और आवेश के साथ बहती है तीस्ता

कालिम्पोंग , पश्चिम बंगाल

तीस्ता नदी आपदा-संभावित क्षेत्र में बांध और सुरंगों के साथ, विकास की ख़राब योजना का खामियाज़ा भुगतती है, जिससे कई राफ्टिंग और कार दुर्घटनाएं होती हैं।

जब आपके घर के पिछवाड़े के में एक नदी बहती है, आप निश्चित रूप से पानी की ओर आकर्षित हो जाएंगे। कालिम्पोंग में बहुत से लोग तैरने, मछली पकड़ने और राफ्टिंग का आनंद लेते हैं।

लेकिन हाल के वर्षों में, केवल इसके पास रहने की बात छोड़िये, तीस्ता नदी में खेलना जोखिम भरा हो गया है।

बंगाल की जीवन रेखाओं में से एक, यह पहाड़ी नदी में दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ोतरी देखी जा रही है, क्योंकि अनियोजित विकास इसकी कीमत चुका रहा है ।

तीस्ता पर बांध

ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी, तीस्ता सिक्किम से निकलती है और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है। इसके प्रवाह और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए, तीस्ता एक पसंदीदा ‘व्हाइट-वाटर’ राफ्टिंग स्थल बन गया है।

लेकिन नदी पर नए बांधों का निर्माण राफ्टिंग को एक जोखिम भरी समस्या बना रहा है।

पानी से संबंधित मुद्दों पर काम करने वाली एक संस्था, ‘साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर एंड पीपल’ (SANDRP) के समन्वयक, हिमांशु ठक्कर कहते हैं – “तीस्ता पर दो चालू बांध पश्चिम बंगाल में हैं और दो सिक्किम में हैं। अभी दो और बनाए जा रहे हैं।” 

पश्चिम बंगाल और सिक्किम के लिए बिजली पैदा करने के लिए बने, पनबिजली बांधों के निर्माण ने पानी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित कर दिया है।

तीस्ता रैफ्टिंग के शौकीनों का पसंदीदा गंतव्य बन गया है (फोटो – गुरविंदर सिंह के सौजन्य से )

ठक्कर के अनुसार, नीचे की ओर छोड़ा जाने वाला गाद-मुक्त पानी, गंभीर कटाव का कारण बनता है, जिससे नदी की गतिशीलता में तेजी से बदलाव होता है।

बहुत कम या बहुत ज्यादा पानी

मांगचू फॉरेस्ट गांव में तीस्ता के तट पर पली-बढ़ी, शांति राय के नदी के प्रति जुनून ने उन्हें, दो दशक पहले राफ्टिंग और बचाव विशेषज्ञ बनने के लिए प्रेरित किया।

राय इस बात से दुखी हैं कि नदी अब वह नहीं है, जो दो दशक पहले हुआ करती थी।

या तो उसमें बहुत ज्यादा पानी होता है या बहुत कम।

इससे भी बदतर बात यह है कि किसी को पता नहीं होता कि कब एक बांध खुल जाएगा और पानी की लहरें उठेंगी।

वह कहती हैं – “बांधों से पानी छोड़े जाने के बारे में हमें सूचित नहीं किया जाता और कभी-कभी पानी के तेज बहाव से नीचे की तरफ पानी का स्तर बढ़ जाता है, जिससे राफ्टिंग नावों को सुरक्षित स्थान पर ले जाना मुश्किल हो जाता है।”

बिना सूचना के पानी छोड़े जाने के संबंध में टिप्पणी के लिए, सरकारी अधिकारियों से संपर्क नहीं हो सका।

बांधों के कारण अब राफ्टिंग जोखिम भरा है

राय ने कहा – “जैसे ही हमें महसूस होता है कि जलस्तर बढ़ रहा है, हम पर्यटकों को एक अलग रास्ते से ले जाते हैं। लेकिन यह हमेशा आसान नहीं होता है। जरा सी चूक पर्यटकों के लिए घातक साबित हो सकती है।”

वह एक घटना को याद करती हैं, जब एक व्यक्ति की मौत हो जाती, यदि उनके द्वारा बचा लिए जाने से पहले वह सिर्फ तीन या चार सेकंड के लिए पानी में और रह जाता।

यहां तक कि इस बांध के निर्माण के दौरान, राय और उनकी टीम को 212 फंसे हुए श्रमिकों को छह घंटे में बचाना पड़ा, जब बेली ब्रिज टूट गया था।

और फिर भी, सर्दी आते ही नदी में मुश्किल से ही पानी होता है।

शांति राय ने पाया है कि तीस्ता नदी का प्रवाह पिछले दो दशकों में बदल गया है (फोटो – गुरविंदर सिंह के सौजन्य से)

तब 30 मिनट की यात्रा में लगभग 90 मिनट लगते हैं, क्योंकि पानी काफी नहीं होने के कारण राफ्टिंग करने वालों को उतर कर राफ्ट को धकेलना पड़ता है।

वाहन नदी में गिरते हैं

लेकिन बांध ही एकमात्र बुनियादी ढांचा परियोजनाएं नहीं हैं, जो समस्या पैदा कर रही हैं।

राजमार्ग पर तीखे मोड़ और संकरी सड़कों के अलावा, वाहन चालकों की लापरवाही के कारण होने वाली दुर्घटनाओं के चलते, नदी हर साल कई लोगों की जान ले लेती है।

सिलीगुड़ी से सिक्किम जाने वाले वाहन, 55 किमी लंबे राजमार्ग का इस्तेमाल करते हैं, जो तीस्ता नदी के समानांतर चलता है। 29वें  मील और कलिम्पोंग जिले में चित्रे के बीच, इस हिस्से के छह किमी में कई दुर्घटनाएं हुई हैं।

सड़क के साथ जगह की कमी और संकरी जगह में ड्राइवर द्वारा ओवरटेक करने की कोशिश में कई बार वाहन बचाव-पट्टी को पार कर जाते हैं।

कोई हैरानी की बात नहीं कि लगभग हर तीन महीने में एक या दो वाहनों के 35 फीट नदी में गिरने का मामला सामने आता है।

इस तरह की घटनाओं में, राय पिछले दो दशकों में केवल चार लोगों को ही बचा पाई हैं।

लेकिन उन्होंने 50 शव निकाले हैं।

राय कहती हैं – ‘तीस्ता में दुर्घटनावश गिरने के बाद, जिंदा बाहर निकलने के लिए बहुत किस्मत की जरूरत होती है। नदी में तेज बहाव होता है और इसकी इतनी गहराई होती है कि यह बस कुछ सेकंड की बात है।”

बांध से पानी छोड़े जाने पर उसमें बहुत ज्यादा पानी होता है, लेकिन सर्दियों में बहुत कम पानी होता है (फोटो – गुरविंदर सिंह के सौजन्य से)

उन्होंने कहा – “बड़े पैमाने पर मानव हस्तक्षेप और विकास का जोर, पहाड़ियों के पर्यावरण को बर्बाद कर रहे हैं, जिससे आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है।”

बढ़ती प्राकृतिक आपदाएँ

प्रकृति की भी एक भूमिका है, क्योंकि पर्वतीय क्षेत्र स्वाभाविक रूप से भूकंप और भूस्खलन के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। लेकिन अनियोजित विकास ने प्राकृतिक आपदाओं को और भी घातक बना दिया है।

ठक्कर कहते हैं – “दार्जिलिंग सिक्किम क्षेत्र भूकंपीय क्षेत्र 4 में आता है और इसलिए भूकंप का खतरा रहता है। पूरा क्षेत्र भूस्खलन-संभावित है और बांधों के निर्माण के कारण उनकी संख्या में वृद्धि हुई है।”

दोनों राज्यों में नदी पर और बांध बनाने के प्रस्ताव हैं।

ठक्कर ने कहा – “इससे आपदा आएगी।”

केंद्र सरकार सिक्किम को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने के लिए, तीस्ता पर 14 सुरंगों और 17 पुलों के साथ 45 कि.मी. लंबी रेलवे लाइन का निर्माण कर रही है।

और स्थानीय लोगों को डर है कि सुरंग बनाने के लिए पहाड़ों में विस्फोट करने से, भूस्खलन का खतरा बढ़ जाएगा।

जान बचाने के लिए कोई बुनियादी ढांचा नहीं

दुखद विडंबना यह है कि जहां बुनियादी ढांचे के काम दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं, वहीं उन दुर्घटनाओं में शामिल लोगों को बचाने के लिए कोई बुनियादी ढांचा नहीं है।

राय जैसे बचाव दल जिंदगियों को बचाने के लिए, बेहतर बचाव-नौकाओं और उपकरणों की जरूरत महसूस करते हैं (फोटो – गुरविंदर सिंह के सौजन्य से )

राय कहती हैं – “बचाव कार्य के लिए जरूरी उचित बुनियादी ढांचे की कमी से हमारा काम और मुश्किल हो जाता है, क्योंकि हमें फंसे हुए वाहनों का पता लगाने के लिए, एक सुसज्जित प्रणाली की जरूरत होती है।”

वह ड्रोन और जीपीएस सिस्टम से लैस होने का सुझाव देती हैं।

उन्होंने कहा – “नदी में 24×7 बचाव दल का होना भी जरूरी है, क्योंकि अक्सर वाहन रात के अंधेरे में गायब हो जाते हैं और हमें कोई जानकारी नहीं मिलती।”

सुजाता छेत्री, जिन्हें राय द्वारा राफ्टिंग का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में यातायात में वृद्धि हुई है, जिससे समस्या और बढ़ गई है।

वह कहती हैं – “और बड़े पैमाने पर निर्माण के कारण, मामूली भूस्खलन से भी जानमाल का नुकसान हो सकता है। हमें जीवन और आजीविका के बीच संतुलन बनाना होगा और प्रकृति के साथ जरूरत से ज्यादा खिलवाड़ नहीं करना होगा।

इस लेख के शीर्ष पर दी गई फोटो तीस्ता नदी में राफ्टिंग दिखाती है, जो बांधों से पानी छोड़े जाने पर अचानक तेज सकती है (फोटो – शांति राय के सौजन्य से)

गुरविंदर सिंह कोलकाता स्थित पत्रकार हैं।