“तुम एक लड़की हो। खेल पोशाक में बाहर कैसे जा सकती हो?”

श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर

जल- क्रीड़ाओं के प्रति अपने जुनून के कारण किशोरावस्था के दौरान, रूढ़िवादियों द्वारा ताने और फटकार का सामना करने वाली बिलकिस मीर की माँ के उत्साहवर्धक शब्दों ने उन को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। अब 33-वर्षीय खिलाड़ी न केवल कश्मीर में एक घरेलू नाम और युवा आइकन है, बल्कि एक विश्वसनीय कोच और अंतरराष्ट्रीय जज भी है।

कश्मीर घाटी की पहली महिला जल-क्रीड़ा पेशेवर बिल्किस मीर कहती हैं, मुझे लगता है कि मेरा रुझान हमेशा से खेलों की ओर था।

जब मैं करीब 12 साल की थी, तो मैं बॉक्सर बनना चाहती थी। क्योंकि मैंने अपने चचेरे भाइयों को घर पर अभ्यास करते देखा था, तो कभी-कभी मैं भी उन्हीं मुक्कों को आजमाती थी। लेकिन मेरे परिवार के बुजुर्गों ने मुझे यह कहते हुए डांटा कि मैं एक लड़की हूँ और मुझे ऐसे खेल नहीं खेलने चाहिए।

लेकिन डल झील की एक आकस्मिक यात्रा के बाद, मुक्केबाजी मेरे दिमाग से निकल गई। मैंने कुछ लड़कों को झील में नौकायन (कयाकिंग) करते देखा और इससे मुझे जल क्रीड़ाओं का शौक लग गया।

शीघ्र ही मैं प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगी।

जब मैं 1998 में मणिपुर में एक राष्ट्रीय जल क्रीड़ा कार्यक्रम में भाग लेने के बाद घर वापस आई, तो मुझे कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। यह मेरा पहला राष्ट्रीय कार्यक्रम था और मेरे पड़ोस के लोग, दोस्त और रिश्तेदार, केवल मुझे डांट सकते थे और मेरी उपलब्धि नहीं देख सके।

मेरे एक रिश्तेदार ने पूछा – “तुम एक लड़की हो। तुम एक खेल पोशाक में बाहर कैसे जा सकती हो?”

लोगों ने मेरी खेल पोशाक और घाटी के बाहर जल क्रीड़ा कार्यक्रमों में भाग लेने पर आपत्ति जताई।

असल में नब्बे के दशक के आखिर में यहां का समाज, खेल और वह भी जल क्रीड़ा को महिलाओं के लिए वर्जित मानता था।

प्रसिद्ध या अज्ञात महिला जल क्रीड़ा पेशेवर के रूप में सभी ने मेरी पसंद का विरोध किया। लोगों की आलोचनाओं ने मुझे कुछ समय के लिए इससे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

मैंने गंभीरता से इसे छोड़ देने पर विचार किया।

लेकिन वह मेरी माँ ही थी, जिन्होंने मेरी धारणा बदल दी।

मेरे भावनात्मक आघात को देखकर, मेरी माँ अक्सर कहती थी – “बिल्किस, तुम्हें अपना शौक जारी रखना होगा। यदि तुम अभी सामाजिक दबावों के आगे झुक गई, तो सिर्फ तुम ही नहीं हारोगी, बल्कि तुम जैसी भावी महिला खिलाड़ियों का पूरा समुदाय हारेगा, जिनके सपने चकनाचूर हो जाएंगे।”

मेरी माँ के इन शब्दों ने मुझे प्रेरणा दी।

इसलिए मैंने अपना जुनून जारी रखा।

क्योंकि बहुत से लोग सोचते हैं कि लड़कियाँ पानी से डरती हैं, इसलिए मैंने दुनिया को यह दिखाने का फैसला किया कि एक लड़की भी साहसी हो सकती है।

विभिन्न राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के बाद, मैंने आखिर राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जगह बनाई। शीघ्र ही इसने मेरे लिए अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र के द्वार भी खोल दिये।

फिर मैंने कोचिंग शुरू कर दी।

मैंने लगभग 10 साल भारतीय शिविर में कोचिंग में लगाए, जो प्रशिक्षण शिविर देश के विभिन्न हिस्सों में साल भर चलते हैं।

मुझे इस बात पर बहुत गर्व है कि मैं भारतीय टीम की सबसे युवा कोच थी। मैं लगभग नौ साल तक राष्ट्रीय टीम की कोच रही और 2010 में एशियाई खेलों की कोच भी रही।

क्या आप कल्पना कर सकते हैं? जल खेलों में जाने के लिए मज़ाक उड़ाए जाने से लेकर, एशियाई खेलों की टीम का कोच बनने तक कैसा रहा होगा!

सिर्फ एक कोच नहीं। आगामी एशियाई खेलों में मैं एक जज बनूंगी।

देश भर में अपने कोचिंग कार्यकाल के बाद, मैंने 2014 में घाटी लौटने और युवाओं को, विशेषकर लड़कियों को, जल क्रीड़ाओं में शामिल होने में मदद करने का फैसला किया।

मैं युवाओं की सकारात्मक प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ। निश्चित रूप से मेरे खेल के दिनों से चीजें बदल गई हैं। और यह सचमुच उत्साहवर्धक है।

जब मैं अपने कोचिंग सेंटर में दाखिला दिलाने के लिए माता-पिता को अपनी बच्चियों के साथ आते देखती हूँ, तो मुझे खुशी होती है।

दिलचस्प बात यह है कि इन सभी वर्षों में, मुझसे प्रशिक्षण पाने वालों में बड़ी संख्या में लड़कियाँ रही हैं। अब तक वे राष्ट्रीय स्तर पर जल क्रीड़ाओं की विभिन्न श्रेणियों में 120 से ज्यादा पदक जीत चुके हैं।

श्रीनगर में लोगों को डोंगीचालन और नौकायन में प्रशिक्षण देने के अलावा, मैं ‘वाटर स्पोर्ट्स सेंटर’, नेहरू पार्क के निदेशक के रूप में काम करती हूँ।

जर्मनी और हंगरी से जल क्रीड़ाओं में विशेष डिप्लोमा मेरे काम में मदद करते हैं।

यह घिसा पिटा लग सकता है, लेकिन एकमात्र मंत्र जिस पर मैं विश्वास करती हूँ, वह है – “जहां चाह, वहां राह।”

इस बारे में भी पढ़ें कि कैसे बिल्किस मीर की खेलों में सफलता लड़कियों को जल क्रीड़ाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

श्रीनगर स्थित विलेज स्क्वेयर के वरिष्ठ योगदानकर्ता नासिर यूसुफी की रिपोर्ट। फोटो – बिलकिस मीर और नासिर यूसुफ़ी के सौजन्य से।