इको-टूरिज्म कैंप में काम करने वाली महिलाओं के लिए फायदे का सौदा

अंगुल, ओडिशा

जहां ओडिशा के खूबसूरत ‘सतकोसिया टाइगर रिजर्व’ के पांच इको-पर्यटन शिविर पर्यटकों के लिए एक कुदरती विश्राम स्थल प्रदान करते हैं, वहीं वे महिला कर्मचारियों के आत्मविश्वास और आय को भी बढ़ाते हैं।

40-वर्षीय रूपई भोई स्वादिष्ट व्यंजन बनाने में माहिर हैं। इसलिए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि उनके पाक कौशल ने उन्हें सतकोसिया टाइगर रिजर्व के भागामुण्डा इको-टूरिज्म कैंप में नौकरी दिला दी ।

नीली पहाड़ियों की पृष्ठभूमि के साथ हरियाली के बीच स्थित, भागामुंडा शिविर में पर्यटकों के लिए पांच कॉटेज हैं।

भागामुण्डा सतकोसिया टाइगर रिज़र्व के भीतर स्थित एक खूबसूरत गांव है। हालांकि सतकोसिया में अब बाघ नहीं हैं, फिर भी उन्हें दोबारा लाने की योजनाएँ हैं।

सुंदर सतकोसिया घाटी पर्यटकों को प्रकृति में सांस लेने और भरपूर वन्य जीवन देखने में मदद करती है। रिज़र्व को दो हिस्सों में बाँटने वाली ‘महानदी’ नदी इसके प्रमुख आकर्षणों में से एक है। नाव की सवारी से ‘मार्श’ मगरमच्छ, घड़ियाल और यहां तक कि गंभीर रूप से लुप्तप्राय बटागुर कचुगा (एक किस्म का कछुआ) भी देखे जा सकते हैं, जो नदी में रहते हैं।

महामारी के दौरान शिविरों में बहुत ही कम पर्यटक आए (छायाकार – दीपन्विता गीता नियोगी)

2016 में शुरू हुआ भागामुण्डा इको-शिविर इन सुंदर परिदृश्यों के बीच ट्रैक पेश करता है।

लगभग 968 वर्ग कि.मी. फैले रिजर्व के अंदर पांच ऐसे इको-पर्यटन शिविरों के साथ, भोई जैसी महिलाओं को जो लाभ मिलता है, वह आर्थिक लाभ से परे है।

महिलाओं के लिए फायदे का सौदा

भोई शिविर में तब से काम कर रही हैं, जब यह खुला था। अक्टूबर से मार्च तक के पीक सीज़न के दौरान, वह हर महीने औसतन 15,000 रुपये कमाती हैं।

वह कहती हैं – “मेरे पति वन विभाग में अनियमित कर्मचारी हैं। क्योंकि हमारे दो बच्चे हैं, मेरे काम से हमें घरेलू खर्च चलाने में मदद मिलती है।”

इको-टूरिज्म पहल की बदौलत स्थानीय लोगों को नया सीखने का मौका मिल रहा है। महिलाएँ ज्यादा स्मार्ट हो गई हैं।

शत्रुघ्न प्रधान

लेकिन जिस बात पर उन्हें गर्व है, वह यह है कि वह अब कुछ हद तक हिंदी समझ और बोल सकती हैं, उनकी मातृभाषा ओडिया है।

भोई ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “नई भाषा सीखने से मुझे पर्यटकों के साथ सहजता महसूस होती है।”

सतकोसिया टाइगर रिजर्व के अंदर की नदी, जहाँ नौकायन पर्यटकों की पसंदीदा गतिविधि है (छायाकार - दीपन्विता गीता नियोगी)
महानदी नदी इको-पर्यटन शिविरों में आने वाले पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है (छायाकार – दीपन्विता गीता नियोगी)

भागामुण्डा शिविर, जहां भोई काम करती हैं, महामारी से पहले सुचारू रूप से चल रहा था। अब यह वापिस पूरी क्षमता पर आने की कोशिश कर रहा है।

कार्यवाहक शत्रुघ्न प्रधान कहते हैं – “इको-पर्यटन पहल की बदौलत, स्थानीय लोगों को कुछ नया सीखने को मिल रहा है। महिलाएँ ज्यादा स्मार्ट हो गई हैं।”

स्कूल बीच में छोड़ने वाली, तीन बच्चों वाली सुनीता नाइक के लिए टिकरपाड़ा शिविर में काम करना फायदे का सौदा है। वह अपने पति रंजीत नाइक के 2015 में निधन के बाद इसमें शामिल हुईं।

नाइक, जो खाना बनाती है और रसोई संभालती हैं, का कहना था कि जब से वह शिविर में शामिल हुई है, उनका व्यक्तित्व बदल गया है, खासकर उनका आत्मविश्वास। वह अब विश्वास के साथ मेहमानों से बात कर सकती हैं।

सतकोसिया टाइगर रिजर्व के अंदर की नदी, जहाँ नौकायन पर्यटकों की पसंदीदा गतिविधि है (छायाकार – दीपन्विता गीता नियोगी)

उन्होंने कहा – “मैं पर्यटकों के साथ ज्यादा जुड़ना चाहती हूँ, लेकिन ज्यादा समय नहीं मिल पाता। भुवनेश्वर और कटक के पर्यटकों से मैं ओडिया में बात करती हूँ। मैं दूसरों के साथ रुक-रुक कर हिंदी बोलती हूँ और अब भी भाषा सीखने की कोशिश कर रही हूँ।”

ग्रामीणों के लिए आजीविका

सुनीता नाइक पीक सीज़न में 15,000 रुपये तक कमा लेती हैं। उनकी ऑफ-सीज़न आय लगभग 3,000 रुपये महीना या उससे भी कम है। फिर भी उनकी आय का यही एकमात्र स्रोत है, क्योंकि उनके पास कोई कृषि भूमि नहीं है।

ओडिशा के प्रधान मुख्य वन संरक्षक, सुशांत नंदा, जिनकी शिविर स्थापित करने में मुख्य भूमिका थी, का कहना था कि पर्यटन एक उप-उत्पाद है और मुख्य उद्देश्य स्थानीय लोगों के लिए आय सुनिश्चित करना था।

हालाँकि टिकरपाड़ा में खेती के लायक भूमि नहीं है, भागामुण्डा शिविर के प्रधान अमाली देहुरी के अनुसार खेती मुख्य व्यवसाय था। शिविर शुरू होने से पहले, भूमिहीन ग्रामीण मजदूरी करते थे।

टिकरपाड़ा वह जगह है, जहां हीराकुण्ड के बाद महानदी पर दूसरे बांध की आधारशिला रखी गई थी।

तंबू और कॉटेज वाले शिविर, आगंतुकों को रिजर्व का मनोरम दृश्य और ग्रामीणों को आजीविका प्रदान करते हैं (छायाकार – दीपन्विता गीता नियोगी)

नंदा ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “उस समय मजदूर बाहर से आकर बस गए, लेकिन उनके पास आय का कोई साधन नहीं था। यह शिविर उन्हें नौकरी देने के लिए शुरू किया गया था। जंगल के काम कम होने और लकड़ी की कटाई बंद होने के बाद भी बहुत संकट था।”

अब लगभग 70 ग्रामीण इको-पर्यटन शिविरों से लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

समुदाय द्वारा संचालित शिविर

लगभग 90% पर्यटक पश्चिम बंगाल से आते हैं और उसके बाद आंध्र प्रदेश, बिहार और झारखंड से आते हैं।

शिविरों में टेंट का किराया 3,500 रुपये से ज्यादा और कॉटेज का 4,500 रुपये है।

ज्यादातर पर्यटक नदी के पास टिकरपाड़ा प्रकृति शिविर को पसंद करते हैं। यह 2006 में स्थापित सबसे पुराना शिविर है और इसका प्रबंधन घाटोसाई टोले की 60 सदस्यीय ‘टिकारपाड़ा परिबेश पर्यटन समिति’ द्वारा किया जाता है। 

भुबनेश्वर से आए मलायका हम्पी और आयुष मित्रा इस बात से सहमत थे कि टिकरपाड़ा एक अच्छा सप्ताहांत अवकाश स्थल है।

पर्यावरण-पर्यटन शिविरों का प्रबंधन ग्रामीण करते हैं (छायाकार – दीपन्विता गीता नियोगी)

पिछले साल 300 से ज्यादा पर्यटक भागामुण्डा आए और टीम ने 6.5 लाख रुपये से अधिक की कमाई की। टिकरपाड़ा परिवेश पर्यटन समिति को 1,402 पर्यटकों से करीब 25 लाख रुपये की कमाई हुई। पिछले साल छोटकेई शिविर में लगभग 3,000 आगंतुकों के साथ, ग्रामीणों की आय 20 लाख रुपये हुई।

जैसा अमाली देहुरी ने बताया, पर्यटन एक बेहतरीन पहल है, जिससे ग्रामीणों को लाभ हुआ है।

मुख्य फोटो में सतकोसिया टाइगर रिज़र्व के अंदर के इको-पर्यटन शिविरों को दिखाया गया है, जो सप्ताहांत अवकाश का बेहतरीन स्थान प्रदान करते हैं (छायाकार – दीपन्विता गीता नियोगी)

दीपन्विता गीता नियोगी नई दिल्ली स्थित एक पत्रकार हैं।