ओडिशा के ग्रामीणों का लाल चींटी से संघर्ष
अपने डंक से चकत्ते और सूजन करने वाले, लाल अग्नि चींटी रुपी ‘दुश्मनों’ के सैलाब से लड़ने के लिए, ओडिशा के एक गांव के निवासियों को रासायनिक छिड़काव के द्वारा लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
अपने डंक से चकत्ते और सूजन करने वाले, लाल अग्नि चींटी रुपी ‘दुश्मनों’ के सैलाब से लड़ने के लिए, ओडिशा के एक गांव के निवासियों को रासायनिक छिड़काव के द्वारा लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
स्नेहलता दास को हमेशा अपने गांव, ब्राह्मणशाही का निर्मल और शांत वातावरण पसंद रहा है। चार दशक पहले विवाह के बाद से, 75 वर्षीय विधवा ने अपने गांव से बाहर कभी कदम नहीं रखा था।
लेकिन अगस्त के मध्य में, उन्हें अपना ब्राह्मणशाही छोड़कर, अपनी विवाहित बेटी के घर भागना पड़ा। यह सब कुछ छोटी लाल चींटियों के कारण।
यह किसी फिल्म के दृश्य की तरह लग सकता है, लेकिन ओडिशा के दूरदराज के गांव में रहने वाले 18 परिवारों के 70 लोगों को लाखों लाल चींटियों के कारण बुरे वक्त का सामना करना पड़ रहा है, जिन्होंने उनके गांव पर हमला कर दिया है।
ऐसा लगता है कि तेज़ गति से चलने वाली चींटियों ने पुरी जिले के पिपीली ब्लॉक के ब्राह्मणशाही को अपना घर बना लिया है, और ग्रामीणों के घरों के हर कोने में घुस गई हैं।
हमला अगस्त के मध्य में भारी बारिश के बाद शुरू हुआ।
स्नेहलता दास कहती हैं – “हम बरसों से इस गांव में रह रहे हैं और पहले कभी इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ा।” उन्होंने अपने पैरों में चींटियों के काटने से हुए काले घाव दिखाते हुए कहा – “अपने पति की मृत्यु के बाद मैं अकेली रहती हूँ और इस गाँव में हम एक परिवार की तरह रहते हैं। लेकिन लाल चींटियों के हमले ने हमारे जीवन को दयनीय बना दिया है।”
एक ही समुदाय और उपनाम वाले निवासियों का यह पूरा गांव चींटी सेना के हमले से घबरा गया था।
वे बिस्तरों पर, फर्श पर, सब्जियों और पानी के बर्तनों के अंदर थे। हम खाना भी नहीं बना पा रहे थे या पानी भी नहीं पी सकते थे।
नयना दास, एक गृहिणी
अपनी बेटी के घर से अभी अभी लौटी स्नेहलता दास ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “वे अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को नष्ट करने के लिए तैयार, एक बड़ी सेना की तरह मार्च करती हुई आई।”
चींटियों ने गाँव पर कब्ज़ा कर लिया। एक गृहिणी नयना दास कहती हैं – “वे बिस्तरों पर, फर्श पर, सब्जियों और पानी के बर्तनों के अंदर थे। हम खाना भी नहीं बना पाते थे या पानी भी नहीं पी सकते थे। शायद चींटियाँ हमसे नाराज़ थीं, क्योंकि हम सभी को काटा जा रहा था।”
उन्होंने विलेज स्क्वेयर को बताया – “हालात इतने खराब थे कि हमें घर के अंदर रहते हुए भी पॉलिथीन शीट पहननी पड़ती थी।”
मैंने अपने चिकित्सा कार्यकाल में ऐसे मामले शायद ही कभी देखे हों पांडा
पांडा
गांव में पैदा हुए देवेंद्र नाथ (68) अब भी इस बात से सदमे में हैं कि उनके जीवन में पहली बार चींटियों का ऐसा हमला हुआ है।
वह कहते हैं – “हमने अपने बिस्तरों के आसपास कीड़ों से बचाने वाली दवाओं का इस्तेमाल किया और रात में अपने शरीर पर हर्बल तेल लगाया। लेकिन फिर भी हम सो नहीं सके। उन्होंने नींद में भी हमें परेशान किया।”
स्नेहलता दास की तरह, कुछ परिवार चींटियों के काटने और उसके कारण होने वाले चकत्तों से बचने के लिए गाँव से भाग गए।
स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि बड़ी संख्या में चींटियों द्वारा काटे गए आने वाले लोगों से वे भी हैरान थे।
एक स्थानीय सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी, बिनय कुमार पांडा कहते हैं – “हमें यहां ऐसे मामले मुश्किल से ही मिलते हैं, क्योंकि ज्यादातर मामले सांप के काटने के होते हैं। त्वचा में सूजन और चकत्ते इसलिए बनते हैं, क्योंकि चींटियाँ फॉर्मिक एसिड छोड़ती हैं। हमने ग्रामीणों को दवाएँ दे दी।”
पांडा ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “मैंने अपने मेडिकल कार्यकाल में शायद ही कभी ऐसे मामले देखे हों।”
प्रशासनिक अधिकारियों ने स्वीकार किया कि बड़ी संख्या में चींटियों की मौजूदगी के कारण वे भी हैरान थे।
पिपीली ब्लॉक की खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) रश्मिता नाथ ने कहा – “वेक्टर-जनित (बैक्टीरिया, परजीवी, वायरस आदि से पैदा होने वाली) बीमारियों के लिए आमतौर पर हम रसायनों का छिड़काव करते हैं, लेकिन हमने चींटियों का ऐसा हमला कभी नहीं देखा है।”
क्योंकि ग्रामीणों को पता था कि वे लाल चींटियों के संक्रमण को नियंत्रित नहीं कर सकते, उन्होंने स्थानीय प्रशासन को सूचित किया, जो उनके बचाव के लिए आगे आए।
यह स्वीकार करते हुए कि वे समस्या की भयावहता से स्तब्ध थे, नाथ ने कहा कि उन्हें रसायनों के छिड़काव के लिए एक निजी एजेंसी को लगाना पड़ा, हालांकि यह महंगा था।
हालांकि अधिकारियों द्वारा रसायनों के छिड़काव के बाद समस्या कम हो गई है, लेकिन लाल चींटियों को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सका है।
कुछ स्थानों पर रसायनों के अवशेष और छाल के नीचे लाल चींटियों को दिखाते हुए, एक स्थानीय आशा कार्यकर्ता सबिता दास कहती हैं – “उन्होंने रसायनों का छिड़काव किया, लेकिन घरों के पीछे नहीं। अब भी पेड़ों की छाल और झाड़ियों में लाल चींटियाँ बड़ी संख्या में देखी जाती हैं।”
गांव का दौरा करने वाले एक वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना था कि यदि रानी लाल चींटी को पकड़कर नहीं मारा गया, तो स्थिति फिर से खराब हो सकती है।
ओडिशा यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी (OUAT) के वरिष्ठ वैज्ञानिक, संजय कुमार मोहंती कहते हैं – “रानी चींटी 65 साल तक जीवित रह सकती है और रोज 800 अंडे देने की क्षमता रखती है। वे अपनी स्वयं की कॉलोनियां बनाते हैं। उसे तुरंत पकड़कर मारना होगा, अन्यथा चींटियों की आबादी बढ़ती रहेगी।”
उन्होंने कहा कि गलती ग्रामीणों की भी है, क्योंकि गांव हरियाली से घिरा हुआ है और चाय की छाल व झाड़ियां गिरी हुई हैं, जिन्हें हटाया नहीं गया है।
मोहंती ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “ऐसे ठंडे स्थान चींटियों के लिए एक आदर्श आवास हैं। ग्रामवासियों को घर के परिसर को साफ-सुथरा रखना चाहिए। कुछ लोगों ने चींटियों के संक्रमण के लिए स्थानीय नहर के स्तर में बढ़ोत्तरी को जिम्मेदार ठहराया, लेकिन यह सच नहीं है।”
चींटियों के प्रकोप के चरम के समय गांव छोड़ने वाले परिवार वापस लौट आए हैं।
लेकिन हर कोई अब भी चिंतित है और उनकी रातों की नींद हराम है। क्योंकि अधिकारियों द्वारा छिड़का गया रसायन बारिश में धुल रहा है, इसलिए ग्रामीण चिंतित हैं कि चींटियाँ वापस आएँगी और अपना हमला फिर से शुरू कर देंगी।
नाथ कहते हैं – “हम हालात पर कड़ी नजर रख रहे हुए हैं। यदि हालात नियंत्रण से बाहर हुए, तो हम रसायनों का छिड़काव करेंगे।”
उनका कहना था कि ग्रामीणों को अपने स्थान को साफ-सुथरा रखना चाहिए।
इस बीच, ग्रामीण यह सुनिश्चित करने के लिए बेताबी से कोशिश कर रहे हैं कि रानी चींटी को मारा जाए, ताकि स्थिति सामान्य हो जाए और उन्हें लाल चींटियों की वापसी के बारे में चिंता करने की ज़रूरत न हो।
लेख की मुख्य फोटो में लाल अग्नि चींटियों को दिखाया गया है, जिन्होंने ओडिशा के ब्राह्मणशाही गांव में कहर बरपाया, जिससे कुछ लोगों को वहां से भागना पड़ा (फोटो – शम्मी knr, ‘पिक्साबे’ से साभार)
गुरविंदर सिंह कोलकाता स्थित पत्रकार हैं।
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