित करना

जहां इंसानों और जानवरों के बीच संघर्ष अब कम हो गया है, वहीं जंगल की आग एक गंभीर खतरा पैदा कर रही है।

‘संग्राम’ से जुड़ी एक सामाजिक कार्यकर्ता, संजुक्ता बसु का कहना था कि आग ज्यादातर मार्च-अप्रैल के महुआ फूल संग्रह के मौसम में लगती है, क्योंकि फूल इकट्ठा करने वाले छोटे फूलों तक आसानी से पहुँच के लिए नीचे आग लगा देते हैं।

सुरक्षा सहायक, जो फरवरी से जून तक आग को रोकने में मदद करते हैं, और ग्रीन ब्रिगेड, दोनों इस बारे में समुदायों को संवेदनशील बनाने का काम करते हैं कि आग से कैसे बचाव किया जाए और चिंगारी को कैसे रोका जाए।

वन की आग पर भी सुरक्षा सहायकों और वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा निगरानी और नियंत्रण किया जा रहा है|
वन की आग पर भी सुरक्षा सहायकों और वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा निगरानी और नियंत्रण किया जा रहा है (छायाकार – देबाशीष मिश्रा)

सिमिलिपाल साल के पेड़ों से भरा है। उनके गिरे हुए सूखे पत्तों, जो ज्वलनशील हैं, का कभी-कभी दो फीट ऊंचा ढेर लग सकता है।

योगजयानंद कहते हैं – “इसके अलावा, सिमिलिपाल के बाहरी इलाकों में रहने वाले ज्यादातर ग्रामीण सरीसृप, कीड़े और चीचड़ों को दूर रखने के लिए आग जलाते हैं। कभी-कभी वे आसान आवाजाही के लिए साफ़ फुटपाथ बनाने के लिए झाड़ियों को जलाते हैं।”

लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण जंगल की आग पर काबू पाना मुश्किल हो रहा है।

उन्होंने कहा – “यहां जंगल की आग का सबसे बड़ा कारण यह है कि गर्मियों की बारिश न होने और लंबे समय तक सूखा रहने के कारण क्षेत्रीय जलवायु बदल रही है।”

आग का मौसम नजदीक आने के साथ ही भरोसेमंद सुरक्षा सहायक तैयार हैं।

एक बार फिर वे अपनी मदद के लिए, टेक्नोलॉजी के प्रति अपने लगाव और योग्यता का उपयोग करते हैं।

योगजयानंद कहते हैं – “हमारे पास आग की आशंका वाले क्षेत्रों की जानकारी है। हम संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करते हैं और अतिरिक्त आग की निगरानी करने वालों को तैनात करते हैं।”

विकास संबंधी परियोजनाएं भी प्राकृतिक सुंदरता के क्षेत्रों को खा सकती हैं।

लेकिन ऐसे समय में, जब विकास परियोजनाओं के कारण देश भर के बहुत से क्षेत्रों में वनों की कटाई बड़े पैमाने पर हो रही है, सिमिलिपाल का संरक्षण के मामले में प्रदर्शन बेहतर है।

और इसमें इसके युवा पर्यावरण-योद्धाओं के समर्पण और देखभाल का योगदान कम नहीं है, जो क्षेत्र के नेता और कार्यवाहक के रूप में विकसित हो रहे हैं।

दीपन्विता गीता नियोगी नई दिल्ली स्थित पत्रकार हैं।