किशोरियाँ पूर्ण सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ी

रीवा, मध्य प्रदेश

दमनकारी नियम-कायदों ने किशोरियों को खराब स्वास्थ्य और शीघ्र विवाह की ओर धकेल दिया। समूहों में एक साथ लाने से, उन्हें अपने स्वास्थ्य में सुधार करने, बाल विवाह को रोकने और व्यावसायिक कौशल सीखने में मदद मिली है

मध्य प्रदेश के रीवा जिले में किशोर लड़कियां, COVID-19 के मद्देनजर ग्रामवासियों में बाँटने के लिए मुखौटे बना रही हैं। लड़कियों का एक छोटा समूह, जरूरी एक मीटर की दूरी बनाए रखते हुए काम करता है और प्रतिदिन 150 से 350 मास्क बनाता है।

लड़कियों ने लॉकडाउन से पहले मास्क बनाना सीखा। उनके बनाए हुए कपास के मास्क ग्रामवासियों में बाँटे गए हैं। ग्रामवासी मास्क का उपयोग कर रहे हैं। जो लड़कियां मुखौटे बनाती हैं, वे ऐसे समूहों की सदस्य होती हैं, जो उनसे संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने और आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में व्यावसायिक कौशल सीखने में मदद करते हैं।

सामाजिक रीति-रिवाज

रीवा में किशोरियों में स्कूल छोड़ने की दर काफी अधिक है। ये लड़कियां आमतौर पर पढ़ाई में पिछड़ जाती हैं और ज्यादातर कक्षा 5 तक पढ़ती हैं। ज्यादातर लड़कियां समाज के सबसे गरीब तबके से सम्बन्ध रखती हैं और अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं।

प्रचलित सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार, ज्यादातर लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो जाती है। आम तौर पर, जब लड़कियां 12 से 15 साल के बीच होती हैं, उनकी शादी हो जाती है, इससे पहले कि शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व हों। अज्ञानता और घर में अपर्याप्त मार्गदर्शन के कारण, लड़कियां अपने स्वास्थ्य की देखभाल नहीं कर पाती। उनमें से ज्यादातर एनीमिया (खून की कमी) से पीड़ित होती हैं।

लड़कियों के समूह

लड़कियों को इस तरह की समस्याओं से निपटने और उनसे सम्बंधित विभिन्न पहलुओं पर जागरूकता फैलाने में मदद करने के लिए, इस क्षेत्र में काम करने वाले एक जमीनी संगठन, विकास संवाद समिति (VSS) ने प्रत्येक गांव में किशोर लड़कियों के समूहों के गठन में मदद की।

VSS के समन्वयक, पुष्पेन्द्र सिंह ने VillageSquare.in को बताया – “आमतौर पर लड़कियों की उम्र 10 से 12 वर्ष के बीच होती है। चर्चा के माध्यम से हम विवाह के लिए सही उम्र, मासिक धर्म स्वच्छता, शिक्षा का महत्व, आदि के बारे में बताते हैं।”

कार्यक्रम की शुरुआत सहज नहीं थी। 2015 के अंत तक, VSS ने गांवों में अनुरोध किया कि ऐसे समूहों के गठन से महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में बात करने में मदद मिलेगी। धीरे-धीरे समितियों का गठन किया गया और सदस्यों का चयन किया गया। लड़कियों के बीच एक या दो घंटे विभिन्न विषयों पर चर्चा होती है।

स्वास्थ्य में सुधार

चर्चाओं में लड़कियाँ अपने वजन और हीमोग्लोबिन के स्तर के प्रबंधन के बारे में सीखती हैं। आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, और सहायक नर्स दाइयाँ चर्चा के दौरान मौजूद रहती हैं, ताकि लड़कियाँ खुलकर बात कर सकें और अपनी शंकाओं को दूर कर सकें।

शुरुआत में, लड़कियों को साफ-सफाई बनाए रखने और प्रोटीन-युक्त भोजन ग्रहण करने के महत्व की जानकारी नहीं थी। VSS की सिया दुलारी ने बताया – “हमने उन्हें आहार में प्रोटीन और आयरन का महत्व बताया।” जागरूक होने पर लड़कियों को उचित भोजन ग्रहण करने में मदद मिली और उनके स्वास्थ्य में सुधार दिखाई देने लगा।

पोषण लाभ के लिए VSS उन्हें किचन गार्डन से शुरूआत करने में मदद कर रहा है। लड़कियों ने भोजन में सब्जियों के महत्व के बारे में समझा। खैरा गाँव की चंदा आदिवासी ने VillageSquare.in को बताया – “मैं इन दिनों भिन्डी, पालक और दालें बहुत खाती हूँ। मैं कक्षा 9 में हूँ और आगे पढ़ना चाहती हूँ।”

जब ग्रामवासियों ने समूह में सदस्य होने के कारण लड़कियों को होने वाले फायदे देखे, तो VSS ने लड़कियों में धीरे-धीरे प्रजनन स्वास्थ्य, सशक्तिकरण, बाल विवाह, तनाव प्रबंधन और सिलाई और ब्यूटीशियन कोर्स जैसे रोजगार के अवसरों के बारे में चर्चाएं शुरू करवाई।

मासिक धर्म स्वच्छता जागरूकता

दस्तक किशोरी समुह की सदस्य, 17 वर्षीय निर्मला आदिवासी रीवा के धुरकुछ गाँव में रहती हैं। सदस्य बनने के बाद, उन्होंने कुपोषण, स्वास्थ्य, स्वच्छता और मासिक धर्म के दौरान अपनी देखभाल के बारे में सीखा।

निर्मला आदिवासी ने VillageSquare.in को बताया – “हमने मासिक धर्म के दौरान दर्द को कम करना सीखा। हमने समझा कि हमें डरने या शर्माने की जरूरत नहीं है। हमें कपड़े की बजाय पैड का उपयोग करने के लिए कहा गया। कपड़े धोने में समस्या है और उन्हें धूप में सुखाने के लिए कोई उपयुक्त जगह नहीं है।”

जब किशोर लड़कियाँ एक समूह में होती हैं, तो उन्हें संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा करना आसान लगता है (फोटो – विकास संवाद समिति के सौजन्य से)

लड़कियों ने सिया दुलारी को बताया कि पहले किसी ने उनसे मासिक धर्म के बारे में बात नहीं की थी। वे कहती हैं – “हमने चर्चा की कि जो लोग सैनिटरी नैपकिन नहीं खरीद सकते, उन्हें कैसे सूती कपड़े के पैड का उपयोग और उन्हें बदलना चाहिए और उन्हें गर्म पानी में धोने और धूप में सुखाने के फायदे क्या हैं। हमने लड़कियों के परिवार महिला सदस्यों से चर्चा में शामिल होने के लिए कहा।

बाल विवाह की रोकथाम

सामाजिक और आर्थिक कारणों से लड़कियों की पढ़ाई रुक जाने के बाद, कम उम्र में उनकी शादी कर दी जाती है। रीवा में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता, राम नरेश, जिनका संगठन, ‘रेवांचल दलित आदिवासी सेवा संस्थान’, VSS के साथ भागीदार है, के अनुसार, बाल विवाह को रोकना सबसे महत्वपूर्ण काम रहा है।

नरेश ने VillageSquare.in को बताया – “हम कुपोषण और महिलाओं एवं किशोर लड़कियों के स्वास्थ्य अधिकारों पर काम करते थे। इसलिए हमने VSS को महिलाओं, बच्चों, युवाओं और किशोर लड़कियों के अलग-अलग समूह बनाने में मदद की। लड़कियों ने हमें बाल विवाह के बारे में जानकारी दी। हम माता-पिता के साथ सलाह-मशवरे के द्वारा ऐसी शादियों को रोकने में सफल हुए।”

सशक्तिकरण

नरेश ने बताया – “अब इन किशोरियों में इतना आत्मविश्वासी आ गया है, कि वे सामाजिक समारोहों में बात करती हैं। वे हमें भोजन सम्बन्धी आदतों के बारे में पूछताछ करने और ये संदेश फैलाने के लिए दूसरे गांवों में चलने के लिए कहती हैं।” उन्हें और सशक्त बनाने के लिए, लड़कियों को व्यावसायिक कौशल सिखाया गया।

कुछ लड़कियों ने ब्यूटीशियन का कोर्स किया है। कुछ लड़कियों को सिलाई में प्रशिक्षण दिया गया था, जिससे उन्हें लॉकडाउन के दौरान मास्क सीलने और ग्रामवासियों में बाँटने में मदद मिली। लड़कियों के समूह की एक सदस्य, जिन्होंने सिलाई में प्रशिक्षण प्राप्त किया है, रेणु साहू भविष्य में एक नर्स के रूप में प्रशिक्षण पाना चाहती हैं।

लड़कियों के समूहों के अलावा, रीवा के सभी 26 गांवों में, युवा समूह, बाल समूह और महिला समूह बनाए गए हैं। सिंह बताती हैं – ”हमने विभिन्न गतिविधियों और चर्चाओं के लिए, अलग-अलग समूह बनाए।” बच्चों के समूहों में, बच्चे स्कूलों में साफ पानी और शौचालय आदि के अपने अधिकारों पर चर्चा करते हैं| बच्चों के समूहों में कक्षा 6 से 10 तक के सदस्य होते हैं।

इसी तरह, युवा समूहों में 19 से 26 वर्ष की आयु के सदस्य होते हैं और इसमें महिला और पुरुष दोनों शामिल होते हैं। लेकिन कभी-कभी युवा समूहों में महिलाओं को अभी भी पुरुषों के साथ मुद्दों पर चर्चा करना मुश्किल लगता है। हालाँकि सिंह ऐसा मानती हैं कि उनकी हिचकिचाहट धीरे-धीरे दूर हो जाएगी और बेहतर जागरूकता से सकारात्मक बदलाव आएगा।

दीपान्विता गीता नियोगी दिल्ली की एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।