असम में बाढ़ ने नए क्षेत्रों में फैल कर किया भारी नुकसान

दरंग, असम

जहां भारी बारिश और नदी के रास्तों पर अवरोध असम में बाढ़ का कारण बना है, वहीं बाढ़ के पानी के नए क्षेत्रों में प्रवेश करने से पहले की तुलना में अधिक नुकसान हुआ है।

हिमश्री डेका और उनकी पड़ोसन मिताली डेका उन पलों को याद कर कांप उठे, जब पिछले महीने उन्होंने असम की भयानक बाढ़ में अपनी बच्चियों को डूबने से बचाने के लिए, रात में ही झटपट केले के पेड़ के तने से एक बेड़ा बनाया था।

तीसरे दशक की आयु वाली ये युवा माताएं असम के दर्रांग जिले की मिलनपुर बस्ती में रहती हैं। यह बस्ती ‘सक्टोला’ किनारे स्थित है, जो शक्तिशाली ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है।  

कई दिनों से हो रही बारिश के कारण, 16 जून को पानी मिलनपुर में घुस गया। लेकिन ग्रामीण इससे चिंतित नहीं थे, क्योंकि असम में जल-जमाव हर साल होने वाली एक नियमित घटना है।

लेकिन इस साल बात अलग थी। 20 जून की शाम तक घुटने भर पानी भर चुका था।

कुछ लोग बाढ़ के पानी में आई मछलियों को पकड़ने के लिए दूर तक चले गए थे। वे इस बात से अनजान थे कि उनका गाँव तेजी से पानी से घिर रहा है। कुछ लोग बाढ़ में जान गंवाने वाले एक ग्रामवासी का अंतिम संस्कार करने गए थे।

हिमश्री डेका कहती हैं – “करंट लगने के डर से बिजली के कनेक्शन काट दिए गए थे, जिससे बस्ती में घुप अँधेरा था। मेरी चार महीने की और मिताली की नौ महीने की बेटी घंटों रो रही थी।”

चौंकाने वाले हालात में हिमश्री डेका और उनकी पडोसी मिताली डेका ने अपनी बच्चियों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए, रात में केले के पेड़ के तने से एक बेड़ा तैयार किया (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

“हमने उन्हें बचाने के लिए एक के ऊपर एक बिस्तर लगाए, लेकिन पानी जबरदस्त तेजी से बढ़ता रहा।”

युवा महिलाओं के पास अब बिस्तर को और ऊपर उठाने का कोई तरीका नहीं था।

हिमश्री याद करती हैं – “इसलिए हमने केले के पेड़ों को काटा और एक बेड़ा बनाया, क्योंकि हमारे पास अपने गाँव से बाहर जाने का कोई दूसरा तरीका नहीं था। हम अपनी बेटियों को लिया और नाव चलाते हुए किसी तरह करीब 1.5 किलोमीटर दूर स्थित राहत शिविर तक पहुंचे। हमारे पुरुष हमें रास्ते में मिले।”

बाढ़ के पानी से खुद को बचाने के लिए, 120 से ज्यादा ग्रामीणों ने उस दिन गांव से बाहर निकलने के लिए ऐसे 25 बेड़ों का इस्तेमाल किया था।

असम में बाढ़ के बाद बाढ़ 

मार्च से हो रही भारी बारिश भीषण बाढ़ का कारण बन गई। राज्य में मार्च और मई के बीच औसत 414.6 मिमी की तुलना में 672.1 मिमी बारिश हुई, जो सामान्य से 62% ज्यादा थी।

अपने घरों को वापिस आ चुके मिलनपुर गांव के अधिकांश लोग, बाढ़ का पानी लगातार बढ़ने के कारण केले के तनों से बने बेड़ों पर सवार हो कर राहत शिविरों तक पहुंचे (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

इस साल राज्य को बाढ़ की दो भीषण लहरों का सामना करना पड़ा। पहला मई में हुआ, जिसने बराक घाटी, होजई और दीमा हसाओ जिलों को प्रभावित किया। दूसरा जून में था, जिसने ज्यादातर निचले असम में कहर बरपाया।

असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ASDMA) के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, बाढ़ में 192 लोगों की मौत हो गई, जबकि 11 जिलों के लगभग दस लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए।

बारपेटा, बजाली, कछार, चिरांग, डिब्रूगढ़, हैलाकांडी, कामरूप, करीमगंज, मोरीगांव, नागांव, शिवसागर और तमुलपुर ऐसे जिले हैं, जो बुरी तरह प्रभावित हुए।

बाढ़ के मानव निर्मित कारण

भारी बारिश के अलावा, विशेषज्ञ इस साल बाढ़ के ज्यादा तेज होने के लिए मानव निर्मित कारकों को जिम्मेदार ठहराते हैं।

असम के एक पर्यावरणविद् कमरूज़ हक़ ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “बाढ़ का एक कारण भारी बारिश है, क्योंकि राज्य में भारी बारिश हुई है। लेकिन बाढ़ के लिए मानव निर्मित कारक भी जिम्मेदार हैं।”

उनका कहना था कि मिट्टी के तटबंधों के टूटने से भयंकर बाढ़ आई है।

वह कहते हैं – “भूटान में बहुत से बांध निर्माण से पानी का प्राकृतिक प्रवाह अवरुद्ध होता है। भारी बारिश के कारण भूटान के पास पानी छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। इससे उन कई क्षेत्रों में भी तटबंध टूटने से गंभीर बाढ़ आ गई, जो पहले प्रभावित नहीं हुए थे।”

सामान्य से ज्यादा बारिश से उन क्षेत्रों में भी बाढ़ आ गई, जहां पहले कभी भीषण बाढ़ नहीं आई थी (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

हक़ कहते हैं – “बाढ़ हर साल आएंगी। लेकिन नदी के पानी को बांधों जैसी किसी भी बाधा के बिना, स्वतंत्र रूप से बहने देकर नुकसान को कम किया जा सकता है।”

बाढ़ नए इलाकों में पहुंची

हालांकि मिलनपुर के लोग बाढ़ का पानी बढ़ने के समय बैठे रहने के कारण खुद को दोषी मानते हैं, लेकिन उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता। क्योंकि मिलनपुर में जल जमाव पहले भी होता था, लेकिन उन्होंने जीवन को खतरा बनने वाली बाढ़ नहीं देखी थी।

इस साल असम में आई बाढ़ का स्वरूप काफी अलग था। बाढ़ का पानी नए इलाकों में पहुँच गया था और उन गांवों में कहर बरपा रहा था, जो पहले कुदरत के प्रकोप से अछूते थे।

सरकारी अधिकारी मानते हैं कि जैसे ही पानी ने नए क्षेत्रों में प्रवेश किया, वह बाढ़ की भयावहता से दंग रह गए।

नाम गुप्त रखने की शर्त पर एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया – “तबाही दिमाग को सुन्न करने वाली थी, क्योंकि पानी उन नए इलाकों में घुस गया था, जहां पिछले वर्षों में शायद ही कभी बाढ़ आई थी। इससे हमारा काम मुश्किल हो गया और उन क्षेत्रों तक पहुँचने और बचाव एवं राहत कार्य शुरू करने में वक्त लग गया।”

फसलों का नुकसान और सरकारी सहायता

बाढ़ ने लाखों लोगों को बेघर करने के अलावा, कृषि को भी भारी नुकसान पहुंचाया है।

बारिश के कई हफ्ते बाद भी, मिलनपुर में बाढ़ का पानी जमा है, जो बच्चों के लिए एक खेल का मैदान बना है (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

सहायक कृषि सूचना अधिकारी, मानब ज्योति दास ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “शुरुआती अनुमान के अनुसार, पूरे राज्य में लगभग दस लाख किसान परिवार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। 2,57,772 हेक्टेयर भूमि में फसल बर्बाद हो गई है। गर्मी के मौसम का धान 86,878 हेक्टेयर भूमि में कटाई के लिए लगभग तैयार था, जो बाढ़ में नष्ट हो गया है।”

दास का मानना है कि नुकसान और ज्यादा हो सकता है, क्योंकि कई इलाके अब भी पहुंच से बाहर हैं और उनके नुकसान का आकलन करने में समय लगेगा।

दास कहते हैं – “राज्य सरकार ने अब तक 40,000 क्विंटल बीज वितरित किया है, ताकि किसान 94,000 हेक्टेयर भूमि में नए सिरे से खेती शुरू कर सकें।”

बाढ़ के बाद महिलाओं का एक अलग अनुरोध

जहां सरकार ग्रामीणों की बुनियादी जरूरतों की पूर्ती सुनिश्चित करने और उनकी आजीविका को फिर से पटरी पर लाने के लिए काम कर रही है, वहीं महिलाएं दुविधा में हैं।

बाढ़ के बाद राहत सामग्री का वितरण कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पाया कि गर्भ निरोधकों की काफी मांग है।

दरंग जिले में ग्रामीण आजीविका में सुधार करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन, ‘सतरा’ (SATRA) के कार्यकारी निदेशक, नानी कुमार सैकिया कहते हैं – “पानी का स्तर कम होते ही हमने ग्रामीणों में सूखा राशन बांटना शुरू कर दिया। हमें हैरानी हुई, जब महिलाओं ने हमसे गर्भ-निरोधक गोलियाँ और सैनिटरी पैड मांगे।” 

केले के तने से बने बेड़े में बाढ़ से बचने के बाद, तापसी खातून और उनके पति की सारी संपत्ति खत्म हो गई थी, लेकिन मददगार पड़ोसियों ने उन्हें भोजन दिया (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

सैकिया ने कहा – “वे ऐसे हालात में मां नहीं बनना चाहती, जब बाढ़ में उनका सब कुछ खत्म हो गया है।”

निराशा के बीच सकारात्मकता

प्रभावित क्षेत्रों के ग्रामीणों ने बाढ़ में सब कुछ ख़त्म हो जाने की शिकायत की।

बारपेटा जिले के दत्ता कूची गाँव की गृहिणी, तापसी खातून ने अफसोस के साथ कहा – “जब जल स्तर बढ़ने लगा, तो 16 जून को हम राहत शिविर पहुंचे। हम अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकते थे। हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है, क्योंकि हमारी सारी जमा पूंजी पानी में बह गई है। बाढ़ ने हमें कंगाल कर दिया है।”

राहत शिविर से वापस लौटे खातून जैसे बहुत से लोगों के लिए, संतोष की बात यह है कि कुछ पड़ोसियों ने भोजन और पानी की व्यवस्था की।

हिमश्री डेका और मिताली डेका भी राहत शिविर से घर वापस आ गए हैं। बाढ़ में अपना सब कुछ खोने के बावजूद वे खुश हैं। आपदा से अपनी बच्चियों की जान बचाने पर उन्हें अपने सामान का नुकसान महत्वहीन लगता है।

इस लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो में एक दंपत्ति को कमर तक पानी में से, अपना सबसे कीमती सामान लेकर एक राहत शिविर में जाते हुए दिखाया गया है (फोटो – ‘सतरा’ के सौजन्य से)

गुरविंदर सिंह कोलकाता स्थित एक पत्रकार हैं।