साझा रसोई – केरल में क्या पक रहा है?

समय के साथ काम और प्रतिबद्धताओं की होड़ में, खाना पकाने का समय नहीं निकल पाता। जो दो दम्पत्तियों की जरूरत से शुरू हुआ, उससे पूरे केरल में "साझा रसोई" बन रही हैं।

साझा रसोई?

केरल की पहली साझा रसोई में रसोइया, सुन्दरन कहते हैं – “इसे एक रसोई के रूप में देखें, जहां आप एक बड़े परिवार के लिए खाना बना रहे हैं।”

यहाँ ‘परिवार’ का मतलब है, पड़ोस के परिवारों का एक समूह।

सुन्दरन ने आगे कहा – “यह एक नियमित खानपान सेवा की तरह नहीं है, क्योंकि वह एक व्यावसायिक व्यापार होता है।”

सुन्दरन जैसे घर में ही बने रसोइये, अपनी ही रसोई में उन बहुत सारे लोगों के लिए खाना बनाते हैं, जिनके पास खाना पकाने का समय नहीं होता।

‘अदुक्कला ओझीवाक्कू, अदुक्कला थोज़िलाक्कू’, रसोई छोड़ कर पैसे के लिए खाना बनाना – साझा रसोई चलाने वालों और भोजन प्राप्त करने वाले परिवारों, दोनों के लिए लाभ का सौदा है। और यह रुझान पूरे केरल में बढ़ रहा है।

केरल की साझा रसोई: यह सब कैसे शुरू हुआ

मलप्पुरम जिले के पोन्नानी में एक बैंक कर्मचारी, जरूरत के कारण अपना भोजन बनाने का जिम्मा किसी और को देना चाहते थे।

उनके दोस्त, वकील दंपत्ति कलीमुद्दीन और मजीदा भी चाहते थे कि कोई उनके लिए खाना बनाए।

घर का बना खाना घर-घर पहुंचाने से, परिवारों, खासकर महिलाओं का कीमती समय बच जाता है|
घर का बना खाना घर-घर पहुंचाने से, परिवारों, खासकर महिलाओं का कीमती समय बच जाता है (फोटो – मजीदा के सौजन्य से)

मजीदा कहती हैं – “केस फाइलों पर काम करना, घरेलु काम, बच्चे की देखभाल, खाना बनाना – इन सब कामों में समय लगता है। मेरे और घड़ी के बीच ये एक रोज की रस्साकशी थी।”

उनकी तलाश तब खत्म हुई, जब सुन्दरन उनके लिए खाना बनाने को तैयार हो गए।

केरल में साझा रसोई की अवधारणा

रमेशन और कलीमुद्दीन कई कारणों से अपना भोजन बनाने का काम किसी और को देना चाहते थे।

पहला, यह मिलना आसान नहीं है कि कोई व्यक्ति घर आए और खाना बनाए। यह महंगा भी है।

फिर कोई व्यक्ति तैयार हो भी जाए, तो भी उसे बहुत जल्दी आना होगा। क्योंकि सभी के काम या स्कूल जाने से पहले, नाश्ता और दोपहर का भोजन तैयार करना होगा।

एक ट्रेजरी अधिकारी, शिवदासन के. कहते हैं – “मेरी पत्नी को 40 किलोमीटर दूर अपने कार्यस्थल के लिए निकलने से पहले, खाना बनाने और बर्तन धोने के लिए, सुबह 3:30 बजे उठना पड़ता था। स्वास्थ्य कारणों से मैं कोई मदद नहीं पाता था।”

एक साझा रसोई में बनाया जा रहा नाश्ता|
एक साझा रसोई में बनाया जा रहा नाश्ता (फोटो – गिरिजा पार्वती के सौजन्य से)

घरेलु रसोइये का मतलब होगा कि उन्हें घर में प्रवेश देने के लिए जल्दी उठना। बर्तन साफ करने के लिए घरेलू मदद की तलाश भी मुश्किल काम है।

पका हुआ भोजन लाने का काम किसी को देना, सभी के लिए ज्यादा सुविधाजनक था।

सुगंध फैलती है

जब सुन्दरन ने 2020 में रमेशन और कलीमुद्दीन के लिए खाना बनाना शुरू किया, तो उनकी रसोई लोकप्रिय हो गई।

इसी तरह की स्थिति में कई लोग थे, जो काम करते थे और उनके पास समय की कमी थी। इनमें बुजुर्ग और बीमार लोग भी थे, जो खाना नहीं बना सकते थे।

साझा रसोई मॉडल इतना सुविधाजनक था कि कई लोगों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई।

साझा रसोई की सुविधा फैल रही है, जिससे पूरे केरल में इसी तरह की कई इकाइयां तैयार हो रही हैं|
साझा रसोई की सुविधा फैल रही है, जिससे पूरे केरल में इसी तरह की कई इकाइयां तैयार हो रही हैं (फोटो – गिरिजा पार्वती के सौजन्य से)

जल्दी ही सुन्दरन 34 परिवारों के लिए खाना बना रहे थे। यह इतना बढ़ा कि समूह विभाजित हो गया और एक और रसोई शुरू हो गई।

जब भी मांग बढ़ती है, एक नया साझा रसोई शुरू कर ली जाती है, ताकि गुणवत्ता और स्वाद से समझौता न हो।

घर में बने भोजन की गुणवत्ता

होटल का खाना मंगवाने से अलग, साझा रसोई न सिर्फ कीमत अदा करती है, बल्कि रसोइये स्वच्छता, पोषण और स्वाद को भी बहुत महत्व देते हैं।

उदाहरण के लिए, सभी रसोइये सिर्फ घर के बने मसाले इस्तेमाल करते हैं।

बालुसेरी गांव की एक साझा रसोई की रसोइया, आयसा ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “मैं कभी भी पैकेज्ड मसाले इस्तेमाल नहीं करती, सब यहीं तैयार करती हूँ। मेरा परिवार भी वही खाना खाता है। यहां तक कि नारियल का तेल भी यहां एक तेल मिल में तैयार किया जाता है।”

रसोइये घरेलु बगीचों में पाई जाने वाली कई पौष्टिक सब्जियों का भी उपयोग करते हैं।

मजीदा कहती हैं – “जब मैं खाना बनाती थी, तो मैंने कभी भी रतालू, सहजन के पत्ते और केले के फूल नहीं बनाए, क्योंकि उन्हें बनाने में बहुत समय और मेहनत लगती है। अब हम ऐसे स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजनों का आनंद लेते हैं, क्योंकि हमारे लिए ध्यान रखते हुए खाना पकाने वाला कोई और है।”

ये लोगों को अतीत के स्वादिष्ट व्यंजनों की याद भी दिला सकते हैं।

कई परिवार किफ़ायती पौष्टिक भोजन पसंद करते हैं, जो उनका समय बचाने में भी मदद करे|
कई परिवार किफ़ायती पौष्टिक भोजन पसंद करते हैं, जो उनका समय बचाने में भी मदद करे (फोटो – गिरिजा पार्वती के सौजन्य से)

शिवदासन कहते हैं – “आयसा के देसी व्यंजन बचपन के मेरी माँ के खाने की याद दिला देते हैं।”

मेन्यू बनाने और खरीदारी के समय की बचत

यह सिर्फ खाना पकाने का समय ही नहीं है, जिसकी जिम्मेदारी दूसरे को सौंपी गई है, बल्कि साझा रसोई मेन्यू बनाने और भोजन खरीदने पर होने वाला लोगों का समय भी बचाती है।

एक मासिक बैठक में सदस्य परिवार हर दिन का मेन्यू तय करते हैं।

आयसा कहती हैं – “हम एक दिन मिलते हैं और पूरे महीने का मेन्यू तय करते हैं। मिलना मुश्किल नहीं है, क्योंकि मेरी रसोई के सदस्य मेरे पड़ोसी हैं।”

थोक में किराने का सामान खरीदने से, भोजन की लागत कम करने में भी मदद मिलती है।

अक्सर परिवार अपने स्वयं के बगीचों में उगाए गए नारियल और मौसमी सब्जियाँ मुफ्त में दे देते हैं, जिससे भी पैसे बचाने में मदद मिलती है।

तालुक अस्पताल में मेडिकल रिकॉर्ड लाइब्रेरियन, लुसी कहती हैं – “मैं नाश्ता अक्सर छोड़ देती थी, क्योंकि खाना पकाने, अपने परिवार के लिए दोपहर का भोजन पैक करने और फिर सफाई करने के बाद मेरे पास समय नहीं बचता था। काम के बाद मुझे रात का खाना बनाना होता था। मैं एक मशीन की तरह महसूस करती थी।”

“मेरे लिए वक्त”

नाश्ता और दोपहर का भोजन अब घर पर पहुँचने के कारण, लूसी केवल दोपहर की चाय और रात का खाना बनाती हैं।

उन्होंने कहा – “अब मेरे पास नाश्ते के लिए समय है। और मेरे बच्चों के लिए अधिक समय। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं रोज नृत्य का अभ्यास कर सकूंगी। पर मैं करती हूँ।”

जहां कुछ लोग साझा रसोई से खाना ले जाते हैं, वहीं कुछ सदस्यों के घर पर पहुंचाया जाता है|
जहां कुछ लोग साझा रसोई से खाना ले जाते हैं, वहीं कुछ सदस्यों के घर पर पहुंचाया जाता है (फोटो – मजीदा के सौजन्य से)

गृहिणी शालू जैसी महिलाएं रसोई का इस्तेमाल अब सिर्फ परिवार के लिए विशेष व्यंजन बनाने के लिए करती हैं।

शालू को बागवानी और अपने पति के साथ जिम में कसरत के लिए समय मिल जाता है।

सभी का लाभ 

जहां एक रसोई के सदस्य समय और पैसा बचाते हैं, वहीं रसोई चलाने वालों के लिए लाभकारी है।

प्रति प्लेट कीमत के अलावा, सदस्य रसोइयों के लिए पारिश्रमिक तय करते हैं।

सुन्दरन के लिए साझा रसोई एक वरदान साबित हुई, क्योंकि उसे काम की सख्त जरूरत थी। अधिक से अधिक लोग काम को फलदायी पा रहे हैं।

आयसा की सहयोगी पद्मिनी कहती हैं – “मुझे खाना बनाना अच्छा लगता है। यह ऐसा है, जैसे मैं एक बड़े परिवार के लिए खाना बनाती हूँ। और मुझे अच्छा वेतन भी मिलता है।”

कुछ कामकाजी महिलाएं, जो कुछ खाली समय के लिए तरसती थी, सालों पहले उनका भी इसी तरह का विचार था।

एक सेवानिवृत्त शिक्षिका और बालूसेरी साझा रसोई की संस्थापक सदस्य, गिरिजा पार्वती ने हमें बताया – “हालांकि हमने बहुत पहले एक साझा रसोई की योजना बनाई थी, लेकिन यह केवल अब अमल में आई। मुझे यह देखकर खुशी हो रही है कि मेरे युवा मित्र अब अपने समय का अच्छी तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं।”

महिला सशक्तिकरण की ओर

अब कोझिकोड, मलप्पुरम, कन्नूर, त्रिशूर जिलों के अलावा, पोन्नानी में कई साझा रसोई हैं।

गिरिजा पार्वती कहती हैं – “हालांकि कुछ लोग हमारे भोजन को आउटसोर्स करने के लिए हम पर हंसते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग इसे खुशी से स्वीकार करते हैं। इसे कामकाजी महिलाओं की कल्पना या मध्यम वर्ग की प्रवृत्ति के रूप में खारिज न करें। यह फैल रहा है, क्योंकि इसमें सभी का फायदा है।”

ग्रामीण क्षेत्रों में साझा रसोई की बढ़ती संख्या, अब उन्हें सही साबित करती हैं।

राज्य के पूर्व वित्त मंत्री और सामाजिक विकास विशेषज्ञ, थॉमस इसाक साझा रसोई को महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक विकास के लिए भविष्य की सम्भावना के रूप में देखते हैं।

जाहिर है स्थानीय प्रशासन भी ऐसा ही सोचता है। हाल ही में जारी बजट में, कोझिकोड निगम ने स्थानीय स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से, 10 साझा रसोई शुरू करने की योजना बनाई है।

चित्रा अजित केरल के कोझिकोड में स्थित एक पत्रकार हैं।