फोटो निबंध: “फटसींगु” – कारगिल का “चमत्कारी” खुबानी पेय
फटसींगु, लद्दाख के कारगिल क्षेत्र का खुबानी से बना एक पेय है, जो सभी आयु वर्गों में बेहद लोकप्रिय है। फोटो निबंध में, मैंने इसकी अत्यधिक लोकप्रियता के कुछ कारणों पर प्रकाश डाला है।
फटसींगु, लद्दाख के कारगिल क्षेत्र का खुबानी से बना एक पेय है, जो सभी आयु वर्गों में बेहद लोकप्रिय है। फोटो निबंध में, मैंने इसकी अत्यधिक लोकप्रियता के कुछ कारणों पर प्रकाश डाला है।
कारगिल में लोगों के लिए सेब नहीं, बल्कि खुबानी से बना पेय फटसींगु है, जो डॉक्टर की जरूरत से बचाता है (छायाकार – नासिर यूसुफी)
फटसींगु सूखे खुबानी को उबालकर बनाया जाता है। इसे एक मिट्टी के बर्तन में छान लिया जाता है, जहां इसे घर के ठंडे हिस्से में कई दिनों तक रखा जा सकता है (छायाकार – नासिर यूसुफी)
कारगिल शहर के बाहरी इलाके में एक नदी के किनारे के गांव हरदास के 65 वर्षीय किसान हाजी अब्दुल्ला कहते हैं – “मैं जब भी थका हुआ महसूस करता हूँ, तो इसका एक गिलास मुझे तरोताजा महसूस कराने के लिए काफी है” (छायाकार – नासिर यूसुफी)
यह खुबानी पेय को पारम्परिक रूप से, अपच से लेकर मूत्र संक्रमण और भूख न लगने तक जैसी अनेक बिमारियों के लिए रामबाण माना जाता है (छायाकार – नासिर यूसुफी)
कारगिल के प्रमुख खुबानी उत्पादक क्षेत्रों, हरदास और शिलाकचाय के गांवों में बहुत से बुजुर्ग लोग लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य का श्रेय फटसींगु को देते हैं (छायाकार – नासिर यूसुफी)
हरदास के बारहवीं कक्षा के छात्र मोहम्मद इरफान सहित युवा पीढ़ी का मानना है कि यह पेय तुरंत ऊर्जा बढ़ाने वाला है और उनके मूड को बेहतर बनाता है (छायाकार – नासिर यूसुफी)
फटसींगु का सेवन आमतौर पर ऐसे ही किया जाता है, लेकिन कई लोग इसे जौ से बनी रोटी ‘पफा’ के साथ भी खाना पसंद करते हैं (छायाकार – नासिर यूसुफी)
फटसींगु रमज़ान के दिनों में इस धारणा के कारण लोकप्रिय है कि इसे सुबह-सुबह पीने से दिन भर के लिए पानी की प्यास बुझती है (छायाकार – नासिर यूसुफी)
शीर्ष के फोटो में सूखी खुबानी दिखाई गई हैं (छायाकार – तान्या सिड – शटरस्टॉक)
नासिर यूसुफी श्रीनगर स्थित एक पत्रकार हैं।
ओडिशा में बहुत से आदिवासी किसान सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण गरीबी रेखा से नीचे रह रहे थे। ‘हर्षा ट्रस्ट’ के एक सामाजिक कार्यकर्ता के अनुसार, नए बोरवेल और कृषि प्रशिक्षण से उन्हें अब अधिक कमाई करने में मदद मिल रही है।
ओडिशा की मुख्य भूमि से कटा, ‘स्वाभिमान आँचल’ का भीतरी इलाका सदियों से सामान और लोगों को ढोने के लिए घोड़ों पर निर्भर था, लेकिन आधुनिक सड़कों ने इन जानवरों को हाशिए पर धकेल दिया है।
जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और मूर्खतापूर्ण मानवीय हस्तक्षेप ने उत्तराखंड में पारंपरिक किसानों को मुश्किल में डाल दिया है, वे नई फसलें और आजीविका अपना रहे हैं।