जलवायु-प्रेरित अनियमित वर्षा से कृषि प्रभावित होने के कारण, मणिपुर के किसान किफायती जल संचय संरचनाओं, ‘जलकुंडों’ की ओर रुख करते हैं, जो सिंचाई की जरूरतों से आगे हैं और उनकी आय को दोगुना करती हैं।
मणिपुर के पूर्व इंफाल जिले के नुंगब्रुंग नगामुखोंग गांव निवासी 76-वर्षीय किसान, एम. इबोहल मैतेई एक प्रसन्न व्यक्ति है। उनके पास इसका कारण है। क्योंकि किफायती जल संचयन संरचना के कारण उनकी आय में वृद्धि हुई है।
हालाँकि उनका खेत थौबल नदी से लगभग 200 मीटर दूर है, लेकिन उन्हें नियमित रूप से अपने खेतों तक पानी ले जाना मुश्किल था।
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा – “लेकिन 2019 में बने ‘जलकुंड’ से मेरी आय बढ़ गई है।”
वह कहते हैं – “पहले मैं केवल धान उगाता था, जो ज्यादातर वर्षा आधारित होता था, क्योंकि यहां के किसान एकल फसल उगाते हैं और चावल एक मुख्य आहार है। खेती शुरू करने के लिए मुझे बारिश का इंतजार करना पड़ता था।”
पानी इकठ्ठा करने के लिए ‘जलकुंड’ नाम के आसानी से बने गड्ढे की बदौलत, मैतेई धान, मौसमी सब्जियां उगाते हैं और हाल ही में उन्होंने सुअर पालन भी शुरू किया है।
जलकुंड क्या है?
‘जलकुंड’ एक किफायती (कम लागत) जल संचयन संरचना है, जिसमें एक गड्ढे या तालाब को पॉलीथीन चादर से ढक दिया जाता है। बदलती जलवायु और अनियमित वर्षा से निपटने के लिए मणिपुर के गांवों में जलकुंड बनाए जा रहे हैं, जिससे किसानों की आजीविका खत्म हो रही है।
यह वर्षा जल संचयन सिद्धांत वर्ष 2010 में पूर्व इम्फाल जिले के कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) द्वारा शुरू किया गया था, जब एंड्रो गांव में दो जलकुंड बनाए गए।
केवीके की वरिष्ठ वैज्ञानिक, सोरम मोलीबाला देवी कहती हैं – “जलकुंड 1.5 मीटर की गहराई तक मिट्टी खोदकर बनाए गए हैं और उनकी लंबाई 4 मीटर और चौड़ाई 5 मीटर है। पानी के रिसाव को रोकने के लिए, दीवारों और आधार को ऊंचे घनत्व के 400 माइक्रोन पॉलीथीन प्लास्टिक से ढका गया है।”
सिंचाई व्यवस्था से वंचित गांवों के लिए जलकुंड
देवी ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “हम ऐसे गाँव चुनते हैं, जहाँ बारिश कम होती है और सिंचाई व्यवस्था ठीक से काम नहीं करती हैं। जलकुंड उन छोटे खेतों के लिए सबसे उपयुक्त है, जहां ज्यादा जल रिसाव की समस्या है और जहां खेत तालाबों का निर्माण संभव नहीं है।”
वर्ष 2018 में इसे तब प्रोत्साहन मिला, जब नेशनल इनोवेशन ऑन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (NICRA) परियोजना के प्रायोजन के अंतर्गत, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) से केवीके को जिले में 20 जलकुंड बनाने के लिए मंजूरी मिली। जिले में 2018 में 12 जलकुंडों का निर्माण कराया गया।
केवीके में कृषि इंजीनियर, गुनाजीत ओइनम ने बताया – “कार्यक्रम के अंतर्गत, खुदाई का काम किसान को करना होता है, जबकि परियोजना में प्लास्टिक शीट उपलब्ध कराई जा रही हैं।”
जलकुंड के बहुउपयोग
केवीके किसानों को जलकुंड के उपयोग के बारे में प्रशिक्षित भी करता है, क्योंकि वे इसका उपयोग कई उद्देश्यों के लिए कर सकते हैं।
इबोहल मैतेई कहते हैं – “पानी की निरंतर आपूर्ति ने मुझे सब्जियां उगाने और यहां तक कि सुअर पालन फार्म शुरू करने में भी मदद की है, जिससे मेरी मासिक आय में 8,000-10,000 रुपये जुड़ गए हैं।”
लेकिन केवीके जलकुंड में मछली पालन को प्रोत्साहित नहीं करता, क्योंकि पानी गंदा हो जाता है।
ओइनम ने कहा – “हम किसानों को जलकुंड को पानी से भरकर रखने की सलाह देते हैं, अन्यथा पशु उसमें मौजूद प्लास्टिक को नुकसान पहुँचा सकते हैं, जिससे उसमें रिसाव हो सकता है।”
जलकुंड आसानी से 8-10 साल तक चल सकता है। फिलहाल जिले के 10 गांवों में 34 जलकुंड बनाये गये हैं।
ओइनम ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “प्रत्येक जलकुंड से आसपास के किसानों को भी लाभ होता है और अब तक 150 लाभार्थी हैं।”
किसानों का कहना है कि जलकुंड से उन्हें उन टीलों पर भी खेती करने में मदद मिलती है, जहां पानी उपलब्ध नहीं होता।
तुमुखोंग गाँव के 50-वर्षीय किसान, डी. हेइक्रूजम मीतेई कहते हैं – “हमारा मैदानी इलाके में एक तालाब है, जहाँ से टीले की चोटी के जलकुंड को पानी पहुँचाया जाता है। पास का झरना पहले ही सूख चुका है और जलकुंड मुझे उस जमीन पर सब्जियां उगाने में मदद करता है, जो अब तक पानी के अभाव में बंजर पड़ी थी।”
अब वह बंदगोभी, बैंगन, सरसों और प्याज उगाते हैं, जबकि पहले वह आजीविका के लिए केवल धान पर निर्भर थे।
वह कहते हैं – “इसके अलावा, पानी उपलब्ध होने से मुझे आजीविका के नए रास्ते तलाशने का समय मिला है और हाल ही में बत्तख पालन शुरू किया है। मुझे इससे अच्छी आय होने की उम्मीद है।”
जलकुंड जलवायु संबंधी जल संकटों से निपटने में मदद करते हैं
यह उत्तर-पूर्वी राज्य प्रकृति की मार झेल रहा है और पहाड़ी राज्य में वर्षा अनियमित हो गई है।
पिछले साल यहाँ आठ उत्तर-पूर्वी राज्यों में सबसे अधिक 64% बारिश की कमी दर्ज की गई, जिससे राज्य के धान उत्पादक किसानों को नुकसान हुआ। पिछले साल जुलाई के मध्य तक इंफाल पूर्वी जिले में यह कमी 72% थी।
मई 2022 में, मणिपुर में 2013 के बाद से सबसे अधिक 257.93 मिमी बारिश हुई।
केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (CAU), मणिपुर के कृषि विज्ञान विभाग के प्रोफेसर, एल. नबचंद्र सिंह कहते हैं – “दो दशक पहले भी, मानसून नियमित था, जो जून से शुरू होता था और सितंबर तक जारी रहता था। लेकिन चीजें अब बदल गई हैं।”
उन्होंने कहा – “इस साल फरवरी में बारिश शुरू हुई और जून में जब धान बोया गया तो बारिश नहीं हुई। किसानों को जुलाई के अंत में कुछ बारिश मिली, लेकिन अगस्त-सितंबर फिर सूखे रहे।”
ऐसी जलवायु परिस्थितियों और सिंचाई जल की अनिश्चितताओं के चलते, जलकुंड किसानों को जल संकट से निपटने में मदद करते हैं।
मुख्य फोटो में दिखाया गया है कि किसान अब सिंचाई की समस्याओं के बारे में चिंता किए बिना कैसे फसलें उगाने में सक्षम हैं (छायाकार – गुरविंदर सिंह)
जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और मूर्खतापूर्ण मानवीय हस्तक्षेप ने उत्तराखंड में पारंपरिक किसानों को मुश्किल में डाल दिया है, वे नई फसलें और आजीविका अपना रहे हैं।