तेज़ होते मानसून और गहराते मिट्टी के कटाव के कारण, असम भारत के जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे संवेदनशील राज्यों में से एक बनता जा रहा है, जिससे इस प्रक्रिया में खाद्य उत्पादन और आजीविका को नुकसान पहुँच रहा है।
3 करोड़ 40 लाख लोगों के निवास, सुदूर उत्तर-पूर्वी राज्य असम में, शक्तिशाली ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियाँ, हर साल मानसून के दौरान अपने किनारों को तोड़ कर खेती और आवासीय भूमि के बड़े हिस्से को अपनी चपेट में ले लेती हैं।
राज्य सरकार, इंजीनियर और अन्य विशेषज्ञ सालाना बाढ़ और गहन होती वर्षा के प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए नए तरीके खोज रहे हैं।
लेकिन छोटे किसान भक्त बहादुर छेत्री का कहना था कि उनके घर और उनके परिवार के लिए भोजन और आजीविका प्रदान करने वाली एक हेक्टेयर जमीन को बचाने के लिए पहले ही बहुत देर हो चुकी है।
छेत्री बताते हैं कि बाढ़ के पानी ने पहले ही उदलगुड़ी जिले के उनके गांव ‘खागरबाड़ी के 70 फीसदी हिस्से को निगल लिया है। वह कहते हैं – “नदी मेरी ज़मीन से सिर्फ़ 100 मीटर दूर है। मेरा सब कुछ नदी की भेंट चढ़ जाएगा। मुझे एहसास है कि मैं नदी को रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकता।”
जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश और गहन हुई हैं
मानसून ज्यादा अनियमित और वर्षा ज्यादा बार-बार एवं भारी हो रही है, जिसके लिए बहुत से पर्यावरणविद् जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार मानते हैं।
नदी मेरी जमीन से सिर्फ 100 मीटर की दूरी पर है। मेरा सब कुछ नदी की भेंट चढ़ जाएगा।
इस बीच, वनों की बढ़ती कटाई का मतलब है कि मिट्टी को बहने से रोकने के लिए कोई जड़ें नहीं हैं। लेकिन खराब बाढ़-नियंत्रण प्रबंधन और तटबंधों का रखरखाव बारहमासी समस्याएं हैं, जो बाढ़ को बढ़ाती हैं।
जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत के सबसे ज्यादा संवेदनशील 25 जिलों में से पंद्रह असम में हैं और जैसा कि जलवायु परिवर्तन मंत्री, केशब महंत ने सितंबर के मध्य में राज्य विधानसभा को बताया, “2010 के बाद से बाढ़ की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है।”
महंत ने चेतावनी दी है कि आगे और भी बुरा वक्त आने वाला है। उन्होंने राज्य सरकार की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सदी के मध्य तक “अत्यधिक वर्षा की घटनाओं” में 38 प्रतिशत तक और बाढ़ में 25 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि होने की संभावना है।
एक दशक की सबसे भीषण बाढ़
असम की आपदा प्रबंधन एजेंसी के अनुसार, 2014 से 2021 तक असम में 32 मिलियन से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हुए और लगभग 660 लोग मारे गए।
इस साल, असम एक दशक की सबसे भीषण बाढ़ की चपेट में आया और राज्य के 35 में से 32 जिले प्रभावित हुए। 70 से ज्यादा लोगों की जान चली गई।
बाढ़ में वृद्धि के पीछे अन्य कारण तट-कटाव और बहाव-कटाव से आई गाद है, जिससे नदी तल ऊँचे हो गए हैं और जिसका मतलब है कि नदियाँ कम पानी ले जा सकती हैं। राज्य के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 70 वर्षों में ब्रह्मपुत्र ने 427,000 हेक्टेयर भूमि को बहा दिया है।
कटाव से नदी द्वीप का आकार आधा रह गया
तट के कटाव के कारण कुछ हिस्सों में ब्रह्मपुत्र की चौड़ाई 15 कि.मी. तक बढ़ गई है, जिसका एक जीता जागता उदाहरण दुनिया का सबसे बड़ा, खूबसूरत ‘माजुली’ नदी द्वीप है। 20वीं सदी की शुरुआत में इस द्वीप का क्षेत्रफल 880 वर्ग कि.मी. था, लेकिन अब यह केवल 352 वर्ग कि.मी. रह गया है।
यह द्वीप प्रसिद्ध वैष्णव मठों का घर है, जिन्हें ‘सत्रों’ के नाम से जाना जाता है, जो असम की संस्कृति के जनक 15वीं सदी के धार्मिक और समाज सुधारक, श्रीमंत शंकरदेव की शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं। कटाव के कारण, द्वीप के मूल 65 सत्रों में से केवल 22 ही बचे हैं।
अतीत में, बाढ़ का उतरता पानी अपने पीछे पोषक तत्वों से भरपूर जलोढ़ भंडार छोड़ जाता था, जो उस भूमि को उपजाऊ बनाता था, जिस पर किसान चावल, सब्जियाँ और अन्य फसलें उगाते थे।
लेकिन अब पानी में अक्सर असम के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्रों के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों से केवल गाद ही आती है और बार-बार बाढ़ आने का मतलब है कि उपजाऊ ऊपरी मिट्टी बह जाती है।
बढ़ती जनसंख्या नाजुक पर्यावरण पर और ज्यादा दबाव डाल रही है।
बहते सुरक्षात्मक तटबंध
राज्य सरकार ने 1960 के दशक में ब्रह्मपुत्र पर तटबंध बनाना शुरू किया। लेकिन ज्यादातर अब अपनी उपयोगिता खो चुके हैं या ख़राब हालत में हैं।
बाकी सब बह गया है।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि तटबंध और नदी के तल में अन्य मानव निर्मित बदलाव भी समस्या का हिस्सा हो सकते हैं और बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए नए तरीकों की जरूरत है।
उदाहरण के लिए ‘हाइड्रोसीडिंग’ (बीज और गीली घास का रोपण) एक ऐसी तकनीक है, जिसमें जमीन पर बीज घोल, गीली घास की खाद और बॉन्डिंग सामग्री का छिड़काव किया जाता है, जो तेजी से बढ़ता है और बारिश से होने वाले भूस्खलन में ढलानों को बांध कर रखने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
पांच साल पहले, नदी हमारे घर से दो किलोमीटर दूर थी, लेकिन अब यह केवल 70 मीटर दूर है।
घास टेक्नोलॉजी से मिट्टी का कटाव रोकना
फिर जड़ की चटाई बनाने के लिए वेटिवर (खसखस) घास तकनीक का उपयोग किया जाता है, जो जमीन के स्तर से चार मीटर नीचे तक बढ़ती है और मिट्टी को बांधती है।
बायो-इंजीनियरों का कहना है कि इससे मिट्टी का कटाव 90 प्रतिशत तक और वर्षा जल का बहाव 70 प्रतिशत तक कम हो सकता है। विशेषज्ञों ने जल निकासी में सुधार और जलभराव को रोकने के लिए, दलदल वाली जमीन और स्थानीय जल श्रोतों को पुनर्जीवित करने का भी प्रस्ताव दिया है।
असम इंजीनियरिंग कॉलेज में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर, बिभाष सरमा भी सुझाव देते हैं कि सरकार को बाढ़ के पानी को सोखने और गाद को रोकने के लिए ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियों की तलहटी में भंडारण जलाशय बनाना चाहिए।
वह कहते हैं – “इससे बाढ़ और कटाव की समस्याओं को कम करने में मदद मिलेगी।”
लेकिन ऐसे बाढ़-नियंत्रण सुधारों में वर्षों लग सकते हैं और असम के बहुत से लोगों के लिए बहुत लंबा इंतजार है।
छेत्री की तरह, कामिनी बर्मन को भी डर है कि बाढ़ में उनका मिट्टी का घर डूब जाएगा, जहां वह अपने पति और बेटी के साथ रहती हैं और वे बेघर हो जाएंगे।
छेत्री के समुदाय के निकट गोबर्धना गांव में रहने वाली बुनकर, बर्मन पूछती हैं – “नदी पहले ही कई सौ घर निगल चुकी है। अब हम चुपचाप अपनी बारी का सिर्फ इंतजार ही कर सकते हैं। इसके अलावा हम और कर भी क्या सकते हैं?”
अपने चेहरे पर चिंता की लकीरों के साथ बर्मन कहती हैं – “पांच साल पहले, नदी हमारे घर से दो किलोमीटर दूर थी, लेकिन अब यह केवल 70 मीटर दूर है। जल्द ही मेरा घर भी पानी में डूब जाएगा।”
मुख्य छवि में छोटे किसान, भक्त बहादुर छेत्री निराशाभरी नज़रों से नदी की ओर देख रहे हैं, यह जानते हुए कि वह जल्द ही उनके घर को अपनी चपेट में ले लेगी।
अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए, तमिलनाडु के शिक्षित युवाओं ने अपनी पैतृक भूमि का आधुनिकीकरण करके और इज़राइली कृषि तकनीक का उपयोग करके कृषि उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया है।
पोषण सखी या पोषण मित्र के रूप में प्रशिक्षित महिलाएं ग्रामीण महिलाओं, विशेषकर गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पौष्टिक भोजन खाने और एनीमिया और कम वजन वाले प्रसव पर काबू पाने के लिए सलाह और मदद करती हैं।
ओडिशा में, जहां बड़ी संख्या में ग्रामीण घरों में नहाने के लिए बंद जगह की कमी है, बाथरूम के निर्माण और पाइप से पानी की आपूर्ति से महिलाओं को खुले में नहाने से बचने में मदद मिलती है।