खेत-समृद्धि को गति देता एक बस ड्राइवर

and सतारा, महाराष्ट्र

मिलिए एक बस ड्राइवर अमोल कदम से, जो अपने गांव में खेती में मदद कर रहे हैं।

40 वर्षीय अमोल कदम, सतारा जिले के सूखा-संभावित पूर्वीं हिस्सों में अलग थलग और ख़राब हालात में बसे एक गाँव, जयगांव में रहते हैं। कम उम्र में ही उन्होंने पलायन किया और मुंबई एवं गोवा के बीच चलने वाली निजी बसों में सहायक और फिर ड्राइवर के रूप में काम करने लगे।

कदम कहते हैं – ”अब मैं अपने गांव में रहता हूँ और सिर्फ जरूरी होने पर ही बाहर जाता हूँ और फिर भी मैं पहले से कहीं ज्यादा पैसा कमाता हूं।”

वह शायद इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण हैं कि एक एकजुट गांव अपनी विपरीत परिस्थितियों से उबरने के लिए संघर्ष करते हुए कितना नाटकीय बदलाव ला सकता है।

पानी की कमी का समाधान ढूंढना

एक बड़ी पहाड़ी के नीचे स्थित, जमीन की ढलान पश्चिम की ओर है और पहाड़ियों के पास की मिट्टी की परत पतली है। मुश्किल से 600 मि.मी. सालाना बारिश के साथ, गाँव के निवासियों को न सिर्फ किसी तरह शुष्क भूमि पर खेती करनी पड़ती थी, बल्कि हर साल फरवरी के बाद पीने के पानी की भारी किल्लत झेलनी पड़ती थी।

पानी की समस्या हल होने तक, जयगांव के किसान शुष्क-भूमि खेती किया करते थे (फोटो – गौरव गुप्ता, ‘पिक्साबे’ से साभार)

सरपंच, नाथाभाऊ कहते हैं – “हम पीने के पानी के टैंकर का इंतजार करते थे, जो सामूहिक कुएं में पानी डाल जाता था। तब सभी परिवारों में पानी भर लेने की कोशिश में होड़ लग जाती थी।

उनका कहना था कि रस्सियाँ उलझ जाती थी और कभी-कभी टूट जाती थी, जिससे धातु के बर्तन नीचे गिर जाते थे।

वह कहते हैं – “अब हम पूरे भरे कुएं के साफ पानी में कई बर्तन चमकते हुए देख सकते हैं। इस साल 18 जून को यह बिना किसी बारिश के लबालब हो गया।”

गाँव का एकजुट प्रयास

यह परिवर्तन 2016 में बड़ी संख्या में जल संरक्षण संरचनाओं के साथ साथ, ढलानों के ऊपरी हिस्सों के उपचार के लिए, गांव के एकजुट प्रयास से आया।

वे एक लोकप्रिय और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अविनाश पोल से प्रेरित हुए, जो ‘पानी फाउंडेशन’ के साथ स्वेच्छा से काम करते हैं। उनके उत्साह और संयुक्त प्रयासों के साथ-साथ डॉ. पोल के सकारात्मक सहयोग से, गाँव में कई निजी और सार्वजनिक एजेंसियों की मदद से कई पहल लागू की गई। पानी की समस्या अस्थायी रूप से हल हो गई।

किसानों को सोयाबीन के बीज-गुणन (मल्टिप्लिकेशन) से परिचित कराया गया (फोटो – जूलियो सीजर गार्सिया, ‘पिक्साबे’ से साभार)

ग्रामवासी खेती में पानी का समझदारी से उपयोग सुनिश्चित करने की पहल में शामिल हुए और उन्होंने कम पानी की जरूरत वाली फसलों को अपनाया।

बीज-गुणन से ग्रामीणों को फलने-फूलने में मदद

डॉ. पोल ने ग्रामवासियों को एक कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सोयाबीन बीज की एक किस्म के लिए ‘बीज-गुणन गांव’ बनने का विशेषाधिकार पाने में मदद की। कदम बीज गुणन में लगे साठ किसानों में से एक थे।

उनके बीज उत्पादन समन्वयक, शंकरराव कहते हैं – “हमें ग्रेड-II बीज के 4,000 रुपये प्रति बैग और ग्रेड-I बीज के लिए 5,000 रुपये मिलते हैं। इतने वर्षों में हमने यह सुनिश्चित किया है कि किसान बीज गुणन के सख्त अनुशासन का पालन करें और इसलिए आज तक बीज की किसी भी खेप को अस्वीकृत नहीं किया गया है।”

इस व्यवहार की बदौलत कदम समृद्ध हुए।

“मेरी 5 एकड़ ज़मीन है। मैंने 200 बैग बीज पैदा किया और पहुँचाया है। इससे मुझे 4 महीने में 5 एकड़ से 8 लाख रुपये मिले।”

उन्होंने संकर नस्ल की कई गायें भी पाल रखी हैं और ‘संकल्प’ नाम की एक स्थानीय डेयरी को रोज 70-80 लीटर दूध पहुंचाते हैं। इस दूध की प्रतिदिन कीमत 2100 रुपये है। 

कदम ने विलेज स्क्वेयर को बताया – ”दूध से मैं साल में 4 लाख रुपये कमा लेता हूँ।” उन्होंने एक लाख रुपये मूल्य की ज्वार भी पैदा की और ज्वार से उतनी ही कीमत का चारा भी तैयार किया। कदम कहते हैं – ”अब मेरी कुल आय लगभग 12 लाख रुपये है।”

किसानों को सोयाबीन बीज के कम से कम 4,000 रुपये प्रति बैग मिलते हैं (फोटो – अलेक्जेंडर पोनोमारेव, ‘पिक्साबे’ से साभार)

यह देखते हुए कि उनकी 5 एकड़ ज़मीन है, यह आय जमीन के लगभग 60 रुपये प्रति वर्ग मीटर के बराबर बैठती है। यह एक अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ग मीटर के लगभग है, जिसे स्वर्गीय पॉल पोलक ने छोटे किसानों को गरीबी से निकालने के लक्ष्य के रूप में निर्धारित किया था।

यह टी-20 का जमाना है। गन्ने की फसल एक टेस्ट मैच की तरह है। आपको 18 महीने बाद पैसा मिलता है। कोई भी इतना लंबा इंतजार नहीं करना चाहता। सोयाबीन बीज उत्पादन टी-20 की तरह है – आपको सीधे 4 महीने में पैसा मिल जाता है।

नाथाभाऊ, सरपंच

कदम दावा करते हैं – “मैंने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है और मेरी पत्नी प्रियंका 10वीं कक्षा तक पढ़ी है। हम अपने माता-पिता के साथ खेती और जानवरों की देखभाल का काम करते हैं। यदि हम किसी शहर में बस जाते, तो भी जितना कमाने की उम्मीद कर सकते थे, यह उससे कहीं ज्यादा है। और यहां अपने गांव में हमारा जीवन कहीं बेहतर है।”

जिले में अच्छी चलने वाली कई चीनी मिलों के प्रभाव से बड़ी मात्रा में गन्ने की खेती को बढ़ावा मिला है। सरपंच, नाथाभाऊ कहते हैं – “अब टी-20 का जमाना है। गन्ने की फसल एक टेस्ट मैच की तरह है। आपको 18 महीने बाद पैसा मिलता है। कोई भी इतना लंबा इंतजार नहीं करना चाहता। सोयाबीन बीज उत्पादन टी-20 की तरह है – आपको 4 महीने में पैसा मिल जाता है।”

संजीव फणसळकर विकास अण्वेष फाउंडेशन, पुणे के निदेशक हैं। वह इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट आनंद (इरमा) में प्रोफेसर रह चुके हैं। फणसळकर भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद से फेलो हैं।

लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो में जयगांव के किसानों द्वारा पैदा किए गए सोयाबीन के बीज दिखाए गए हैं (फोटो – डेनिएला पाओला अलछापर, ‘अनस्प्लैश’ से साभार)