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पौधों से प्रेम कश्मीरी महिला को देता है आर्थिक आजादी

महिलाओं को कड़ी मेहनत करते देख, एक युवा कश्मीरी महिला ने आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए, अपने घर के पिछवाड़े में एक नर्सरी व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया। पॉलिटेक्निक की छात्रा सायका निसार की सफलता अब दूसरी महिलाओं को प्रेरणा दे रही है।

श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर

मैं भी अपने पड़ोस के किसी दूसरे बच्चे की तरह ही थी, जो मिट्टी के खिलौनों से खेलता या पास के तालाबों में मछली पकड़ने की कोशिश में घंटों बिताता है।

एक सामान्य किशोर की तरह मैं दिखावे के दौर से गुजरी, लेकिन मैं घर के काम भी करती थी।

फर्क सिर्फ इतना था कि मैं उन पौधों की देखभाल में काफी समय बिताती थी, जो मेरे दादाजी ने पिछले आंगन में उगाए थे।

मैं पहली पीढ़ी का शिक्षार्थी हूँ। जब आप अध्ययन करते हैं, तो यह आपको सोचने पर मजबूर करता है। मैं अक्सर अपने शिक्षा के नजरिये से पिछड़े पड़ोस की महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बारे में सोचती थी।

घर के काम, सब्जियां उगाना, पशुओं की देखभाल करना और बार बार बहस करना, आसपास की किसी भी औसत महिला के लिए एक दिनचर्या थी। उस समय, और अब भी, मुझे उन महिलाओं के आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर होने को लेकर बुरा लगता है।

मैं हमेशा घर में और बाहर भी, सम्मान और मानवीय गरिमा के जीवन की कामना करती थी। एक ऐसा जीवन, जो मुझे भरपूर जीवन जीने की अनुमति दे। एक ऐसा जीवन, जो मुझे अपनी इच्छा से चुनने और फैसले लेने की अनुमति दे।

बारहवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा पास करने के बाद मेरी चिंताएँ बढ़ गईं, क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि कैसे एक बालिग लड़की के रूप में मुझे अपनी छोटी-छोटी, रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भी पैसे माँगने पड़ते हैं।

एक दिन, जब मैं अपने पड़ोस की महिलाओं की विषादपूर्ण स्थिति के बारे में सोच रही थी, तो मैंने देखा कि पार्लर चलाने वाली एक महिला ने मेरे दादाजी से एक लाल मेपल का पौधा खरीदा। उसने इसके लिए काफी पैसे चुकाए।

उस समय मेरे दिमाग में यह विचार आया, “यदि यह औरत अपनी मर्जी से कमा और खर्च कर सकती है, तो मैं क्यों नहीं?” इस साधारण प्रतीत होने वाली घटना ने, मेरे अंदर के प्रकृति प्रेमी और उद्यमी को जगा दिया।

मैंने गमलों में पौधे उगाने और उन्हें बेचने का फैसला किया।

हालाँकि यह विचार मेरे दिमाग में चलता रहा, लेकिन लॉकडाउन ने मुझे अपने विचार पर काम करने और इसे लागू करने के लिए पर्याप्त समय दे दिया।

और अनुमान लगाइये कि मेरी पूंजी कितनी रही होगी? ईदी के रूप में मिले सिर्फ 7,000 रुपये। आप जानते हैं कि ईद के दिन बुजुर्ग हमें तोहफा देते हैं।

लेकिन जैसा कि लोग सोचते हैं, नर्सरी व्यवसाय चलाना आसान नहीं है।

अंकुरों का जड़ न पकड़ना या मुरझा जाना और कड़ाके की सर्दी में बहुत सारे पौधों को नुकसान पहुंचना कुछ समस्याएं थी।

लेकिन सबसे बड़ी समस्या एक उद्यमी के रूप में एक महिला के बारे में लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ना था।

लेकिन मैं दृढ़ रही। मुनाफा कमाने में मुझे एक साल लग गया।

ग्राहकों की पसंद को भांपते हुए, मैंने गमलों में उगाए गए फूलों वाले और सजावटी पौधों को बेचने पर ध्यान केंद्रित किया।

मैं पौधे के साथ-साथ फूलदान को भी बराबर महत्व देती हूँ। मैं यह सुनिश्चित करती हूँ कि पौधे, फूल और फूलदान के बीच एक सही रंग संयोजन हो।

चीनी मिट्टी या मार्बल से बने अलग अलग किस्म के गमलों, फूलदानों या सांचों को इस्तेमाल करके, ताकि संयोजन काम करे।

मेरा नर्सरी व्यवसाय मुझे सालाना कुछ लाख कमाने में मदद कर रहा है, और कई लोगों, विशेषकर महिलाओं को रोजगार भी प्रदान कर रहा है।

लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पौधे उगाने से मुझे अपना मानसिक संतुलन भी बनाए रखने में मदद मिली है।

जब अन्य लोग महामारी और लॉकडाउन से जूझ रहे थे, तो अपने आंगन की नर्सरी की देखभाल करने से मुझे बेहद जरूरी सांत्वना प्राप्त हुई।

अब जबकि मेरा पॉलिटेक्निक कोर्स फिर से शुरू हो गया है, तो मेरे कर्मचारी मेरे नर्सरी व्यवसाय का ध्यान रखते हैं। मैं सुबह और शाम, यह सुनिश्चित करने के लिए जाती हूँ कि सब कुछ ठीक चल रहा है।

मेरे नक्शेकदम पर चलते हुए, कई महिलाओं ने भी अपने पिछले आँगन को एक सफल नर्सरी व्यवसाय में बदल दिया है। मुझे काफी गर्व और खुशी है कि मेरा व्यवसाय दूसरों को प्रेरित करता है।

हमारी यह कहानी भी पढ़ें कि कैसे महामारी ने कश्मीर में नर्सरी व्यवसाय में उछाल पैदा किया।

इस लेख पर फोटो में सायका नासिर अपनी नर्सरी में दिखाई दे रही हैं। 

कहानी प्रस्तुति एवं तस्वीरें नासिर यूसुफी द्वारा, जो श्रीनगर स्थित एक पत्रकार हैं