मूक क्रांति: आशा और सम्भावना का दिन
अग्रणी विकास विशेषज्ञ, संजीव फणसळकर, अस्सी लाख महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आठ करोड़ साठ लाख परिवारों को प्रभावित करने वाले सामाजिक कार्यक्रम, दीन दयाल उपाध्याय अन्त्योदय योजना से अभिभूत हैं।
दीन दयाल उपाध्याय अन्त्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) और उसकी शहरी समकक्ष कार्यक्रम को मिलाकर दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना का गठन किया गया, ताकि ग्रामीण और शहरी गरीबों को अपनी आजीविका और कल्याण में सुधार के लिए, अपने आसपास के क्षेत्रों में अवसर तलाशने, सृजन, प्राप्त करने और उपयोग करने में सक्षम बनाया जा सके।
DAY दुनिया भर के सबसे बड़े गरीबी-उन्मूलन कार्यक्रमों में से एक है। और इसकी पहुँच के अप्रैल 2022 के नवीनतम आंकड़े वास्तव में प्रेरणादायक हैं।
प्रत्येक राज्य में केंद्र के सहयोग से चल रहा कार्यक्रम, 80 लाख से ज्यादा महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से, 8.6 करोड़ से ज्यादा परिवारों तक पहुंच चुका है। गांव के स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को मिला कर स्थानीय स्तर पर ग्राम संगठनों (वीओ) का गठन किया जाता है। देश में अब इनकी संख्या 4.4 लाख है, जो 27,100 क्लस्टर-स्तरीय संघों में बँटी हैं। यह कार्यक्रम 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 5.7 लाख गांवों में चल रहा है। शहरों में इनकी संख्या इसके अतिरिक्त है।
DAY का शुद्ध आर्थिक प्रभाव सामने आ रहा है, जो आम तौर पर सकारात्मक है। लेकिन मेरी दिलचस्पी इससे मिलने वाली विशाल और सामाजिक क्षेत्र में जारी रह सकने वाली उन संभावनाओं में है, जिन से लोगों के कल्याण में गैर-मामूली सुधार हो रहा है। याद रखने योग्य सबसे महत्वपूर्ण आयामों में से एक यह है कि यह “सामाजिक बुनियादी ढांचा” बनाने का अब तक का सबसे बड़ा प्रयास है।
नौकरशाही पूरी दुनिया में हमेशा अंतिम छोर तक पहुँच की समस्या से जूझती रही है। बनाया गया यह सामाजिक बुनियादी ढाँचा अब नौकरशाही को गरीबों तक पहुँचने के लिए एक बहुत ही उपयोगी रास्ता प्रदान करता है। साथ ही इसने गरीबों की आकांक्षाओं, जरूरतों और मांगों को बड़े ही शांतिपूर्ण ढंग से धरातल पर लाने के लिए एक प्रमुख मार्ग तैयार किया है।
हाल के दिनों में इस विशाल सामाजिक बुनियादी ढांचे की व्यावहारिक उपयोगिता भरपूर रूप से सामने आई है। एसएचजी ने महामारी से निपटने के लिए संदेश वाहक और असंख्य पहलों के लिए मंच के रूप में काम किया है।
महामारी का मुकाबला करने में, वीओ और एसएचजी की महत्वपूर्ण भूमिका के भारी सबूत हैं, जिनका शायद अभी तक पूरी तरह से दस्तावेजीकरण नहीं हुआ है। एक ओर उन्होंने ऐसा एक्सपोज़र आयोजित करके और मास्क अनुशासन, सामाजिक दूरी और बुनियादी बचाव देखभाल पर प्रशिक्षण के द्वारा किया है। दूसरी ओर वे देश के लगभग हर हिस्से में किफायती दामों पर बहुत बड़ी संख्या में मास्क और यहां तक कि सैनिटाइजर के उत्पादन और वितरण के साधन बन गए।
उन्होंने हजारों गाँवों में क्वारंटाइन केंद्रों की व्यवस्था संभालने में योगदान दिया। और वे टीकाकरण के लिए लोगों को लामबंद करने के केंद्र बिंदु बन गए। इस विशाल सामाजिक बुनियादी ढाँचे के बिना, भारत की COVID-19 के खिलाफ लड़ाई बहुत ज्यादा मुश्किल और शायद अप्रभावी होती।
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इस विशाल सामाजिक बुनियादी ढाँचे के योगदान का दूसरा पहलू है, महिलाओं का सशक्तिकरण। भले ही दस्तावेजीकरण न हुआ हो, लेकिन बेहद व्यापक सबूत हैं कि केवल एसएचजी का निर्माण और नियमित कामकाज, जिसको वीओ का सहयोग प्राप्त है, महिलाओं को उनके संकट के समय में एक सामाजिक आश्वासन व्यवस्था प्रदान करता है। बहुत से स्थानों पर इन स्थानीय संस्थाओं ने घरेलू समस्याओं से निपटने और लैंगिक हिंसा को रोकने के लिए पहल की है। उन्होंने महिलाओं की पहचान और आत्मविश्वास के निर्माण में असाधारण योगदान दिया है। साथ ही, एसएचजी के बचत और ऋण कार्य ने हर जगह मौजूद और आमतौर पर खलनायक, स्थानीय साहूकार के लिए एक बहुत ही सहायक और सहानुभूतिपूर्ण विकल्प बनाया है।
जहां आजीविका कार्यक्रमों के उपरोक्त दो “दुष्प्रभाव” लगभग हर जगह देखे जाते हैं, वहीं इस सामाजिक बुनियादी ढांचे के, चाहे कुछ हद तक छिटपुट ही सही, सकारात्मक प्रभाव भी व्यापक रहे हैं।
अब पहले से कहीं ज्यादा महिलाओं ने ग्राम सभा में और ग्राम पंचायत (जीपी) के मामलों में भाग लेना शुरू कर दिया है। जिस तरह 14वें और 15वें वित्त आयोग के अंतर्गत ग्राम पंचायतों को मिलने वाले धन की उपलब्धि ने उन्हें शक्ति प्रदान की है, वैसे ही उनके मामलों में महिलाओं की बढ़ी हुई भागीदारी ने उन्हें महिलाओं और गरीबों की जरूरतों के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाने में योगदान दिया है। इसके प्रभाव की सीमा निश्चित रूप से भिन्न होती है।
अन्य संबंधित पहलू शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, सामाजिक न्याय और ऐसी ही अन्य कल्याणकारी सेवाओं के लिए मांग के मजबूत होने से सम्बंधित हैं। एक बार एसएचजी, वीओ और क्लस्टर स्तरीय संघों (सीएलएफ) की व्यवस्था के माध्यम से महिलाओं की सामाजिक एकजुटता की व्यावहारिक उपयोगिता के बारे में जागरूक होने के बाद, यह सिर्फ उनकी कल्पना का मुद्दा बन जाता है और इन मामलों में रुचि लेना शुरू करने के लिए उन्हें थोड़े से बाहरी प्रभाव की जरूरत होती है।
इस बात के भी सबूत हैं कि संवाद को लेकर व्यवहार परिवर्तन के ज्यादा प्रभावी होने के साथ-साथ, अग्रणी नौकरशाही के साथ ग्राम समुदाय का बेहतर और ज्यादा आत्मविश्वासपूर्ण जुड़ाव हुआ है। प्रावधानों के बेहतर वितरण के लिए, ग्राम पंचायतों और स्थानीय विकास प्रशासन के साथ एसएचजी-वीओ-सीएलएफ व्यवस्था के तालमेल को औपचारिक रूप देने के लिए, छिटपुट प्रयास भी चल रहे हैं।
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कई विद्वानों ने DAY के गरीबों की आय पर ठोस और गौर करने लायक प्रभाव को देखा है। सामान्य तौर पर, इस तरह का प्रभाव स्थानीय अर्थव्यवस्था में काम करने वाले इन मंचों से है, और साथ ही बाजारों से नजदीकी और उनके साथ प्रभावी तरीके से जुड़ने में भी है।
जिस निष्ठा के साथ DAY के आर्थिक पहलुओं को लागू किया गया है, वह संभवतः देश भर में और राज्यों के भीतर अलग हो सकता है। फिर भी DAY द्वारा प्रायोजित, सामाजिक बुनियादी ढांचे का समग्र सकारात्मक सामाजिक प्रभाव क्रांतिकारी से कम नहीं है और ग्रामीण गरीबों के कल्याण की बेहतरी में बहुत दूर तक जाएगा।
इस लेख के शीर्ष पर मुख्य चित्र, लेखक संजीव फणसळकर का है।
संजीव फणसळकर विकास अण्वेष फाउंडेशन, पुणे के निदेशक हैं। वह पहले ग्रामीण प्रबंधन संस्थान, आणंद (IRMA) में प्रोफेसर थे। फणसळकर भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद के फेलो हैं।
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