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संयोग से बनी डेयरी किसान

दूध के महंगे दामों से बचने के लिए, नमिता पतजोशी ने एक गाय खरीदी। अतिरिक्त दूध पड़ोसियों को बेचने से शुरू हो कर, उनकी पशुशाला एक बड़े डेयरी फार्म में विकसित हो गई है। अपने तीन बच्चों की पढ़ाई के बाद, अब वह अपने कर्मचारियों के बच्चों की पढ़ाई सुनिश्चित करना चाहती हैं।

कोरापुट, उड़ीसा

मैंने सपने में नहीं सोचा था कि मैं एक दिन एक उद्यमी बनूंगी।

मेरा जन्म ओडिशा के जयपुर के एक गरीब परिवार में हुआ था। मेरे पिता बिजली विभाग में एक लाइनमैन थे और मेरी माँ एक गृहिणी थीं।

मैं सबसे बड़ी थी और मेरे बाद एक भाई और बहन हैं। मेरे पिता ने किसी तरह मुझे बारहवीं तक पढ़ाया।

जब मैं केवल 17 साल की थी, तो मेरे माता-पिता ने मेरी शादी कर दी। शादी के बाद, अपने पति के साथ रहने के लिए मैं कोरापुट आ गई।

हालांकि मेरे पति की सरकारी नौकरी थी, लेकिन उनका वेतन बहुत कम था। इसलिए मैं भी एक निजी स्कूल में शिक्षक बन गई।

लेकिन मेरी आय भी सीमित थी। ऐसे में हमारे लिए परिवार चलाना मुश्किल हो गया था।

मैं अपने  दो बेटियों और बेटे के लिए रोज दो लीटर गाय का दूध ख़रीदती थी। एक लीटर की कीमत 10 रुपये थी। मेरा  600 रुपये महीना दूध पर खर्च हो रहा था! यह हमारे जैसे गरीब परिवार के लिए यह बहुत ज्यादा था।

मैंने अपने बच्चों को शुद्ध दूध पिलाने और 600 रुपए बचाने के लिए, एक गाय खरीदने का फैसला किया।

मैंने अपनी सोने की चेन गिरवी रखी और 600 रुपये में एक गाय खरीद ली।

गाय रोज 7 लीटर दूध देती थी। मैं अपने बच्चों के लिए 2 लीटर रख कर बाकी 10 रुपए लीटर अपने पड़ोसियों को बेचने लगी। मैंने प्रतिदिन 50 रुपये कमाए।

फिर मैंने बैंक से 8,000 रुपये का कर्ज लिया और एक और गाय खरीदी। मैंने 10 महीने में ही कर्ज चुका दिया।

जल्दी ही शुद्ध मिलावट-रहित दूध के लिए मेरे घर के बाहर लोगों की भीड़ लगनी शुरू हो गई। मेरा व्यवसाय फलने-फूलने लगा।

मैंने अपने फार्म का नाम अपनी सास के नाम पर ‘कंचन डेयरी फार्म’ रखा।

शुरूआती दिनों में, गाय का दूध निकालने से लेकर गोबर साफ करने तक का सारा काम मैं खुद ही करती थी।

अब मेरे पास 130 दूध देने वाली गाय हैं। मुझे हर दिन लगभग 600 लीटर मिलता है, जिसे कोरापुट शहर के लगभग 500 ग्राहकों को बेच देती हूँ।

हम दूध 60 रुपये प्रति लीटर बेचते हैं। हम 4 किमी के दायरे में होम डिलीवरी के लिए सिर्फ 5 रुपये अतिरिक्त चार्ज करते हैं।

मेरी डेयरी में लोगों का ताँता लगता है। हमारे अच्छी गुणवत्ता वाले दूध के कारण, मांग अक्सर आपूर्ति से ज्यादा हो जाती है।

हम पनीर और दही जैसे दुग्ध उत्पाद भी बेचते हैं।

अभी मेरे स्टाफ में 27 सदस्य हैं। उनमें से अठारह महिलाएं हैं, क्योंकि मैं महिला सशक्तिकरण में विश्वास करती हूँ। मेरे पास युवा लड़कियां हैं, जो घर-घर डिलीवरी के लिए जाती हैं।

हमारे स्टाफ के सदस्य हमारे द्वारा दिए गए मकानों में अपने परिवारों के साथ रहते हैं।

मुझे अपने व्यवसाय पर गर्व है, क्योंकि मैं अपने डेयरी से कमाए गए पैसों से अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने में कामयाब रही।

मेरे बच्चे अब अच्छा स्वतंत्र जीवन जी रहे हैं और कॉरपोरेट नौकरी कर रहे हैं। मेरी बड़ी बेटी यूएसए में रहती है।

मैं अपने स्टाफ के बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करना चाहती हूँ, ताकि उनके अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद हो सके। मैंने सफलता हासिल कर ली है और अब मैं चाहती हूँ कि वे भी सफल हों।

रिपोर्ट और फोटो कोलकाता स्थित पत्रकार गुरविंदर सिंह द्वारा।