लौट कर आए प्रवासियों ने आजीविका के लिए अपनाई तस्करी

मालदा और उत्तरी 24 परगना, पश्चिमी बंगाल

भारत - बांग्लादेश सीमा के नजदीक पश्चिम बंगाल के गाँवों में, लॉकडाउन के दौरान घर वापस आए प्रवासियों को आर्थिक सहारे के लालच में तस्करी में डाल दिया गया है

भारत-बांग्लादेश सीमा के पास बसीरहाट के निवासी मुश्ताक खान, लॉकडाउन के कारण बेरोजगार होने से पहले, नई दिल्ली में एक मजदूर के रूप में काम कर रहे थे। 27-वर्षीय मुश्ताक ने दूसरी नौकरी के लिए बहुत कोशिश की, लेकिन किसी प्रकार की सफलता न मिलने के कारण, वह अपने गांव वापस आने के लिए मजबूर हो गए। मार्च में घर लौटने के बाद से, वह तीन महीने तक बेरोजगार रहे।

अपने परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ, वह सीमा पार अवैध तस्करी में शामिल हो गया। मुश्ताक खान का कहना है – “मैं दिल्ली में एक मजदूर के रूप में काम करके हर दिन 500 रुपये कमाता था, लेकिन लॉकडाउन के कारण मेरी आमदनी बंद हो गई।”

उसने VillageSquare.in को बताया – “मुझ पर पाँच सदस्यों के अपने परिवार को चलाने की जिम्मेदारी है, जिसमें मेरे दो छोटे बच्चे शामिल हैं। वापिस आने के बाद, मैंने यहां काम की तलाश की, लेकिन प्रयास व्यर्थ गए।” कोई ओर रास्ता न देख, उसने खांसी की दवा फेंसेडिल की तस्करी शुरू कर दी। एक खेप में वह 1,000 रुपये, और कभी-कभी इससे भी ज्यादा कमा लेता है।

देश भर के विभिन्न स्थानों से लौटकर बांग्लादेश की सीमा के पास अपने गाँवों में आए युवाओं ने, आमदनी का कोई साधन नहीं होने के कारण, अपने घर का चूल्हा जलाने के लिए, पड़ोसी देश में माल की तस्करी का सहारा ले लिया।

लौटकर आए प्रवासी

राज्य सरकार के अनुसार, महामारी के दौरान दस लाख से ज्यादा लोग पश्चिम बंगाल लौट आए हैं। उनमें से ज्यादातर केरल, महाराष्ट्र, तेलंगाना और देश के अन्य हिस्सों में मजदूरों के रूप में अलग-अलग तरह के काम कर रहे थे|

23 अगस्त को, सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने अहसान अली को पश्चिम बंगाल के मालदा जिले से गिरफ्तार कर लिया, जब वह कथित रूप से बांग्लादेश में मवेशियों की तस्करी करने की कोशिश कर रहा था। 25 वर्षीय अली केरल से लौटने के बाद बेरोजगार था, जहां वह एक मजदूर के रूप में काम कर रहा था। कथित रूप से एक स्थानीय तस्कर ने उसे इस व्यापार में झोंक दिया।

भारत-बांग्लादेश सीमा के करीब के गाँव, जहाँ लॉकडाउन के दौरान लौटे प्रवासियों के पास कोई आजीविका नहीं थी, आजकल तस्करी में बढ़ोत्तरी का सामना कर रहे हैं (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

चार दिन बाद, बीएसएफ ने नदिया जिले से किसी निताई मोंडोल (42) को गिरफ्तार किया। वह कथित रूप से बांग्लादेश को फेंसेडिल की तस्करी करने की कोशिश कर रहा था, जहां इसका इस्तेमाल नशे के रूप में किया जाता है। मोंडोल ने खुलासा किया कि वह कोलकाता के जुड़वां शहर हावड़ा के रेलवे स्टेशन पर सामान बेचता था और हर महीने लगभग 8,000 रुपये कमाता था। तस्करी की हर खेप से उसे लगभग 300 रुपये मिलते थे।

तस्करी में वृद्धि

आंकड़ों के मुताबिक, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने इस साल जून और जुलाई में कथित तौर पर तस्करी में शामिल 104 लोगों को पकड़ा था। इस साल के इन दो महीनों में पकड़े गए लोगों की संख्या, पिछले पूरे साल से अधिक है।

इसी तरह के अपराध के लिए, इतने समय में 2019 में 80 लोगों को और 2018 में 39 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इस अर्धसैनिक बल ने जून और अगस्त के बीच 21 मानव तस्करों को गिरफ्तार किया है, जबकि पिछले साल कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई थी।

इन तीनों तस्करों का मामला समस्या का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है।  तालाबंदी के दौरान अपनी आजीविका खो चुके, सीमावर्ती क्षेत्रों के करीब, बहुत से ग्रामीणों ने सीमा पार तस्करी के आकर्षक व्यापार को अपनाया है।

झरझरा (छिद्रदार) सीमा

पश्चिम बंगाल में भारत-बांग्लादेश सीमा, देश के राज्यों में सबसे लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा है। भारत की कुल 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा में से, अकेले पश्चिम बंगाल में पड़ोसी देश से लगती 2,216 किलोमीटर की सीमा है। दक्षिण बंगाल में, यह सीमा 900 किमी से अधिक लंबी है, जिसमें से लगभग 60% नदियों द्वारा बनी है। सैकड़ों किलोमीटर में सीमा में सुराख़ हैं, यानि निगरानी कम है, जिससे अवैध व्यापार को बढ़ावा मिलता है।

सीमा के एकदम नजदीक रह रहे ग्रामीणों ने, पिछले कुछ महीनों से इन गतिविधियों में बड़े पैमाने पर वृद्धि का दावा किया है। उत्तरी 24 परगना के घोजडांगा के, भारत-बांग्लादेश सीमा से बमुश्किल 200 मीटर की दूरी पर रहने वाले, प्रसनजीत सरकार (30) ने बताया – “हम कई पुरुषों और महिलाओं को बार-बार आते जाते देखते रहे हैं, जबकि पहले यह आना जाना उतना नहीं था।”

सरकार कहते हैं – “अर्धसैनिक बल ने लोगों को कफ-सिरप, जूते और अन्य सामानों की तस्करी की कोशिश करते पकड़ा है। लेकिन उनके लिए यह संभव नहीं, कि वे हर किसी की तलाशी ले सकें, क्योंकि सीमा में कई जगह निगरानी की कमी है और तस्कर रात के घुप अँधेरे में कर्मियों को चकमा देने में सफल हो जाते हैं।”

भारत-बांग्लादेश सीमा के बहुत करीब रह रहे, प्रसनजीत सरकार ने लॉकडाउन के दौरान तस्करों की गतिविधियों में बढ़ोतरी देखी है (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

प्रसनजीत सरकार के अनुसार, बीएसएफ द्वारा सतर्कता बढ़ाने के कारण, पशु तस्करी में काफी कमी आई है। छोटे सामान, गांजा (मारिजुआना), फेंसेडिल और गहनों की तस्करी अभी भी जारी है।

प्रसनजीत सरकार ने VillageSquare.in को बताया – “तस्कर थैलियों में रखकर, सामान को आराम से सीमा की बाड़ पर फेंक देते हैं। वे यहां तक ​​कि सीमा के साथ बह रही इच्छामती नदी में तैर रहे पशुओं के शवों के अंदर तस्करी का सामान छिपाने जैसे तरीकों का इस्तेमाल करते हैं।”

गतिविधियों की बारीकी से निगरानी करने वाले लोगों का मानना है कि बाहर से आने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। पिछले चार दशकों से सीमा के करीब एक ऑटो चालक के रूप में काम कर रहे, साजिद सरदार (73) का कहना है – “हम सीमा के करीब बहुत से बाहरी लोगों को देख रहे हैं, जो पहले नहीं देखे गए थे। हमारे इलाके में कुछ दिन पहले, खांसी की दवाई की तस्करी करने वाला एक युवक पकड़ा गया था।”

मोटे फायदे का धंधा – तस्करी

एक सामाजिक कार्यकर्ता, बाबुल बराल, जो उत्तर 24 परगना में सीमा से लगभग 20 किमी दूर रहते हैं, बताते हैं – “यह बीएसएफ, कस्टम विभाग के अधिकारियों और राजनीतिज्ञों, चाहे वे किसी भी पार्टी से हों, के बीच एक अपवित्र सांठगांठ का नतीजा है, क्योंकि तस्करी में मोटा पैसा है। पशुओं और दूसरी वस्तुओं की मांग इतनी ज्यादा है कि नीलामी के बाद भी व्यापारी उन्हें खरीदने में कोई गुरेज नहीं करते।”

बाबुल बराल ने VillageSquare.in को बताया – “उदाहरण के लिए, एक भैंस, जिसकी यहाँ कीमत लगभग 50,000 रुपये है, बांग्लादेश में 1.5 लाख रुपये में बेची जाती है। अपनी नशे की विशेषता के कारण, यहाँ 20 रुपये में मिलने वाली फेंसेडिल, 200 रुपये में बेची जा सकती है। नेताओं के खोखले वादों के साथ-साथ, रोजगार के अभाव के कारण, लोगों के पास आजीविका के लिए अवैध व्यापार के अलावा कोई विकल्प नहीं है।”

2016 में, बांग्लादेश सरकार के आग्रह पर भारत सरकार ने फेंसेडिल के उत्पादन तक पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने दवा निर्माताओं की अपील पर सरकारी कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगा दी।

तस्करों की मिलीभगत

अवैध गतिविधियों में बीएसएफ कर्मियों की भूमिका जांच के दायरे में है, क्योंकि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने पिछले महीने, पश्चिम बंगाल से बांग्लादेश को पशुओं की तस्करी में कथित भूमिका के लिए, बीएसएफ कमांडेंट और तीन व्यापारियों पर केस किया था। कस्टम अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है।

उत्तर 24 परगना के घोजडांगा में, भारत और बांग्लादेश के बीच बाड़, तस्करी पर अंकुश लगाने में बहुत प्रभावी नहीं है (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

बीएसएफ कमांडेंट ने कथित तौर पर 2015 और 2017 के बीच सीमा-क्षेत्र वाले मालदा में अपनी पोस्टिंग के दौरान, ज्ञात स्रोतों से आय से ज्यादा संपत्ति बना ली थी। शीर्ष जांच एजेंसी, सीबीआई के गुप्तचर दल ने, दिल्ली, कोलकाता, सिलीगुड़ी, मुर्शिदाबाद, गाजियाबाद, अमृतसर और रायपुर सहित, कई शहरों के 15 स्थानों पर छापे मारे थे।

पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के अनुसार, बीएसएफ की जब्ती मेमो में, जब्त किए गए पशुओं की संख्या कम और उनकी नस्ल सामान्य दर्ज की गई थी, ताकि उन पशुओं की नीलामी कम कीमत में की जा सके। सरकारी अधिकारियों के साथ सांठगांठ से व्यापारियों ने पशुओं को काफी कम कीमत पर ख़रीदा।

दस्तावेजों में पशुओं को स्थानीय बाजार में बेचा दिखाया गया था। लेकिन असल में उनकी अंतर्राष्ट्रीय सीमा से अवैध रूप से तस्करी की जाती थी।

बीएसएफ के वरिष्ठ अधिकारी लॉकडाउन के बाद अवैध गतिविधियों में वृद्धि की बात स्वीकार करते हैं। बीएसएफ के उप महानिरीक्षक (दक्षिण बंगाल फ्रंटियर), एस.एस. गुलेरिया का कहना है – “कुछ बेरोजगार प्रवासियों को आसान पैसे का लालच देकर, पशुओं और नशीले पदार्थों की तस्करी सहित आपराधिक गतिविधियों के लिए लक्ष्य बनाया जा रहा है।”

गुलेरिया ने VillageSquare.in को बताया – “हमने तस्करी में शामिल कुछ लोगों को पहले ही पकड़ लिया है। उन्होंने उन्हें भर्ती करने वाले लोगों के नाम बताए हैं। बीएसएफ सतर्क है और कड़ी निगरानी रख रही है।” 

(अनुरोध पर कुछ नाम बदल दिए गए हैं।)

गुरविंदर सिंह कोलकाता स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।