माजुली टापू (द्वीप) के एक दूरदराज गांव में, जो महिलाएं हमेशा अपने पारम्परिक परिधान बुनती रही हैं, अपने बुनाई के हुनर का इस्तेमाल विभिन्न तरह के उत्पाद बनाने और अधिक कमाई के लिए कर रही हैं
पाथोरिचक
आत्मनिर्भर लोगों का एक गाँव है। वे अपना भोजन खुद उगाते हैं, स्वयं अपने पारंपरिक
कपड़े बुनते हैं, स्वयं अपने चांग घर या शहतीर और बांस से घर बनाते हैं। मुख्य रूप
से मिज़िंग आदिवासियों वाले लगभग 280 परिवार, ब्रह्मपुत्र और सुबनसिरी नदी के उफान से
हर साल आने वाली बाढ़ के बाद, अपने जीवन के पुनर्गठन की योजना मिलजुल कर बनाते हैं।
सुबनसिरी
नदी के तट पर बसा पाथोरिचक, टापू पर स्थित जिले, माजुली के 144 गांवों में से एक है।
गाँव तक पहुँचने के लिए परिवहन के कई साधनों की जरूरत पड़ती है। माजुली जाने के लिए,
असम की राजधानी गुवाहाटी से जोरहाट तक छह घंटे की बस यात्रा, नीमती घाट तक टैक्सी,
और फिर ब्रह्मपुत्र पर एक नौका की सवारी करनी पड़ती है।
माजुली
से, बांस की पारंपरिक नाव और फिर तीन बांस के पुल को पैदल या साइकिल से पार करके पाथोरीचक
पहुंचा जा सकता है। ग्रामीणों के लिए दूरदराज होना कई तरह से अच्छा ही रहा है।
एक
सांस्कृतिक केंद्र, ‘माटी समुदाय’ के ऋषि राज सरमा ने बताया – “आपको यहां कोई
भी कुपोषित वयस्क या बच्चा नहीं मिलेगा। वे दुबले-पतले, लेकिन स्वस्थ होते हैं, क्योंकि
वे अपना ही पैदा किया शुद्ध भोजन और आसपास के जंगलों से इकठ्ठा किया शुद्ध शहद खाते
हैं।”
सरमा ने VillageSquare.in को बताया – “वे शुद्ध हवा में सांस लेते हैं क्योंकि यहाँ कोई उद्योग या गाड़ियाँ नहीं हैं। ग्रामीण पैदल, साइकिल से या पारम्परिक नाव से यात्रा करते हैं। यहाँ एक भी COVID -19 का मामला सामने नहीं आया है। लेकिन गाँव के दूरदराज होने के कारण व्यावसायिक विकास नहीं हो पाया है।”
सांस्कृतिक केंद्र
‘माटी समुदाय’ बहु-सांस्कृतिक और एक गतिविधि केंद्र है, जिसे गुवाहाटी निवासी
सरमा और उनकी पत्नी पबित्रा लामा सरमा ने 2014 में स्थापित किया। माटी एक ऐसा स्थान
है, जहाँ पूर्वोत्तर और अन्य राज्यों के सर्वश्रेष्ठ हस्तशिल्प ख़रीदे जा सकते हैं और
यह अलग-अलग क्षेत्रों के युवा कलाकारों, डिजाइनरों और उद्यमियों के लिए, विचारों के
आदान प्रदान, अपने अनुभव और कहानियां अपने प्रदर्शन के माध्यम से साझा करने का एक मंच
भी है।
इन
सांस्कृतिक आदान-प्रदानों में सरमा दम्पत्ति ने माजुली के स्वयं सहायता समूहों से बातचीत
शुरू की और महसूस किया, कि ग्रामीणों के पास साल के काफी समय करने के लिए कोई काम नहीं
होता। पाथोरिचक के निवासी केवल खेती से गुजारा करते हैं। कुछ लोग प्रसिद्ध माजुली मुखौटे
(फेस-मास्क) बनाते हैं।
ग्रामवासी मानसून और बाढ़ के कारण, जून से सितंबर तक खाली रहते हैं और सितंबर
से अक्टूबर तक वे बाढ़ प्रभावित भूमि को ठीक करने में व्यस्त रहते हैं। बुवाई और कटाई
के बीच, और कटाई के बाद भी, वे कुछ समय के लिए खाली रहते हैं।
पबित्रा
सरमा कहती हैं – “हम चाहते थे कि वे अधिक सक्रिय हों और कपड़े खरीदने, बच्चों
की ट्यूशन फीस देने, आदि जैसे दूसरे खर्चों को पूरा करने और थोड़ी बचत करने के लिए कमाएं।
दूसरी एकमात्र गतिविधि जो वे, खासतौर पर महिलाएँ, जानती हैं, वह है हथकरघा बुनाई, जो
वे बचपन से सीखती हैं।”
पारम्परिक बुनाई से आगे
महिलाएं केवल उगोन, डूमर, एगे और ऐसे ही दूसरे पारम्परिक वस्त्र ही बुन सकती
थीं, जिनकी बुनाई-तकनीक सदियों से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपी जाती रही है। वे
वही घई यामिक या हीरे की अलग-अलग आकृतियों वाले नमूने इस्तेमाल करती रही हैं, जिसके
लिए यह क्षेत्र प्रसिद्ध है।
उन्होंने अपनी
बुनी हुई वस्तुओं की कभी मार्केटिंग नहीं की थी। जिन वस्तुओं की वे बिक्री कर रहे थे,
वह थी फालतू अनाज और पोल्ट्री उत्पाद। क्योंकि इसमें पैसा नहीं था, इसलिए युवा पीढ़ी
के लोगों ने बुनाई करने की बजाए, माजुली की कठिन यात्रा करके कमाई करने को प्राथमिकता
दी, चाहे उसमें पैसा बहुत थोड़ा था।
माटी
ने ग्रामीणों के बुनाई कौशल का बेहतर उपयोग करने का फैसला किया। सरमा ने बताया –
“हम पाथोरीचक के बुनकरों में एक टिकाऊ मॉडल बनाना चाहते थे, जिसमें 173 यानि लगभग
70% महिलाएं पारम्परिक हथकरघा बुनाई में माहिर थी। हमने ‘सूता’ यानि धागा के नाम से
एक पायलट परियोजना की योजना बनाई।”
शुरुआत में
10 महिलाओं ने सूता में शामिल होने की इच्छा जताई और जब तक यह परियोजना शुरू हुई, तीन
और शामिल हो गई। माटी ने महिलाओं को वह वस्तुएं बुनने के लिए कहा, जिसके भारत भर में
खरीदार हों। इसलिए अपने करघे के आकार या डिज़ाइनों को बदले बिना, कारीगरों को स्टोल
(दुपट्टा) बुनने के लिए कहा गया, जिसे हर कोई इस्तेमाल कर सकता है।
बुनकर कल्याण
पायलट परियोजना के आखिर तक, इसके लाभ को देखते हुए, सभी महिला बुनकर परियोजना
के दूसरे चरण में शामिल होना चाहती थी। प्रत्येक महिला को तीन किलो अच्छी गुणवत्ता
के मुफ़्त सूती धागे, 2 लाख रुपये की स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी, असम ग्रामीण विकास में
बैंक खाता, और वापिस खरीदी की व्यवस्था प्रदान की गई।
पबित्रा
सरमा बताती हैं – “हमने घर पर उनके पुराने पारम्परिक करघों की मरम्मत के लिए भी पैसा
दिया। पहली बार, प्रत्येक बुनकर को एक धागा-पासबुक दी गई, ताकि वे अपने द्वारा इस्तेमाल
किए गए धागे की मात्रा का और बाद में इस्तेमाल हो सकने वाले बचे हुए धागे का हिसाब
रख सकें।”
पबित्रा सरमा ने VillageSquare.in को बताया – “हम वापिस खरीद पर जोर देते हैं, क्योंकि हम नहीं चाहते कि किसी भी बुनकर को उसके काम के भुगतान के लिए अंतहीन इंतजार करना पड़े। इस पहल से जो उपलब्धि हुई है, वह यह कि इन महिलाओं उद्देश्य की भावना पैदा हुई।”
आय में वृद्धि
महिलाओं को अगस्त में उनकी पसंद के रंग का धागा मिला और 1 अक्टूबर तक माटी को
283 स्टोल मिल चुके थे। बुनाई का शुल्क 300 रुपये प्रति स्टोल तय किया गया। प्रत्येक बुनकर को उनके बुने सामान के जमा करने के 48 घंटों के
भीतर, 3,000 रुपये का भुगतान किया गया।
सरमा
बताते हैं – “क्योंकि हमने पहले ही सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी दे दी थी,
इसलिए 72 घंटों के भीतर 270 स्टोल बिक गए। हम प्रति स्टोल 690 रुपये चार्ज करते हैं
और कम से कम 12 स्टोल की थोक बिक्री करते हैं। हमारे खरीदार, डिजाइनर और बुटीक हैं।”
धागे
के वितरण से लेकर, तैयार माल को इकट्ठा करने के काम की देखरेख करने और यह सुनिश्चित
करने के लिए कि माल माटी केंद्र पहुँचे, एक स्थानीय दर्जी, संजय पायेंग को मासिक वेतन
पर नियुक्त किया गया है। पायेंग अपनी नई जिम्मेदारी से खुश हैं।
पायेंग ने VillageSquare.in को बताया – “मेरी धीरे-धीरे इन महिलाओं को सिलाई सिखाने की योजना है, जिससे हमारे उत्पादों की विविधता बढ़ेगी। नए पुल हमें माजुली तक नाव से जाने के लिए, घाट तक पहुंचने में मदद करते हैं। इसलिए मेरे लिए माटी केंद्र को हमारे उत्पाद कूरियर करना आसान हो गया है।”
बुनकर
रूमी पायेंग (25), मैना पायेंग (35) और बुलेश्वरी पायेंग (47) सूता से खुश हैं। उन्होंने
कहा कि जो पैसा वे कमाती हैं, वह उन्हें अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा करने और घर
के अन्य खर्चों को पूरा करने में मदद करेगा।
सरमा दंपत्ति ने कहा – “हमें उत्पादन बढ़ाने के लिए अग्रिम ऑर्डर और अधिक
धन की जरूरत है। हमारी महिलाएं अपने हथकरघों से किसी भी पॉवरलूम उत्पादन का मुकाबला
कर सकती हैं।” वे एक सामुदायिक केंद्र का निर्माण करना चाहते हैं और माजुली के
दूसरे गाँवों की महिला बुनकरों को भी शामिल करना चाहते हैं। “हमें उम्मीद है कि
हम बहुत जल्द इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे।”
सुरेखा
कडप्पा-बोस ठाणे में स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। उनका ई-मेल
पता है – surekhabose@gmail.com
अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए, तमिलनाडु के शिक्षित युवाओं ने अपनी पैतृक भूमि का आधुनिकीकरण करके और इज़राइली कृषि तकनीक का उपयोग करके कृषि उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया है।
पोषण सखी या पोषण मित्र के रूप में प्रशिक्षित महिलाएं ग्रामीण महिलाओं, विशेषकर गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पौष्टिक भोजन खाने और एनीमिया और कम वजन वाले प्रसव पर काबू पाने के लिए सलाह और मदद करती हैं।
ओडिशा में, जहां बड़ी संख्या में ग्रामीण घरों में नहाने के लिए बंद जगह की कमी है, बाथरूम के निर्माण और पाइप से पानी की आपूर्ति से महिलाओं को खुले में नहाने से बचने में मदद मिलती है।