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देशी बीजों के संरक्षण के लिए छोड़ी कॉर्पोरेट नौकरी

प्रकृति की विविधता और संरक्षणवादियों के काम से अभिभूत, सौम्या बालासुब्रमण्यम के मन में एक विचार पैदा हुआ, जिसने उन्हें अपनी आईटी नौकरी छोड़ने और स्थानीय किसानों के साथ बीज संरक्षण समूह बनाने की चुनौतीपूर्ण भूमिका अपनाने के लिए मजबूर कर दिया।

इरोड, तमिलनाडु

क्या दालों की इतनी सारी किस्मों को देखना आपके जीवन की दिशा बदलने में भूमिका निभा सकता है?

ख़ैर, मेरे साथ ऐसा हुआ।

मुझे 2017 में दिल्ली में ‘ऑर्गेनिक वर्ल्ड कांग्रेस’ के एक स्टॉल पर राजमा की 45 किस्में देखने को मिली। मैंने दालों की ऐसी विविधता कभी नहीं देखी थी। दुकानों में हमें ज्यादा से ज्यादा दो तीन किस्में दिखती हैं।

यह मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

मेरा परिचय जैविक खेती पर वंदना शिवा और जी नम्मालवार जैसे दिग्गजों के कार्यों से भी हुआ। संरक्षण कृषि और बीज प्रभुत्व के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य करने वाले डॉ. जी वी रामंजनेयुलु (सतत कृषि केंद्र) और कृष्णा प्रसाद (सहज समृद्ध) जैसे लोगों के साथ मेरी बातचीत ने मुझे प्रेरणा और दिशा दी।

उन्होंने लुप्तप्राय बीज किस्मों के संरक्षण के लिए एक मॉडल तैयार करने में मेरी मदद की।

मार्च 2020 में मैंने घरेलू बागवानी करने वालों के लिए बीज और सामग्री के लिए एक ऑनलाइन स्टोर शुरू किया।

एक साल बाद, मैंने तमिलनाडु के इरोड जिले के अपने गांव कांजीकोविल में एक सामाजिक उद्यम, ‘HOOGA (हूगा) सीड कीपर्स कलेक्टिव’ शुरू किया। ‘हूगा’ “किसानों की उत्पीड़ित पीढ़ी की मदद” का छोटा नाम है। हूगा का उद्देश्य देशी बीजों का संरक्षण है।

फिर मैंने कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के उन चुनिंदा किसानों से मुलाकात की, जो देशी और पारंपरिक बीजों से सब्जियां उगाते हैं।

मेरी मुलाकात बेंगलुरु में अपनी छत पर 100 किस्म के कंद उगाने वाली कोकिला, और बाजार में बहुत कम दिखने वाली हल्दी की सांबा किस्म उगाने वाली ईस्वारामूर्ति और विंग्ड बीन्स एवं लौंग बीन्स उगाने वाली वसंती से हुई।

मैं एक आदिवासी किसान मधेश से मिली, जिन्हें कसावा की विविधता के बारे में व्यापक ज्ञान है और वह उन्हें उगाते भी हैं। और केरल के 100 साल के एक किसान से मिली, जो अभी भी नारियल के पेड़ों पर चढ़ते हैं!

यह तीन महीने लंबी यात्रा थी, जो आंखें खोल देने वाली थी।

अपने गाँव में हूगा में हमने एक बीज बैंक शुरू किया।

हमारे बीज बैंक में मौजूद कुछ ही किस्में हैं – जलवायु-अनुकूल शिवगिरी कांटेदार बैंगन, सिर के आकार का सफेद बैंगन, बकरी के पैर के सूप जैसे स्वाद वाले ‘बकरी-पैर कंद’, बहु-शाखा पहाड़ी भिंडी, एक मीटर लंबा लोबिया, हर पौधे से 50 से ज्यादा फल देने वाली कद्दू की किस्म, ‘ट्रेफल डु टोगो’ टमाटर, हाथी दांत भिंडी।

अपने स्वयं के खाद्य वन के अलावा, हम 35 किसानों के साथ काम करते हैं, जो हमारे बीज बैंक के लिए सब्जियां उगाते हैं। इनमें पुरुष और महिलाएँ, दोनों शामिल हैं। 

अब तक हमने 100 से ज्यादा सब्जियों का संरक्षण और प्रचार-प्रसार किया है, जिनमें से 15 दुर्लभ और 30 अति दुर्लभ हैं।

तीन महीने में एक बार हम देशी टिकाऊ खाद्य उत्पादन और बीज बचत के तरीकों के स्थानीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण करने के लिए बीज यात्रा आयोजित करते हैं।

हाल ही में पूसा कृषि आईसीएआर – आईएआरआई उपज 2022 से मिले अनुदान से हमें ज्यादा किस्में उगाने में मदद मिलेगी और अधिक फसल देने वाली पौष्टिक सब्जियों की तलाश करने वालों को भी मदद मिलेगी।

ज्यादातर जैविक किसान देशी पारम्परिक सब्जियाँ उगाना चाहते हैं। हम उनके फार्म को प्रमाणित बीज फार्म बनाने में मदद करते हैं।

और मुझे कहना होगा कि खेती में यह प्रवेश, वास्तव में मेरे करियर में एक बदलाव था।

क्योंकि मैं एक किसान परिवार से हूँ, इसलिए मैं कृषि से संबंधित कुछ पढ़ना और करना चाहती थी।

लेकिन मेरे माता-पिता इसके ख़िलाफ़ थे।

इसलिए मैंने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। मैंने कुछ साल एक बड़ी निजी कंपनी के लिए काम किया।

मैंने मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज (TISS) में सोशल वर्क की पढ़ाई करने के लिए, एक गैर-लाभकारी संगठन के लिए स्वयंसेवा करते हुए, मैंने अपनी नौकरी छोड़ने की हिम्मत जुटाई। 

मैंने अपनी पढ़ाई में बेहतरीन प्रदर्शन किया और ईनाम भी जीते। ठाणे की महादेव कोली जनजाति के साथ काम करना एक अलग अनुभव था। बाद में मैं उत्तराखंड की ‘हिमालय पर्यावरण अनुसंधान और शिक्षण संस्थान’ में शामिल हो गई और फल प्रोसेसिंग का एक उद्यम शुरू किया, जिसमें पहाड़ों की महिला किसानों को शामिल किया गया। मुझे एहसास हुआ कि तब पहाड़ पर खेती करना कितना कठिन था।

यही वह वक्त था, जब मेरी रुचि बीज संरक्षण की ओर बढ़ी और मैंने ‘हूगा’ की शुरुआत की।

दिलचस्प बात यह है कि मेरे माता-पिता, जो कभी मेरे खेती करने के ख़िलाफ़ थे, आज मेरे सबसे प्रबल समर्थक हैं और मेरे काम को भी महत्व देते हैं।

लेख की मुख्य फोटो में सौम्या बालासुब्रमण्यम को विशेष बच्चों को देशी बीज बोने का तरीका सिखाते दिखाया गया है। फोटो – ‘हूगा सीड कीपर्स कलेक्टिव’ के सौजन्य से। 

महाराष्ट्र के ठाणे स्थित पत्रकार हिरेन कुमार बोस की रिपोर्ट। वह सप्ताहांत में एक किसान के रूप में भी काम करते हैं।