झारखण्ड का गूंजता मधुमक्खी पालन व्यवसाय

खूँटी, झारखण्ड

केलो और जराकेल गांवों में फूलदार जंगली पेड़ों के फलने-फूलने के साथ, स्थानीय आदिवासी समुदाय मधुमक्खी पालन की मूल बातें सीखते हैं और इस क्षेत्र को झारखंड का पहला शहद-केंद्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ते हैं।

महिला स्व-सहायता समूहों (एसएचजी) के एक समूह द्वारा प्रबंधित और किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रबंधित मधुमक्खी पालन ईकाई की तुलना कैसे करेंगे? इसका पता लगाने का केवल एक ही तरीका था और वह था जो ‘तोरपा रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी फॉर विमेन’ (TRDSW) ने किया। 

यह झारखंड स्थित गैर-लाभकारी संगठन दो मॉडलों का उपयोग करके मधुमक्खी पालन ईकाई की सफलता पर प्रयोग करना चाहता था – एक महिला एसएचजी समूह द्वारा प्रबंधित और दूसरा एकल लाभार्थी द्वारा।  

TRDSW की निदेशक, मारियालेना फिगेरेडो कहती हैं – “हमने एक साथ दो गांवों में बराबर संख्या में मधुमक्खियों के छत्तों के साथ शुरुआत की।”

एक करंज के पेड़ के पास खड़ी अनीमा, जिन्होंने  केलो गांव की महिलाओं को मधुमक्खियों के डर से उबरने और व्यवसाय में रुचि लेने में मदद की (फोटो – TRDSW के सौजन्य से)

खड़े फ्रेम वाले लैंगस्ट्रॉथ छत्तों में एपिस मेलिफ़ेरा (Apis mellifera) मधुमक्खियाँ रखी गई। पहले मॉडल में, खूंटी जिले के रनिया ब्लॉक के केलो गांव के चार स्वयं सहायता समूहों की 49 महिलाओं ने 50 छत्तों का प्रबंधन किया। दूसरे मॉडल में, जराकेल गांव के एक व्यक्ति ने 50 छत्तों का प्रबंधन किया।

सही स्थान का चुनाव

मधुमक्खी पालन के लिए स्थान चुनने का मानदंड, वहां से 3 किमी के दायरे में कम से कम 100 फूलदार पेड़ होना था, क्योंकि मधुमक्खियाँ छत्ते से इतनी दूरी तक फूलों से रस एकत्र करती हैं। अपने छोटे शरीर और पंखों के कारण मधुमक्खियाँ इससे ज्यादा दूर नहीं जाती हैं।

जराकेल गांव के पास करंज के पेड़ पर दिखाई दे रही मधुमक्खियाँ (फोटो – TRDSW के सौजन्य से)

TRDSW टीम के सदस्य अमृत बारा, विकाश मेहता, अजीत दहंगा और श्वेता जाधव ने, दो मधुमक्खी पालन इकाइयां स्थापित करने के लिए, उपयुक्त वनस्पतियों की पहचान करने में जंगल के मुश्किल रास्तों पर घंटों चलते हुए कई सप्ताह बिताए। टीम ने रानिया ब्लॉक के गांवों में फूलदार पेड़ों को ढूंढते और असल में एक जैसे पेड़ों की गिनती करते हुए भ्रमण किया, जो सिंहभूम-सारंडा जंगल की परिधि पर स्थित हैं और इसमें बहुत सारे फूलदार पेड़ हैं।

सही फूलों की पहचान

मुंडा जनजाति के देशी ज्ञान की बदौलत उन्हें केलो और जराकेल गांवों में सैकड़ों करंज के पेड़ (Millettia pinnata) खोजने में मदद मिली।

फिगेरेडो ने आगे कहा – “हमने पहले दिन एक और खोज की। हमने जराकेल गांव में अपने छत्तों को व्यवस्थित करना शुरू कर दिया। छत्ते रखने के 30 मिनट के भीतर, मधुमक्खियाँ पास के हनीसकल पेड़ों (Lonicera sp.), जिसे झारखण्ड में ढेलकट्टा भी कहा जाता है, पर रसपान करने लगी। अगले दिन, हमने देखा कि केलो गांव में भी मधुमक्खियां ढेलकट्टा के पेड़ों से रस इकट्ठा कर रही थीं।”

एक महिला और उसका छोटा बच्चा शहद का स्वाद चखते हुए (फोटो – TRDSW के सौजन्य से)

कभी कभी सुबह के समय मधुमक्खियाँ गम्हार (भारतीय सफेद सागौन) के पेड़ पर झुंड बना लेती थी। मार्च में, ये ढेलकट्टा और गम्हार पेड़ों के फूलों से रस इकट्ठा करती थी। आमतौर पर अप्रैल के पहले सप्ताह के बाद करंज के पेड़ पर फूल आने लगते हैं। लेकिन इस साल तेज गर्मी के कारण, फूल आने में देर हो गई। मधुमक्खियों को इमली के पेड़ों के फूलों में रस तलाश लिया। आख़िरकार अप्रैल के अंत में, करंज के पेड़ों में कलियाँ दिखाई देने लगीं और छत्ते शहद से चमकने लगे।

छत्तों की निगरानी

एसएचजी की महिलाओं के साथ टीम ने मधुमक्खी के प्रत्येक छत्ते की बारीकी से निगरानी की।

फिगेरेडो कहती हैं – “हमने जराकेल के एकल व्यक्ति लाभार्थी रूबेन कंडुलना के छत्तों पर भी नजर रखी।”

निगरानी में यात्रा की तारीख, प्रत्येक छत्ते में रानी मधुमक्खी की उपस्थिति, रानी कोशिका का निर्माण, ब्रूड पैटर्न, मधुमक्खियों का स्वास्थ्य और छत्ते में शहद की उपस्थिति दर्ज करना शामिल था। 

केलो मधुमक्खी ईकाई में महिलाएं शहद निकालते हुए (फोटो – TRDSW के सौजन्य से)

नियुक्त किए गए मधुमक्खी निरीक्षक (ABI) का नाम भी दर्ज किया जाता था। TRDSW ने केलो गांव के लिए विकाश मेहता, अनमोल गुरिया और रोशन गुरिया को और जराकेल गांव के लिए अजीत दहंगा को ABI नियुक्त किया था। जानकारी दर्ज करने और मधुमक्खी ईकाई की प्रगति की निगरानी के लिए ‘छत्ता निरीक्षण पत्रक’ तैयार किए गए थे।

मधुमक्खी पालन व्यवसाय का शुभारंभ

करंज का मौसम शुरू होने से पहल, हमने मधुमक्खियों को संभालने के बारे में लाइव प्रदर्शन शुरू कर दिया था। शुरू में हर कोई मधुमक्खी के काटने से डरता था और महिलाओं को छत्तों का निरीक्षण करने में थोड़ा समय लगा।

लेकिन TRDSW ने समुदाय को नियमित छत्ता निरीक्षण के बारे में सिखाना जरूरी समझा। कुछ हफ्तों के बाद, केलो गांव की अनीमा के नेतृत्व में प्रत्येक एसएचजी सदस्य रानी मधुमक्खी की पहचान करने और प्रत्येक छत्ते के स्वास्थ्य की जांच करने में सक्षम हो गई।

निकाले गए शहद को एक जाली से छाना जाता है (फोटो – TRDSW के सौजन्य से)

TRDSW टीम के सदस्यों ने मधुमक्खी पालन के दोनों स्थानों पर मधुमक्खी पालन पर नियमित सत्र और लाइव प्रदर्शन आयोजित किए। यह अभ्यास ‘लागत-लाभ विश्लेषण’ पर एक सत्र के साथ शुरू किया जाता था, जिसमें ग्रामीण समुदाय को निवेश और बिक्री पर लाभ के महत्व को समझाने के लिए, एक ‘लागत पर लाभ’ नाम का सूत्र विकसित किया गया था।

शहद के नमूने चखना

लेखक ने प्राकृतिक मिश्रण के लिए महाबलेश्वर से पश्चिमी घाट के शहद और जैविक मिश्रण के लिए बुलढाणा से सूरजमुखी के शहद के नमूनों के लिए एक सत्र आयोजित किया। गाँव के पुरुष, महिलाएँ और बच्चे इन विभिन्न प्रकार के शहद के विभिन्न स्वादों, बनावटों, रंगों और कीमतों से हैरान थे।

जब केलो की महिलाओं को पता चला कि हम महाराष्ट्र के महाबलेश्वर की तलहटी में स्थित भारत के पहले शहद गांव मंगहर से शहद के नमूने लाए हैं, तो उन्होंने मधुमक्खी पालन इकाइयों को देखने और वहां के ग्रामीणों से सीखने के लिए उस स्थान पर जाने में रुचि व्यक्त की।

छत्तों में जमा शहद (फोटो – TRDSW के सौजन्य से)

एसएचजी की एक सदस्य सेसिलिया ने कहा – “हम इस मंगहर की यात्रा का टिकट खरीदने के लिए चावल की बोरियां बेचेंगे।”

अनीमा ने जवाब दिया – “हमें अपने गांव केलो को झांखण्ड का ‘शहद ग्राम’ बनाना चाहिए।”

मधुमक्खी पालन का पूर्ण व्यवसाय

‘द ग्रो फण्ड, एडेलगिव फाउंडेशन’ के सहयोग से मधुमक्खी पालन कार्यक्रम के शुरू करने से पहले, इस साल के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर TRDSW के मेगा इवेंट के दौरान, हमने वनस्पति की पहचान और शहद की किस्मों के रंग, बनावट और मात्रा पर एक जागरूकता सत्र आयोजित किया था।

TRDSW की मीना कुमारी और नामलेन गुरिया ने 3,000 महिला प्रतिभागियों को लैंगस्ट्रॉथ छत्तों के घटकों के बारे में जानकारी दी। स्टॉल पर आए लोगों ने करंज शहद का नमूना लिया। स्टॉल पर लगभग 25 किलोग्राम करंज शहद, 500 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा गया।

जराकेल गांव में एक लैंगस्ट्रॉथ छत्ता (फोटो – TRDSW के सौजन्य से)

कार्यक्रम के हिस्से के रूप में, मई में कई और ज्ञानवर्द्धन सत्र आयोजित किए गए। तब तक सभी 50 लाभार्थियों ने मधुमक्खी पालन व्यवसाय से जुड़ी महत्वपूर्ण शब्दावली सीख ली थी।

मुस्कुराते हुए अनीमा कहती हैं – “जब मैं हर सुबह उठती हूँ, तो मधुमक्खियों का घूंघट पहनकर अपने घर से बाहर निकलती हूँ। मैं अपने पति से कहती हूँ कि मैं शौच के लिए नहीं, बल्कि छत्ते के पास जा रही हूँ।”

कार्यक्रम के पहले चरण में, केलो में 40 किलोग्राम तथा जराकेल में 26 किलोग्राम शहद निकाला गया। शहद को बेलनाकार शहद निकालने की मशीन का इस्तेमाल करके हाथों से निकाला गया था। प्रत्येक मशीन 60 किलोग्राम तक शहद निकाल सकती है और इकट्ठा कर सकती है। इस शुद्ध करंज शहद को छान कर, बिक्री के लिए खाद्य ग्रेड बर्तनों में रखा गया है।

शीर्ष पर मुख्य फोटो में जराकेल गांव में रुबेन कंडुलना को मधुमक्खियों के छत्ते पर काम करते दिखाया गया है (फोटो – TRDSW के सौजन्य से)

श्वेता जाधव झारखण्ड के खूंटी जिले की तोरपा रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी फॉर विमेन (TRDSW) में टीम लीड हैं।