गाय के मूत्राशय से

जैसा विकास अण्वेष फाउंडेशन के संजीव फणसळकर ने करीब से देखा, गाय के मल मूत्र के अक्लमंदी से इस्तेमाल पर आधारित प्राकृतिक खेती, आंध्र प्रदेश में जीवन बदल रही है।

आंध्र प्रदेश की 38-वर्षीय के. उषा रानी रेड्डी कॉलेज में पढ़ने वाले दो होनहार युवा छात्रों की मां हैं। जब वह मुश्किल से 17 साल की थी, तब उसके माता-पिता ने उसकी शादी कर दी थी। लेकिन दो साल बाद, अपने दो बच्चों के जन्म के तुरंत बाद, उनके पति का एक दुर्घटना में निधन हो गया। क्षुब्ध उषा गुंटूर जिले के मंगलगिरि मंडल के नुआथोक्की गांव में अपने माता-पिता के साथ रहने चली गई।

उनकी मां, राज्य के ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम के अंतर्गत बने स्थानीय महिला स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की सदस्य थीं, जिसमें वह भी शामिल हो गई। जल्द ही, अपनी माँ के प्रति गहरी कृतज्ञता महसूस करते हुए, वह अपने माता-पिता के खेतों के प्रबंधन के लिए कड़ी मेहनत कर रही थी।

उषा कहती हैं – “मेरी माँ मेरी भगवान है। उसने मुझे बुरे समय से निकलने के लिए पूरी ताकत दी।”

शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) कैसे काम करती है?

लगभग छह साल पहले, उषा को प्राकृतिक खेती की तकनीकों और प्रक्रियाओं में प्रशिक्षित किया गया था, जिसे तब संगठन इसे “शून्य बजट प्राकृतिक खेती” (ZBNF) कहता था। उसे अपने खेतों में इन तरीकों को अपनाने और साथ ही दूसरे किसानों की मदद करने के लिए, बढ़ावा देने वाले संगठन उषा को 50,000 रुपये का अनुदान मिला। उसने अपनी एसएचजी से एक लाख और उधार लिए। उसने अपनी तीन “देसी” गायों के लिए, थोड़ा ढलानदार, कंक्रीट के फर्श का और निचले सिरे पर एक नाली वाला एक गाय शेड बनाया।

जब गाय पेशाब करती, तो पेशाब ढलान से नीचे और नाली से होता हुआ सीमेंट किए हुए एक गड्ढे में इकठ्ठा हो जाता। गोबर फर्श पर गिर जाता, जिसे उठाया जा सकता था।

उषा को कई उत्पाद तैयार करने में प्रशिक्षित किया गया था: अमृत पौधों के पोषक तत्व हैं और अस्त्र पौधों की सुरक्षा सामग्री हैं। इन अस्त्रों के लिए कई पेड़-पौधों की पत्तियों की जरूरत होती है, जैसे पपीता, अमरूद, धतूरा, करंज (पोंगामिया), आक (कैलोट्रोपिस) और नीम, जो उषा के आसपास के इलाके में प्रचुर मात्रा में हैं।

प्रोसेसिंग में इस्तेमाल होने वाले विभिन्न ड्राम और उपकरण दिखाते हुए, उन्होंने मुझे इन पदार्थों को बनाने की प्रक्रिया के बारे में बताया।

शून्य बजट प्राकृतिक खेती: प्रक्रिया

उन्होंने बताया – “जो किसान अपनी सामग्री खुद बनाना चाहते हैं, वे गड्ढे से गोमूत्र मुफ्त में ले सकते हैं, लेकिन उन्हें मुझे ठोस पदार्थ के लिए प्रति किलोग्राम या तरल पदार्थ के लिए प्रति लीटर के हिसाब से, एक निश्चित कीमत चुकानी होती है।”

उषा रानी के अनुसार, देसी गायों के मल मूत्र प्राकृतिक खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं|
उषा रानी के अनुसार, देसी गायों के मल मूत्र प्राकृतिक खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं (छायाकार – मल्लेश्वरी, ‘रायथु साधिका संस्था’)

उन्होंने ठोस खाद के तैयार घन-जीवामृत के एक बड़े ढेर की ओर इशारा किया, और मुझे बताया कि इससे आसानी से 50 किलो के 400 बैग भर सकते हैं, यानि ये 20 मीट्रिक टन होगा। उन्होंने मुझे प्राकृतिक कृषि पद्धति से अच्छी फसल उगाने के लिए, जरूरी पदार्थों की मात्रा के बारे में बताया।

उन्होंने कहा – “स्पष्ट रूप से कहूँ तो, मेरे अपने पिता रासायनिक खेती (सिंथेटिक खाद और रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से होने वाली पारम्परिक खेती) छोड़ कर प्राकृतिक खेती अपनाने के बहुत खिलाफ थे। उन्होंने मुझे इस तरीके से सिर्फ किचन गार्डन करने की इजाजत दी थी। लेकिन जब उन्होंने परिणाम देखा, तो वह हमारे खेतों को इस पद्धति से करने तैयार हो गए और अब वह प्राकृतिक खेती पद्धति के एक राजदूत हैं।”

शरारती अंदाज में मैंने उनसे पूछा कि वह गायों को दूध के लिए रखती हैं या पेशाब के लिए। वह इस मजाक को समझ लिया, लेकिन शांत गंभीरता से उन्होंने कहा कि उनके लिए जानवरों का मल मूत्र मायने रखता है, न कि दूध।

उन्होंने कहा – “दूध कारोबार के लिए संकर नस्लें पालना बेहतर है, लेकिन देसी गायों की तुलना में उनका पेशाब काफी कम असरदार होता है।”

मैं हैरान था और अब भी हूँ, लेकिन ऐसा लगता है कि उस बयान में कुछ दम है।

प्राकृतिक खेती की सामग्री की दुकान

उषा की लगन और कड़ी मेहनत ने संस्था को प्राकृतिक खेती सामग्री की दुकान खोलने में मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया। इस दुकान में बाँस और टिन शेड का एक काफी बड़ा अस्थायी ढांचा है, जहां वह सामग्री की प्रोसेसिंग करती है और साथ ही उन्हें स्टोर करने के लिए जगह मिलती है।

उषा ने कहा – “मेरे पास अब इस उद्यम में काम करने वाले छह व्यक्ति हैं। चार भाड़े के मजदूर हैं और दो मेरे परिवार के लोग हैं। मेरा एक महीने का वेतन का खर्च 50,000 रुपये है।”

इस जानकारी से काफी हैरान हूँ, मैंने व्यवसाय के कारोबार की जांच की।

शून्य बजट प्राकृतिक खेती से कुल बिक्री

उन्होंने पिछले वित्तीय वर्ष में 40 लाख रुपये का कारोबार किया, लेकिन उन्हें महामारी के प्रभाव को लेकर दुःख था।

उषा ने कहा – “COVID ने हमें काफी चोट पहुँचाई और हमारा कारोबार कम हो गया।”

इस साल बिक्री 50 लाख रुपये से ज्यादा हो सकती है। सारे खर्चे निकाल कर उन्हें इस काम से लगभग 10 लाख रुपये की कमाई होती है।

उषा रानी द्वारा गाय के मल मूत्र से बनाए गए कुछ उत्पाद, जैसे पौध पोषक तत्व और पौध संरक्षण सामग्री|
उषा रानी द्वारा गाय के मल मूत्र से बनाए गए कुछ उत्पाद, जैसे पौध पोषक तत्व और पौध संरक्षण सामग्री (छायाकार – लक्ष्मी, ‘रायथु साधिकारा संस्था’)

उषा यह बात समझाने की पूरी कोशिश कर रही थी कि वह मुनाफा कमाने के लिए यह काम नहीं कर रही थी।

वह कहती हैं – “मैं चाहती हूँ कि यहां का हर किसान प्राकृतिक खेती के तरीके को अपनाए। इससे सुनिश्चित होगा कि उन्हें स्वास्थ्यपरक भोजन मिले और उनकी मिट्टी समृद्ध और उत्पादक बनी रहे।”

स्थानीय स्वयंसेवी संगठन ने उषा को अपने खेत के साथ-साथ अपने पड़ोसियों के खेतों की उपज की प्रोसेसिंग करने के लिए प्रोत्साहित किया है। उनकी छिलका उतारने और पीसने के लिए एक छोटी प्रोसेसिंग ईकाई है और वह हल्दी पाउडर, मिर्च पाउडर, तीन या चार पारम्परिक किस्म के चावल के साथ-साथ कुछ दालें भी बेचती हैं।

वासवी दुर्गा – जैविक खाद्य उत्पादों का FSSAI-लाइसेंस प्राप्त ब्रांड

उन्होंने “वासवी दुर्गा” नाम का ब्रांड स्थापित किया है और प्राकृतिक खेती समुदाय के लिए अपनी सामग्री/उत्पाद की दुकान से खाद्य उत्पादों की बिक्री के लिए FSSAI लाइसेंस भी प्राप्त किया है।

उषा ने हमें अपना किचन गार्डन और अपना खेत दिखाया, जिस में उन्होंने धनिया लगाया था। खेत में मिट्टी का एक छोटा गड्ढा खोदा गया और उसमें से मिट्टी लेकर एक कटोरी में डाली गई, जिसमें केंचुए का एक छोटा ‘गिरोह’ घूम रहा था। केंचुओं की उपस्थिति और घनत्व मिट्टी के स्वास्थ्य का एक निश्चित द्योतक है। मिट्टी भी महीन होने के बावजूद काफी दानेदार थी।

जिस दिन हम वहां गए, वह उनका जन्मदिन भी था। उन्होंने हमें खाने के लिए शानदार उपहार दिए, जिनमें “प्राकृतिक रूप से उगाया” पपीता भी था।

उन्होंने बिलकुल एक बच्चे की तरह व्यक्त किया कि इस काम को करने और इस स्तर तक अपने उद्यम का निर्माण करने पर उनको कितना गर्व है। जैसे ही हम जाने के लिए तैयार हुए, ऊंचे कद का उनका 16 साल का छोटा बेटा एक दुपहिए पर एक बड़ा बैग लेकर आया।

उषा ने बताया – “मेरे बच्चे भी ग्राहकों तक सामान पहुँचाने या उनकी उपज लाने में मेरी मदद करते हैं।”

असल में ही गोमूत्र और गोबर पर आधारित प्राकृतिक खेती के तरीकों ने उषा के जीवन में शायद उससे कहीं ज्यादा सुधार किया है, जितना उनके गांव की कृषि को बदला होगा।

वास्तव में गाय के मूत्राशय से पूरे समुदाय का कल्याण हुआ है।

संजीव फणसळकर विकास अण्वेष फाउंडेशन, पुणे के निदेशक हैं। वह पहले ग्रामीण प्रबंधन आनंद संस्थान (IRMA) में प्रोफेसर थे। फणसळकर भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद के फेलो हैं।