भारत के त्यौहार: लेह के हेमिस महोत्सव में मुखौटों के पीछे क्या है?

लेह, लद्दाख

त्योहारों के इस सीजन में हम लद्दाख के हेमिस महोत्सव पर नजर डालते हैं, जो मायनों से भरपूर नृत्यों और मुखौटों की समृद्ध संस्कृति को प्रदर्शित करता है।

जैसे जैसे घाटी में भोर होती है और धीरे-धीरे उजली सुबह में बदल जाती है, एक बुजुर्ग महिला घर से निकलने से पहले अपने बैग की फिर से जांच करती हैं। एक कटोरा, तिब्बती बौद्धों के छह शब्दों वाले मंत्र से जड़ा एक छोटा मणि पत्थर, मुट्ठी भर चावल और आटा, अगरबत्तियों का एक पैकेट और कपड़े का एक छोटा टुकड़ा – वह सुनिश्चित करती हैं कि ये जरूरी चीजें उनके बैग में हैं।

लेह के खूबसूरत चोचुट गांव की 75 वर्षीय महिला डोल्मा, प्रसिद्ध हेमिस उत्सव में भाग लेने जा रही हैं। वह अपनी दो युवा पोतियों के साथ मठ के लिए समय पर बस पकड़ने के लिए जल्दी करती हैं, क्योंकि उत्सव सुबह जल्दी शुरू होता है।

और वह उत्सव में समय पर पहुँच गई।

डोल्मा कहती हैं – “मैंने यहां पहुंचने के लिए पहली बस पकड़ी। क्योंकि ये सिर्फ उत्सवों की बात नहीं है। यह त्यौहार मेरे लिए पूरी दुनिया है। मैं शुरू से ही इसका हिस्सा बनना चाहती थी और भगवान का शुक्र है कि मैं समय पर यहां हूँ।

बहुत से लोगों के लिए, सांस्कृतिक परम्पराओं के अलावा, हेमिस महोत्सव का आध्यात्मिक महत्व भी है (छायाकार – नासिर यूसुफ़ी)

भले ही हेमिस महोत्सव पर्यटकों के लिए एक सांस्कृतिक आकर्षण है, लेकिन डोल्मा जैसे लोगों के लिए यह उत्सव एक गहरा महत्व रखता है।

हेमिस उत्सव क्या है ?

यह एक वार्षिक महोत्सव है, जो चट्टानी पहाड़ की तलहटी में सुन्दर लद्दाखी बस्ती हेमिस के हेमिस मठ में आयोजित किया जाता है।

यह दो दिवसीय उत्सव तिब्बती बौद्ध धर्म के संस्थापक जनकों में से एक, गुरु पद्मसंभव, जिन्हें गुरु रिनपोछे के नाम से और हिमालय क्षेत्र के दूसरे बुद्ध के रूप में भी जाना जाता है, के जश्न के तौर पर मनाया जाता है।

हेमिस महोत्सव गुरु पद्मसंभव की जयंती पर मनाया जाता है, जिसे मुखौटा पहने एक भिक्षु दर्शाते हैं (छायाकार – नासिर यूसुफ़ी)

यह महोत्सव गुरू की जयंती पर आयोजित किया जाता है, जिसकी तारीख तिब्बती कैलेंडर के अनुसार तय की जाती हैं। इस साल यह जुलाई की शुरुआत में आयोजित किया गया था।

जीवंत संस्कृति का प्रदर्शन

यह त्यौहार हजारों आस्थावान लोगों और पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है, जो जीवंत प्रदर्शन देखने आते हैं।

हालांकि महोत्सव के दौरान लद्दाख में सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व वाले कई अनुष्ठान किए जाते हैं, लेकिन मुखौटे पहने भिक्षुओं के एक समूह द्वारा किया जाने वाला एक अनूठा नृत्य शो में चार चांद लगा देता है।

तुरही की आवाज हेमिस महोत्सव की शुरुआत का प्रतीक है (छायाकार – नासिर यूसुफ़ी)

पारम्परिक तुरहियों की तेज़ आवाज़ अनुष्ठान वाले उत्सवों की शुरुआत का संकेत देने के बाद मठ के प्रांगण में मुखौटा नृत्य के चार दौर होते हैं।

मुखौटा नृत्य, प्रमुख आकर्षण

जब नीले रंग के मुखौटे और पारम्परिक पोशाक पहने नर्तकों का पहला समूह दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रहा होता है, तभी पीले मुखौटे पहने नर्तकों का दूसरा समूह दर्शकों को उत्साहित कर देता है।

दोनों समूहों के नर्तक भिक्षु हैं, प्रत्येक मंडली में तेरह, क्योंकि संख्या का स्थानीय परम्परा में एक महत्व है।

नृत्य के तीसरे दौर में, बहुरंगी मुखौटे पहने 16 भिक्षु देवी और देवताओं के लिए प्रदर्शन करते हैं ।

मुखौटा नृत्य के चौथे दौर के दौरान, बड़ी संख्या में नर्तक विभिन्न प्रकार के मुखौटे पहनकर, गुरु पद्मसंभव के रूप में मुखौटा पहने भिक्षु के सामने व्यक्तिगत रूप से नृत्य करते हैं।

जब मुखौटा नृत्य पूर्ण सामंजस्य के साथ चल रहा होता है, बीच बीच में संगीत की धमाकेदार आवाज और तुरही के ध्वनि के साथ स्थानीय संगीत उत्सव के माहौल को और भी बढ़ा देती हैं।

महोत्सव का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा मुखौटे पहने भिक्षुओं द्वारा चार दौर का नृत्य होता है (छायाकार – नासिर यूसुफ़ी)

लेकिन जैसा कि डोल्मा जैसे बहुत से लोग मानते हैं, यह सिर्फ एक उत्सव नहीं है।

हेमिस मुखौटे के पीछे क्या अर्थ है?

नृत्य क्योंकि दृढ़ आस्था और समृद्ध संस्कृति का मिश्रण है, ऐसे लोग भी हैं, जो मुखौटों के पीछे गहरा अर्थ देखते हैं।

बुजुर्ग डोल्मा के लिए मुखौटे मुक्ति और आध्यात्मिकता का साधन हैं।

डोल्मा ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “मैं बचपन से ही इस उत्सव में भाग लेती रही हूँ। मुझे नहीं लगता कि शादी के बाद भी मैंने कभी हेमिस महोत्सव छोड़ा हो। ये मुखौटे और माहौल मेरी आत्मा को छू जाते हैं। वे मुझे चिंताओं से मुक्त दुनिया में ले जाते हैं।”

वह मुखौटे को मुक्ति या आत्मज्ञान का प्रतीक भी मानती हैं। इसी कारण से वह पिछले कुछ वर्षों से अपनी दो पोतियों को उत्सव में ला रही हैं। क्योंकि वह चाहती हैं कि वे परम्परा और आस्था का महत्व समझें।

दसवीं कक्षा की 16 वर्षीय स्टैंज़िन कहते हैं – “जब मैं छोटी थी, मैंने बड़ों से सीखा कि मुखौटे मृत्यु का प्रतीक हैं। मेरे दादाजी मुझसे बताया करते थे कि मुखौटे विभिन्न अवतारों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो अंततः हमारे शरीर से आत्मा को ले जाते हैं।”

डोल्मा, जो कभी भी उत्सव नहीं भूलती, के लिए मुखौटे का मतलब है चिंता रहित दुनिया (छायाकार – नासिर यूसुफ़ी)

वह स्वीकार करते हैं कि शुरू में उन्हें मुखौटों से डर लगता था और वह आतंकित हो जाता था।

स्टैंज़िन कहते हैं – “लेकिन धीरे-धीरे मुझे समझ में आया कि ये मुखौटे जीवन की सच्चाई को दर्शाते हैं। इस धरती पर हर किसी को मौत का स्वाद चखना पड़ता है। अब जब मैं इन मुखौटों से परिचित हो गया हूँ, तो मुझे मृत्यु के समय मुखौटे वाले अवतार द्वारा मेरी आत्मा को ले जाने का कोई डर नहीं है।”

हालाँकि, अपने परिवार के साथ लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित खलास्ते गांव से आए 50 वर्षीय खुबानी किसान, हाहांग के लिए, मुखौटे शांति, शांतचित्तता और दया का स्रोत हैं।

हाहांग ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “जब मैं इन मुखौटों को देखता हूँ, तो मेरा दिल खुशी से भर जाता है, क्योंकि मुझे लगता है कि मुझे गुरु का आशीर्वाद मिल रहा है। ‘मुझे इन मुखौटों में हमेशा एक आशीर्वाद मिला है।”

मुखौटा नृत्य उस समय से किया जा रहा है, जब लद्दाख पर राजाओं का शासन था।

हेमिस के एक वरिष्ठ भिक्षु, जिग्मेट लामा के अनुसार, मुखौटा नृत्य गुरु को प्रसन्न करने की परम्परा का प्रतीक है।

लामा ने कहा – “ये मुखौटे शांति, करुणा और एकता का प्रतीक हैं। उत्सव के दौरान भी हम यही प्रार्थना करते हैं।”

मुख्य फोटो में हेमिस महोत्सव की एक महत्वपूर्ण परम्परा मुखौटा नर्तकों को दिखाया गया है।

नासिर यूसुफ़ी श्रीनगर स्थित एक पत्रकार हैं।