दही के उपयोग से, जमीनी स्तर के नवाचार के माध्यम से बिहार में खेती की लागत कम हुई

मुजफ्फरपुर, बिहार

वैज्ञानिक रूप से अभी मान्य ने होने के बावजूद, तांबे के साथ दही का एक मिश्रण, उत्तरी बिहार के कई हिस्सों में लोकप्रिय हो गया है, क्योंकि इससे बहुत से छोटे और सीमांत किसानों की पैदावार बढ़ाते हुए, खेती की लागत में कटौती की है

दो सीमांत किसानों, जगरनाथ प्रसाद और अजीत कुमार ने अपने खेत में यूरिया की जगह घर की दही से तैयार किया हुआ अपना ही नुस्खा इस्तेमाल करके, उत्पादन की लागत में कमी और आय में वृद्धि की है। दोनों ने अपनी खरीफ और रबी की फसलों के साथ-साथ सब्जियों, लीची और आम के उत्पादन में सफलतापूर्वक वृद्धि की है।

जगरनाथ और अजीत, सावधानी से तैयार किए हुए दही के मिश्रण को एक मिट्टी के बर्तन में रखते हैं और उसमें 10 से 15 दिनों के लिए एक तांबे का चम्मच डाल कर छोड़ देते हैं| इसके बाद वे यूरिया और डीएपी, पोटाश और कीटनाशकों की जगह इसे सब्जियों, लीची और आम पर छिड़कते हैं। वे इसे खेतों में छिड़कने के लिए वर्मीकम्पोस्ट के साथ भी मिलाते हैं, जिससे उनकी फसलों को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश मिलता है।

दही मिश्रण के उपयोग के इस जमीनी स्तर के नवाचार को, अभी तक कृषि एवं मृदा वैज्ञानिकों द्वारा वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं किया गया है। बिहार के सरैया में स्थित, कृषि विज्ञान केंद्र के मृदा वैज्ञानिक के.के. सिंह ने VillageSquare.in को बताया – ”मुझे किसानों द्वारा यूरिया की जगह, दही के मिश्रण के इस्तेमाल के बारे में पता चला है, लेकिन न तो किसी प्रयोगशाला में इसके नमूने का परीक्षण हुआ है और न ही मैं इसे प्रमाणित कर सकता हूं।”

दिलचस्प नवाचार

मुजफ्फरपुर के जिला कृषि अधिकारी, कृष्ण कुमार वर्मा के अनुसार – “मुझे व्यक्तिगत रूप से सत्यापित करने के लिए, यूरिया की जगह दही के मिश्रण के उपयोग को देखना होगा, क्योंकि यह दिलचस्प है। मुझे जानकारी है कि सैकड़ों किसान इसका उपयोग कर रहे हैं।”

मुज़फ़्फ़रपुर जिले के सकरा प्रशासनिक ब्लॉक के मछाही गाँव के निवासी, जगरनाथ और अजीत, खरीफ़ के मौसम में उत्पादन की लागत को लेकर निश्चिन्त हैं और उन्हें किसी प्रकार की चिंता नहीं है। जगरनाथ ने VillageSquare.in को बताया – “हमने यूरिया की जगह दही के मिश्रण का उपयोग शुरू कर दिया है। यह न केवल किफायती है, बल्कि इससे जैविक खेती को भी बढ़ावा मिलता है।” अजीत ने कहा – “हमारी फसलों का उत्पादन बढ़ा है और सब्जियों की प्रतिरोधक क्षमता और जीवन 25 से बढ़कर 40 दिन हो गया है।”

व्यापक रूप से अपनाना

वे अपने खेतों पर यूरिया के स्थान पर दही मिश्रण का उपयोग करने वाले उन लगभग 90,000 किसानों में से दो हैं, जो अधिकतर मुजफ्फरपुर और उत्तर बिहार के वैशाली, समस्तीपुर, बेगूसराय और दरभंगा के पड़ोसी जिलों से हैं।

मुज़फ़्फ़रपुर के अधिकतर गाँवों की तरह, मछाही भी हरियाली भरा एक गांव है। यह गांव एक प्रगतिशील किसान, दिनेश कुमार की बदौलत इस नए और नवचारपूर्ण प्रयोग का केंद्र बन गया है| दिनेश कुमार इसके उपयोग को बढ़ावा दे रहे हैं, इनका छिड़काव करने और वर्मीकम्पोस्ट के साथ उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं और इसे तैयार करने के लिए प्रशिक्षण दे रहे हैं। उन्होंने VillageSquare.in को बताया – “मैं सिर्फ इसे किसानों के बीच लोकप्रिय करने का काम निशुल्क कर रहा हूँ। मैंने अपने गांव के 5 या 6 किसानों के साथ इसे 2011 में शुरू किया था। अब 60,000 से 65,000 किसान ऐसे हैं, जो यूरिया और कीटनाशकों की जगह नियमित रूप से इसका उपयोग कर रहे हैं, और 25,000 से 30,000 किसान हैं, जो कम से कम एक फसल पर इसका उपयोग कर रहे हैं| यह मेरे लिए और जैविक खेती के विकास के लिए एक बड़ी सफलता है।”

दिनेश के अनुसार, जो ‘मछाही सकरा सब्ज़ी उत्पादक कृषक हितकारी समुह’ के प्रमुख हैं, मुज़फ़्फ़रपुर और अन्य जिलों के गाँवों में फैले सैकड़ों किसान क्लबों और किसान समितियों के हजारों सदस्य अपने खेतों में मिश्रण का उपयोग कर रहे हैं। हजारों किसानों में अपने दही मिश्रण प्रयोग की बढ़ती लोकप्रियता से खुश, दिनेश इसे एक ब्रांड नाम देने की योजना बना रहे हैं। “इसका उपयोग करने वाले 90,000 किसानों के अलावा, हम लगभग 1 लाख किसानों के संपर्क में हैं और उनके साथ नियमित बैठकें कर रहे हैं।”

वैज्ञानिक उदासीनता

दिनेश ने VillageSquare.in को बताया, कि अभी तक नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और बिहार के समस्तीपुर में राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के वैज्ञानिकों ने, फसल पर छिड़काव के लिए मिश्रण के प्रभाव पर, प्रयोगशाला में वैज्ञानिक परीक्षण करने में रुचि दिखाई है। दिनेश कहते हैं – “कृषि वैज्ञानिकों की एक टीम को एक अध्ययन और उसके बाद प्रयोगशाला परीक्षण करना चाहिए, ताकि इसके उपयोग को वैज्ञानिक आधार प्राप्त हो। एक बार इसे वैज्ञानिक वैधता मिल गई, तो इसकी लोकप्रियता बढ़ेगी और यूरिया का उपयोग एक हद तक कम होगा।”

दही मिश्रण का उपयोग शुरू करने के बाद, कुछ महिला किसान भी खुश हैं। किरण देवी कहती हैं – “हमें मिश्रण के उपयोग से बेहतरीन परिणाम मिले हैं।”

दिनेश का कहना है कि इस मिश्रण के छिड़काव के बाद लगभग 40 दिनों तक फसलों को नाइट्रोजन और फॉस्फोरस मिलता है। 25 किलो यूरिया की जगह केवल 2 किलो मिश्रण काफी होता है। दिनेश कहते हैं – “यूरिया या रासायनिक छिड़काव की तुलना में, दही मिश्रण का छिड़काव सस्ता है और बिना किसी दुष्प्रभाव के, हमारे लिए अधिक परिणाम-दायक साबित हो रहा है। एक एकड़ फसल में रासायनिक छिड़काव पर हमें 1,100 रुपये खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन घर पर दही तैयार करने के लिए केवल 2.5 किलोग्राम दूध की आवश्यकता होती है।”

इस्तेमाल में आसानी

दही मिश्रण तैयार करना आसान है। दही तैयार हो जाने के बाद, उसके बर्तन में एक तांबे या कांस्य के चम्मच को 10 से 15 दिनों के लिए डाला जाता है। दही का रंग सफेद से हरे रंग में बदल जाता है। इसे स्थानीय लोगों में ‘टुटिया’ के रूप में जाना जाता है, जिसका पानी में मिलाकर छिड़काव किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि दही में पानी मिलाने के बाद, उससे जो मक्खन आता है, उसे कीटनाशकों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। दिनेश ने VillageSquare.in को बताया – “हमने उस मक्खन में वर्मीकम्पोस्ट मिलाया और उसे जड़ों, तने और पौधों पर इसका इस्तेमाल किया।”

दिनेश ने बताया कि उनसे प्रशिक्षण पाने के बाद, दिल्ली के बुराड़ी रोड, नाथुपुरम, इब्राहिमपुर, उत्तमनगर, नांगलोई, गुड़गांव, नजफगढ़ और रोहिणी के लगभग 150 बड़े किसान अपने खेतों में मिश्रण का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने दावा किया – “सीमांत किसानों के विपरीत, दिल्ली के आसपास के फार्म हॉउसों के मालिक या तो बड़े और अमीर किसान हैं, या उद्योगपति और राजनीतिक लोग, जो जैविक खेती के लिए, रासायनिक खाद की जगह, मिश्रण का उपयोग कर रहे हैं| 

मोहम्मद इमरान खान पटना-स्थित एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं