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“मुझसे बदला लेने के लिए उन्होंने मेरे पति को मार डाला”

जहरीली शराब के खिलाफ लड़ाई में अपने पति को खोने के बावजूद, अपने चारों ओर शराब के कारण होने वाली घरेलू हिंसा को देखते हुए, मालती सिंह अवैध शराब बनाने वाली इकाइयों को नष्ट कर रही हैं।

पूर्बी सिंघभूम, झारखण्ड

मेरे पति अमूल्य सिंह की हत्या कर दी गयी। 

मुझसे बदला लेने के लिए। 

क्योंकि मैंने अपने गांव में अवैध शराब इकाइयों के खिलाफ आवाज उठाई थी। 

और आप जानते हैं कि मैंने ऐसा क्यों किया? क्योंकि अवैध शराब बनाने वाली दस इकाइयां एक खतरा थी। वे न केवल पुरुषों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे थे, बल्कि परिवारों में घरेलू हिंसा को भी बढ़ावा दे रहे थे।

मुझे बचपन से ही शराब से नफरत है। मेरे चाचा दाइगोट्टू गांव में अवैध शराब इकाई चलाते थे। मेरे पिता उनके नियमित ग्राहक थे और अक्सर शराब पीकर घर लौटते थे और झगड़ा करते थे।

जब मैं 10 साल की थी, मैंने एक सार्वजनिक टेलीफोन बूथ से पुलिस स्टेशन में फोन किया और उन्हें अपने चाचा की शराब इकाई के बारे में बताया। कुछ ही मिनटों में पुलिसकर्मी पहुंच गए और जहरीली शराब इकाई को नष्ट कर दिया। मेरे चाचा बहुत गुस्सा हुए और उन्होंने मुझे डांटा। मैंने परवाह नहीं की। इस घटना ने मुझे ऐसी बुराइयों से लड़ने का आत्मविश्वास दिया।

आठवीं कक्षा के बाद, हमारे बेहद गरीब होने के कारण मुझे स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।

वर्ष 2008 में सिर्फ 15 साल की उम्र में मेरा विवाह हो गया। मैं सुनहरे सपने लिए अपने घर से लगभग 45 किलोमीटर दूर, तिरिल्डीह गांव में अपने पति के घर गई।

मुझे यह देखकर धक्का लगा कि मेरे पति और मेरी सास भी शराबी थे।

इससे अक्सर झगड़े होने लगे। मैंने देखा कि अन्य महिलाओं को भी इसी तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था, क्योंकि आदिवासी समुदाय में शराब की खपत ज्यादा है।

समस्या का जड़ गाँव में जहरीली शराब बनाने वाली इकाइयाँ थीं, जो हर गुजरते दिन के साथ फल-फूल रही थीं।

मुझे समझ में आया कि परिवारों में होने वाली हिंसा को रोकने और पुरुषों को शराब पीने से रोकने का एकमात्र तरीका इन इकाइयों को नष्ट करना था।

जब मैंने जहरीली शराब इकाइयों के खिलाफ अभियान चलाने का फैसला किया, तो स्वाभाविक रूप से मुझे अपने पति और सास के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा।

इस बीच, मैंने अपने परिवार को बताए बिना पढ़ाई की और 2016 में दसवीं कक्षा पास की।

पढ़ाई ने मुझे जहरीली शराब के खतरे को रोकने के लिए और अधिक मजबूत बना दिया।

मैंने गांव की अन्य महिलाओं से इस समस्या पर चर्चा की और उन्होंने मेरा समर्थन किया। हमने मीटिंगें आयोजित की, रैलियां निकाली और प्रशासन से जहरीली शराब इकाइयों को नष्ट करने का अनुरोध किया।

लेकिन हमारी लगातार कोशिशों के बावजूद कुछ नहीं हुआ। 

वर्ष 2017 में हमने मामलों को अपने हाथों में लेने का फैसला किया और हमने दस अवैध शराब इकाइयों को तोड़ दिया।

इससे जहरीली शराब इकाई के मालिक नाराज हो गए और उन्होंने मुझसे बदला लेने का फैसला किया।

मुझे आज भी वह दिन याद है, जब उन्होंने मेरे पति को शादी की पार्टी में बुलाया और उन्हें शराब में जहर मिलाकर पिला दिया।

वह गांव की एक सुनसान जगह पर बेहोशी की हालत में पाए गए। हम उन्हें अस्पताल ले गए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

उनका देहांत हुए चार साल हो गए हैं। लेकिन उनकी मौत के जिम्मेदार लोगों को अभी तक सज़ा नहीं मिली है। मेरे द्वारा पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बाद, तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन उनमें से दो को जमानत मिल गई।

अब मैं अपनी तीन छोटी बेटियों और सास वाले परिवार की कमाने वाली अकेली सदस्य हूँ। अपने बेटे को खोने के बाद, मेरी सास ने शराब पीना बंद कर दिया।

अपना परिवार चलाने के लिए मैं अपने खेत पर सब्जियाँ उगाती हूँ।

लेकिन मेरी लड़ाई ने दूसरे गांवों की महिलाओं को भी ऐसे ही अभियान चलाने के लिए प्रेरित किया है। 2019 में टाटा स्टील फाउंडेशन ने मेरी बहादुरी के लिए मुझे ‘भानुमती नीलकंठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया।

अपने पति को खोने के बावजूद, मैं संतुष्ट हूँ कि मेरी लड़ाई का नतीजा निकला। एक भी जहरीली शराब इकाई का कारोबार दोबारा शुरू नहीं हो पाया है।

फोटो – गुरविंदर सिंह और मालती सिंह के सौजन्य से।

गुरविंदर सिंह कोलकाता स्थित एक पत्रकार हैं।