राज्य की सीमाओं से परे फलफूल रहा पश्चिम बंगाल का फूलों का व्यापार

दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल

उत्तर-पूर्वी राज्यों से फूलों की बढ़ती मांग और फूलों की खेती और अंतर-राज्यीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सरकार की पहल से, फूलों की खेती करने वाले और व्यापारी लाभ उठा रहे हैं।

दार्जिलिंग जिले के कुदलीपारा गाँव की सुचित्रा बसु, अपना समय घर के काम निपटाने और अपने गाँव के किसानों द्वारा तोड़ कर दिए गए फूलों की माला बनाने में बांटती हैं।

अपने मिट्टी के घर के सामने बैठी बसु ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “किसान खेतों से फूल तोड़कर हमारे पास लाते हैं। वे फूलों की माला बनाने के लिए धागे भी लाते हैं। हम तीन घंटे में आसानी से 10 से 12 फूलों की माला बांध लेते हैं और लगभग 150 रुपये रोजाना कमाते हैं।”

“यदि आप दिन भर काम करें, तो निश्चित रूप से ज्यादा आय होती है। लेकिन ज्यादातर महिलाओं के लिए यह संभव नहीं है, क्योंकि हमें अपने बच्चों की देखभाल करनी पड़ती है और घर के काम करने पड़ते हैं। लेकिन फिर भी हम जितना संभव हो, उतना समय निकालने की कोशिश करते हैं।

दार्जिलिंग जिले में फलता-फूलता फूलों का व्यापार, महिलाओं को फूलों की माला बना कर रोजी कमाने में मदद करता है|
दार्जिलिंग जिले में फलता-फूलता फूलों का व्यापार, महिलाओं को फूलों की माला बना कर रोजी कमाने में मदद करता है (फोटो – सौम्या शर्मा, पिक्साबे के सौजन्य से)

लगभग 300 बीघा भूमि पर फूलों की खेती वाला बसु का गाँव, कुदलीपारा जिले में गेंदे की खेती के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है, जिससे किसानों को अच्छी आय कमाने में मदद मिलती है। जाहिर है कि फूल, गांव के 80 परिवारों की बसु जैसी महिलाओं को आजीविका प्रदान करते हैं। बेहतर परिवहन सुविधाओं की बदौलत, जिले के फूलों को अब अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी बाजार मिल रहे हैं।

बेहतर संपर्क साधनों के कारण पश्चिम बंगाल का फलता-फूलता फूल व्यापार

बेहतर सड़क और रेल संपर्क के चलते, सिलीगुड़ी उत्तर-पूर्वी राज्यों के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है, जिससे पश्चिम बंगाल के फूलों के व्यापार को फलने-फूलने में मदद मिलती है। 

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गेंदे, ऑर्किड और जरबेरा जैसे फूल उत्तर-पूर्वी राज्यों असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर को भेजे जाते हैं।

सिलीगुड़ी के फूलों के एक थोक विक्रेता, सुशील बिस्वास कहते हैं – “सरकार त्रिपुरा और मणिपुर जैसे दूरदराज के राज्यों में भी रेल मार्ग खोल रही है। इस साल सरकार ने मणिपुर को असम के रास्ते त्रिपुरा से जोड़ने वाली सुपरफास्ट जनशताब्दी ट्रेन भी शुरू की है। यह तेज रेलगाड़ी निश्चित रूप से फूल व्यापारियों को नए बाजारों तक पहुंचने में मदद करती है।”

उत्तर-पूर्वी राज्यों से बेहतर सड़क और रेल संपर्क ने, सुशील बिस्वास जैसे थोक फूल विक्रेताओं को लाभ पहुँचाया है|
उत्तर-पूर्वी राज्यों से बेहतर सड़क और रेल संपर्क ने, सुशील बिस्वास जैसे थोक फूल विक्रेताओं को लाभ पहुँचाया है (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

बिस्वास आगे कहते हैं – “पहले में 60,000-70,000 रुपये के फूल असम भेजा करता था। पिछले कुछ वर्षों में यह बढ़कर एक लाख रुपये से ज्यादा हो गया है। उन राज्यों में सडकों की हालत भी बेहतर है। इसलिए फूल ग्रामीण इलाकों में भी पहुंच सकते हैं।’

बाजार सिर्फ उत्तर-पूर्वी राज्यों तक ही सीमित नहीं है।

एक व्यापार संगठन, ‘सिलीगुड़ी हॉर्टिकल्चर सोसाइटी’ के महासचिव प्रशांत सेन ने कहा – “जिले से फूल हवाई मार्ग से दिल्ली, हैदराबाद, बेंगलुरु और अन्य शहरों को भी भेजे जाते हैं।”

असम में मिट्टी के कटाव से मांग बढ़ी

सेन के अनुसार, उत्तर-पूर्वी राज्यों में गेंदे की भारी मांग है, जो वहां बड़ी मात्रा में पैदा नहीं होता है।

बहुत से लोग असम में मिट्टी के कटाव से उपजाऊ कृषि भूमि के बड़े हिस्से के नुकसान को मांग से जोड़ते हैं।

फूलों के एक थोक व्यापारी, रबी महंत कहते हैं – “उत्तर-पूर्वी राज्यों, विशेषकर असम में कृषि भूमि कम हो रही है। इसलिए वे कई कृषि उत्पादों, जिनमें फूल भी शामिल हैं, के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर होने को मजबूर हैं।”

अधिक भूमि में फूलों की खेती

उत्तर-पूर्वी राज्यों से मांग के कारण, स्वाभाविक रूप से अधिक किसान फूलों की खेती करने लगे हैं।

उत्तर-पूर्वी राज्यों से गेंदे के फूलों की बहुत मांग है|
उत्तर-पूर्वी राज्यों से गेंदे के फूलों की बहुत मांग है (फोटो – दीपक चौधरी, अनस्प्लैश से साभार)

राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2016-17 में राज्य में फूलों की खेती का कुल क्षेत्रफल 26,054 हेक्टेयर था, जिसमें 71270 टन पैदावार होती थी। वर्ष 2020-21 में क्षेत्र बढ़कर 29,315 हेक्टेयर हो गया, हालांकि मामूली गिरावट के साथ पैदावार 70,920 टन रह गई।

2016-17 में, पड़ोसी जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार जिलों में फूलों की खेती का क्षेत्र क्रमशः 180 और 134 हेक्टेयर था। यह 2020-2021 में बढ़कर 220 और 160 हेक्टेयर हो गया।

उत्तरी बंगाल के जिलों में फूलों की खेती का क्षेत्रफल 2,400 हेक्टेयर है। सिलीगुड़ी हॉर्टिकल्चर सोसाइटी के अधिकारियों के अनुसार, फूलों के व्यापार से उत्तरी बंगाल के जिलों का सालाना कारोबार 1,000 करोड़ रुपये है।

फूल व्यापार में सरकार का सहयोग

हालांकि आंकड़ों से जाहिर होता है कि पश्चिम बंगाल का फूलों का व्यापार फलफूल रहा है, लेकिन किसानों का एक वर्ग निराश है। वे अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा हड़पने के लिए बिचौलियों को दोषी ठहराते हैं।

उत्तर-पूर्वी राज्यों से बढ़ती मांग की बदौलत, फूलों की खेती के क्षेत्र में वृद्धि हुई है|
उत्तर-पूर्वी राज्यों से बढ़ती मांग की बदौलत, फूलों की खेती के क्षेत्र में वृद्धि हुई है (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

फूलों के भंडारण के लिए कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की कमी और आस-पास कोई थोक बाजार नहीं होने के कारण, किसान मजबूरन बिचौलियों पर निर्भर हैं।

कुदलीपारा के एक किसान, तपन बसु ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “वे अक्सर कम कीमत पर फूल खरीदते हैं और थोक विक्रेताओं को ऊंचे दाम पर बेचते हैं। हमें कभी-कभी नुकसान झेलना पड़ता है। सरकार को हमारे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए।”

हालांकि किसानों की कुछ चिंताएं जायज हैं, लेकिन राज्य सरकार इस पर पर्याप्त पहल कर रही है। खरीददारों को आकर्षित करने के लिए, सरकार सिलीगुड़ी में फूलों की खेती पर उत्तर-पूर्व के सबसे बड़े वार्षिक फूल मेले का आयोजन करती रही है।

सिलीगुड़ी हॉर्टिकल्चर सोसाइटी के अधिकारी कहते हैं – “मेले का आयोजन पिछले 25 वर्षों से किया जा रहा है। लेकिन कुछ साल पहले तक, मुश्किल से ही कोई व्यापारी स्टॉल लेने में दिलचस्पी दिखा रहा था।”

लेकिन हालात बदल गए हैं। इस फरवरी में मेले में 78 स्टॉल लगे थे, जो पिछले वर्षों में सबसे अधिक थे। मेले से करीब चार करोड़ रुपये का कारोबार भी हुआ।

सरकार की पहलों से पश्चिम बंगाल के फूलों के व्यापार को बढ़ावा मिल रहा है|
सरकार की पहलों से पश्चिम बंगाल के फूलों के व्यापार को बढ़ावा मिल रहा है (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

हालांकि सरकारी अधिकारियों के पास व्यापार मूल्य की जानकारी नहीं है, लेकिन वे मानते हैं कि फूलों की खेती के क्षेत्र में वृद्धि हुई है।

पश्चिम बंगाल के बागवानी संयुक्त-निदेशक (सांख्यिकी), नवोजीत चक्रवर्ती ने बताया – “कुदरती कारणों के आधार पर पैदावार में उतार चढ़ाव हो सकता है। लेकिन बेहतर मिट्टी एवं जलवायु और राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई ‘मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर’ (MIDH), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) और राज्य विकास योजना (SDS) जैसी विभिन्न योजनाओं के कारण, पश्चिम बंगाल में फूलों की खेती के क्षेत्र में वृद्धि हो रही है।”

MIDH केंद्र सरकार की एक योजना है, जो बागवानी क्षेत्र के विकास में मदद करती है। RKVY राज्य सरकार की एक योजना है, जो 4% सालाना वृद्धि के उद्देश्य के अंतर्गत कृषि के कुछ क्षेत्रों में सहायता प्रदान करती है। SDS में किसानों के लिए योजनाएं शामिल हैं।

चक्रवर्ती कहते हैं – “सरकारी पहल, बागवानी क्षेत्र में किसानों और उद्यमियों को आकर्षित करने के लिए, तकनीकी बदलाव और वित्तीय प्रोत्साहन का मिश्रण है।”

जैसा कि आंकड़ों और पश्चिम बंगाल के फूलों के व्यापार से संकेत मिल रहा है, इन पहलों के अनुकूल परिणाम प्राप्त हो रहे हैं।

रिपोर्ट और फोटो कोलकाता-स्थित पत्रकार गुरविंदर सिंह द्वारा।