Her life logo

कढ़ाई ने कैंसर को मन से दूर किया

एक स्कूल ड्रॉपआउट होने के बावजूद, कांथा कढ़ाई के अपने कौशल का इस्तेमाल करके राबिया खातून ने अपने परिवार के गुजारे में मदद की। अब उनकी कढ़ाई इकाई में न सिर्फ लगभग 100 कांथा कारीगर काम करते हैं, बल्कि कैंसर से लड़ने में उनका ध्यान भी हट जाता है।

बीरभूम, पश्चिम बंगाल

मैंने कांथा कशीदाकारी अपनी माँ से सीखी।

बीरभूम के गांवों में, आपको लगभग हर घर में महिलाएं कांथा कढ़ाई करती हुई मिल जाएंगी।

कांथा हमारी कल्पनाओं को खुली छूट देती है।

यह काम पौराणिक कथाओं और महाकाव्यों के नमूनों, विषयों और पात्रों से भरा हुआ है। कांथा कढ़ाई में शैलीबद्ध पक्षी, पौधे, मछली, फूल और अन्य दृश्य भी हैं ।

इन कार्यों में आपको कारीगरों के सपने और उम्मीदें भी दिखेंगी, और रोज़मर्रा की ग्रामीण ज़िंदगी की झलक भी।

अपने गांव सत्तोर से, 19 साल की दुल्हन के रूप में भारतीय सेना के एक जवान से शादी कर के मैं बोलपुर आई थी।

शादी के कुछ ही दिनों बाद, मेरे पति अरुणाचल प्रदेश के तवांग में अपनी चौकी पर लौट गए। क्योंकि वह केवल छुट्टियों में घर आते थे, इसलिए मैंने अकेले ही परिवार की देखभाल की और अपने बच्चों को पाला।

शुरु में मैंने आसपास के गांवों की कुछ युवा लड़कियों को कांथा कौशल में सुधार के लिए प्रशिक्षण दिया और फिर उन्हें काम पर रख लिया।

मैं विशेष रूप से हाथ से बुने टसर रेशमी कपड़े पर विस्तृत और जटिल नमूनों की कढ़ाई कर के साड़ी, स्टोल, स्कार्फ और यहां तक कि पोशाक सामग्री भी तैयार करती हूँ।

नमूनों की गहनता के आधार, पर एक साड़ी को पूरा होने में चार से पांच महीने लग सकते हैं।

शुरू में स्थानीय महिलाओं को अपने साथ काम करने के लिए राजी करना आसान नहीं था। उनके पतियों को उन्हें काम करने की इजाजत देने के लिए राजी करना और भी मुश्किल था।

लेकिन क्योंकि मेरे पति इसी गांव से हैं, इसलिए समुदाय के साथ उनके अच्छे संबंध हैं। इसलिए वह अपने दोस्तों को अपनी महिलाओं को काम करने देने के लिए राजी करने में सफल रहे।

पिछले तीन दशकों में, मैंने 250 से ज्यादा महिलाओं को प्रशिक्षित किया होगा। जब युवा महिलाएं शादी कर के चली जाती हैं, तो मुझे नए लोगों को प्रशिक्षित करना पड़ता है।

अब ‘लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय’ से पंजीकृत मेरी एक कांथा यूनिट है।

मुझे खुशी है कि मैं लगभग 100 कांथा कारीगरों को काम दे रही हूँ। प्रत्येक कारीगर एक साड़ी के लिए 3,500 रुपये से 4,000 रुपये कमाती है।

वर्ष 1994 में अपनी सेवाएं पूरी करने के बाद, मेरे पति घर लौट आए। तब से वह कच्चा माल खरीदने, कारीगरों को काम देने और तैयार माल को कोलकाता में खुदरा विक्रेताओं के पास ले जाने का काम कर रहे हैं।

वर्ष 2012 में मुझे पश्चिम बंगाल के अन्य लोक कलाकारों और शिल्पकारों के साथ, लंदन में आयोजित ‘वर्ल्ड ट्रेवल मार्ट’ में भाग लेने का सौभाग्य मिला।

यह गर्व और खुशी का पल था, जब हमारे सभी उत्पाद बिक गए।

हालांकि मैं स्कूल ड्रॉपआउट हूँ, लेकिन मैंने यह सुनिश्चित किया कि मेरी दोनों बेटियों को कॉलेज की अच्छी शिक्षा मिले।

लेकिन फिर 2017 में पता चला कि मुझे ब्रेस्ट कैंसर है। अपनी कीमोथेरेपी सत्रों के बीच के समय में, मैं अपने दिमाग को बीमारी से दूर रखने के लिए कशीदाकारी करती हूँ।

दिसम्बर 2021 के आसपास मुझे, लंदन और कलकत्ता क्षितिज, रानी का चेहरा, बिग बेन (वेस्टमिंस्टर, लंदन का ‘ग्रेट क्लॉक’) एक लाल फ़ोन बॉक्स और ‘टॉवर ऑफ़ लंदन’ के नमूनों के साथ एक कांथा साड़ी बनाने का एक विचित्र अनुरोध मिला।

रानी का चेहरा एकदम सटीक बनाना मुश्किल था। इंटरनेट पर उपलब्ध तस्वीरों से बहुत मदद मिली।

मुझे पता लगा कि इस जून में एक NRI महिला ने ‘रॉयल एस्कॉट’ (शाही रेसकोर्स) में यह साड़ी पहनी थी। लंदन और भारत के समाचार पत्रों में इसके बारे में बहुत कुछ छपा था। जब मुझे इसका पता चला तो मैं बेहद खुश हुई।

मैंने एक कांथा कशीदाकारी का स्टोल भी बनाया, जिसके बारे में मुझे बताया गया है कि यह रानी को उपहार में दिया जाएगा।

मुझे कई जिला और राज्य स्तर के पुरस्कार मिल चुके हैं। मैं एक दिन एक ‘मास्टर शिल्पकार’ के रूप में राष्ट्रीय पुरस्कार पाने का सपना देखती हूँ।

फोटो – नैन्सी कासिम फ़रान, पिक्साबे और बबलू मलिक के सौजन्य से।

महाराष्ट्र के ठाणे स्थित पत्रकार हिरेन कुमार बोस का लेख। वह सप्ताहांत में किसान की भूमिका में होते हैं।