चित्तूर में इस साल आम की खेती रसीली नहीं

चित्तूर, आंध्र प्रदेश

बेमौसम भारी बारिश और हवाएं आंध्र प्रदेश के चित्तूर के किसानों की आम की पैदावार को नुकसान पहुंचा रही हैं, जो स्थानीय जूस कारखानों और निर्यात बाजारों को आपूर्ति करते हैं।

अब आपको बेचने वालों की गाड़ियों और सुपरमार्केट की शेल्फ में आम भरे हुए दिखाई नहीं देंगे, क्योंकि आम का मौसम खत्म होने वाला है।

आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के किसान उन बहुत से किसानों में से हैं, जिन्हें इस साल आम के मौसम से फायदा होना चाहिए था। लेकिन नहीं हुआ।

कोथुर गांव के किसान, एन सुगुना ने पिछले साल अपने 4 एकड़ के आम के बगीचे पर 1 लाख रुपये खर्च किए। पेड़ों के चारों ओर गीली घास डालने से लेकर, उर्वरक छिड़कने तक, उन्होंने अच्छी उपज के लिए जरूरी सभी अनुष्ठानों का पालन किया।

लेकिन अपेक्षा के कम से कम 16 टन के मुकाबले, उसकी पैदावार सिर्फ 3.5 टन थी। उन्होंने आमों को एक जूस फैक्ट्री को 60,000 रुपये में बेच दिया।

छह साल पहले आम की खेती शुरू करने वाली सुगुना कहती हैं – ”मेरी इतनी कम पैदावार कभी नहीं हुई थी।”

जिले भर के बहुत से किसानों की बेमौसम बारिश को मुख्य दोषी ठहराने वाली यही कहानी है।

चित्तूर में इस साल आम की उपज कम क्यों?

नवंबर 2021 से मई 2022 तक बेमौसम बारिश के कारण उपज में भारी गिरावट आ रही है।

हालांकि किसानों को नुकसान हुआ, लेकिन उन्होंने अपने आम जूस फैक्टरियों को बेचे, क्योंकि उनसे मिली कीमत मंडी से बेहतर थी (छायाकार – जितेंद्र प्रसाद)

जिला बागवानी अधिकारी, यू. कोटेश्वर राव कहते हैं – “रायलसीमा क्षेत्र के अधिक बारिश वाले चित्तूर जिले में, आमतौर पर नवंबर से मई तक भारी बारिश नहीं होती है। यही जलवायु है, जो आम की खेती के लिए उपयुक्त है।”

उन्होंने विलेज स्क्वेयर को बताया – “लेकिन पिछले तीन वर्षों में बेमौसम बारिश हुई है। नवंबर और जनवरी के बीच अत्यधिक बारिश से फूलों पर असर पड़ता है।”

वेल्कुर गांव में, एक नाले के पास किसान राजगोपाल रेड्डी के 2 एकड़ के बाग़ में मई की बारिश का पानी जुलाई तक जमा था। 

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रेड्डी कहते हैं – “बारिश इतनी तेज़ थी कि नदी अब भी उफान पर है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।”

अपने खेत में घुटने तक पानी भरा होने के कारण, सुगुना सही समय पर कीटनाशकों का छिड़काव नहीं कर सकीं।

इस साल मई में ‘असानी’ चक्रवात के प्रभाव से हुई भारी बारिश और तेज़ हवाओं के कारण कच्चे आम बड़ी मात्रा में गिर गये।

इस साल भारी बारिश और तेज़ हवाओं के कारण चित्तूर जिले के किसानों के आम की पैदावार ख़राब हुई (छायाकार – जितेंद्र प्रसाद)

सुगुना कहती हैं – “हमारे खेत में कम से कम 350 किलो कच्चे आम पेड़ों से बहुत जल्दी टूट कर गिर गए। हमें उन्हें 4 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचना पड़ा। इसमें मजदूरी की लागत भी नहीं निकली थी। मैंने लगभग 100 किलो को ज़मीन पर ही सड़ जाने दिया।”

कोई मुआवज़ा नहीं

राज्य के राजस्व विभाग के आदेश के अनुसार, आम के किसान 20,000 रुपये प्रति हेक्टेयर के मुआवजे के पात्र हैं, बशर्ते उनकी फसल का नुकसान 33% हो।

कोटेश्वर राव ने स्पष्ट किया – “आदेश के अनुसार, पेड़ तने टूटने के साथ पूरी तरह से उखड़े होने चाहिए। उस परिभाषा के अनुसार जिले के सिर्फ 50 किसान मुआवजे के पात्र थे।

वेल्कुर गांव के नाले के नजदीक के कम से कम 15 खेतों में पैदावार सामान्य का 5% से भी कम थी। विलेज स्क्वेयर से बात करने वाले 13 किसानों में से नौ को मुआवजे के बारे में जानकारी नहीं थी, जबकि बाकी को लगा कि यह केवल नाम के लिए है।

मुझे उम्मीद है कि इस साल हमें फिर बारिश का अभिशाप नहीं झेलना पड़ेगा। 

रेड्डी कहते हैं – “मुझे किसी मुआवज़े के बारे में जानकारी नहीं है। मुझे उम्मीद है कि इस साल फिर से हमें बारिश का अभिशाप नहीं झेलना पड़ेगा।”

किसानों का मुआवजे के नियमों में बदलाव का सुझाव

किसानों का सुझाव है कि मौजूदा नीति में बदलाव किया जाए, जिसमें पेड़ उखड़ने पर ही मुआवजा दिया जाता है।

मई में बारिश इतनी तेज़ थी कि राजगोपाल रेड्डी जैसे किसान, जिनके खेत एक नाले के किनारे हैं, उनके खेतों में महीनों तक पानी जमा रहा (छायाकार – जितेंद्र प्रसाद)

एक किसान कार्यकर्ता, नागेश्वर राजू सवाल करते हैं – “बहुत ज्यादा आम के पेड़ नहीं गिरे थे। लेकिन छोटे किसानों का सब कुछ बारिश की भेंट चढ़ गया। क्या उन्हें नुकसान की भरपाई नहीं की जानी चाहिए?” 

इसके अलावा, राजस्व विभाग के अधिकारी गांवों का सर्वेक्षण तभी करते हैं, जब मंडल मुख्यालय में तेज़ हवाएं और अत्यधिक वर्षा दर्ज की जाती है।

हालांकि वेलकुर में ज्यादा बारिश हुई, लेकिन मंडल मुख्यालय में नहीं हुई। इसलिए वेलकुर के किसानों को कोई मुआवजा नहीं मिला।

राजू कहते हैं – “सरकार को राजस्व गांव के चरम मौसम की घटनाओं को ध्यान में रखना चाहिए, न कि मंडल के।” एक मंडल में लगभग 15 राजस्व गांव होते हैं।

कम उत्पादन

एक एकड़ में 7-8 टन का उत्पादन अच्छी उपज माना जाता है। लेकिन इस साल किसानों को एक एकड़ में सिर्फ एक टन या उससे भी कम पैदावार मिल सकी।

जिला बागवानी विभाग के अनुसार, कुल पैदावार 3 लाख टन हुई, जबकि आमतौर पर यह 8 लाख टन होती थी।

‘कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन फार्मर्स एसोसिएशन’ के सचिव, कोथुर बाबू कहते हैं – “अविभाजित जिले (चित्तूर और श्री बालाजी जिलों को मिलाकर) के लगभग 1.25 लाख हेक्टेयर में केवल 35% पैदावार हुई है।”

निर्यात के आँकड़े भी निराशाजनक हैं। हर साल लगभग 100 टन आम निर्यात करने वाले चित्तूर जिले से इस साल सिर्फ 52 टन निर्यात हुआ।

राव जलवायु में गड़बड़ी को कम करने पर जोर देते हैं।

चित्तूर जिले में आम की पैदावार बेमौसम बारिश के कारण सामान्य से कम हुई (छायाकार – जितेंद्र प्रसाद)

कृष्णापुरम के एक किसान, एस. प्रभाकर नायडू ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “मुझे कम से कम 40 टन की उम्मीद थी। लेकिन मेरी पैदावार सिर्फ 15 टन हुई। पिछले साल यह 70 टन हुई थी।”

बेहद कम कीमतें

कम पैदावार और उसके कारण कम आपूर्ति को देखते हुए, किसानों को अच्छी कीमत की उम्मीद थी।

अन्य किसानों की तरह, प्रभाकर नायडू ने भी अपने आम एक जूस फैक्ट्री को 18 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचे। उन्हें थोक मंडियों की तुलना में यह कीमत बेहतर लगती है।

जिले की लगभग 20 जूस फैक्ट्रियां, जो जूस के लिए ‘तोतापुरी’ (उर्फ ‘बेंगलूरा’) किस्म के आमों से गूदा निकालती हैं, प्रमुख खरीदार हैं।

जहां मंडी की कीमतें नीलामी से तय होती हैं, वहीं जूस फैक्टरियों के लिए कीमतें कारखाना मालिकों का एक समूह तय करता है।

राजू कहते हैं – “फैक्टरियां किसानों के हितों पर विचार किए बिना कीमत तय करती हैं।” उनका सुझाव है कि राज्य सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के लिए एक समिति का गठन करे। 

जहां किसानों का कहना है कि यह कीमत उनके साथ अन्याय है, वहीं कारखाने के मालिक आंकड़ों का हवाला देते हुए कहते हैं कि यह सभी वर्षों में सबसे अच्छी है।

पवन कुमार जैसे किसान एकीकृत खेती करते हैं, क्योंकि वे अब केवल आम की खेती पर निर्भर नहीं रह सकते हैं (छायाकार – जितेंद्र प्रसाद)

नाम न छापने की शर्त पर एक फैक्ट्री मालिक ने कहा – “हम व्यापारियों के विचारों को ध्यान में रखते हुए कीमत तय करते हैं। कीमत के फैसले में किसानों की कोई भागीदारी नहीं है।”

आम किसानों के अस्तित्व के लिए विविधीकरण आवश्यक

उनकी अपेक्षा से कम कीमतें होने के कारण, बहुत से किसानों को भारी नुकसान हुआ।

मेरा जितना खर्च हुआ उतना भी मुझे नहीं मिला

अपने 10 एकड़ के बाग पर 3 लाख रुपये खर्च करने वाले नायडू कहते हैं – “मेरा जितना खर्च हुआ, मुझे उतना भी नहीं मिला।”

मौसम में होने वाले मुनाफ़े से ही आम किसान पूरे साल ऊर्जावान बने रहते हैं।

लेकिन कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि आम की खेती में अंतर-फसल के ज्यादा विकल्प नहीं हैं।

राजू कहते हैं – “चंदन जैसी नकदी फसलें मेड़ों पर लगाई जा सकती हैं। पेड़ों के पांच साल का होने तक मूंगफली जैसी फसल को अंतर-फसल के रूप में लगाया जा सकता है।”

उनमें से घाटे से जूझ रहे कुछ लोग वैकल्पिक आजीविका पर विचार कर रहे हैं।

सुगुना कहती हैं – “यदि हम सिर्फ आम उगाने पर निर्भर रहे, तो हमारा कर्ज बढ़ जाएगा। मैं आम के खेत से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए गायें पाल रही हूँ।”

कनिपक्कम के एक आम किसान पवन कुमार, जो एक पोल्ट्री फार्म के मालिक भी हैं, का कहना है कि खेती के एकीकृत तरीकों के बिना अपने परिवार का भरण-पोषण करना असंभव होगा।

इस लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो में आमों से भरी एक टोकरी दिखाई गई है (फोटो – ‘पब्लिक डोमेन पिक्चर्स’, पिक्साबे के सौजन्य से)

जितेंद्र प्रसाद एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर और एक स्वतंत्र लेखक हैं।