ग्रामीण सोशल मीडिया सितारों ने प्रस्तुत किया देहाती आकर्षण
महामारी में ग्रामीण अपने देहाती जीवन के वीडियो पोस्ट करने के लिए प्रेरित हुए और सोशल मीडिया सितारे बन गए। अपने तरीके से, वे ग्रामीण-शहरी विभाजन को पाट रहे हैं।
महामारी में ग्रामीण अपने देहाती जीवन के वीडियो पोस्ट करने के लिए प्रेरित हुए और सोशल मीडिया सितारे बन गए। अपने तरीके से, वे ग्रामीण-शहरी विभाजन को पाट रहे हैं।
कौन सोच सकता था कि जंगल से लाई गई सब्जियों और मशरूम के भोजन का आनंद लेते एक ग्रामीण परिवार की तस्वीरें देखने वाले लाखों लोगों को मंत्रमुग्ध कर देंगी?
लेकिन महामारी में ग्रामीण जीवन के आकर्षण को दर्शाते, बिना एडिट किए स्वाभाविक वीडियो ने दर्शकों को मोह लिया है। इससे वे लोग न केवल सोशल मीडिया हस्ती, बल्कि ग्रामीण भारत के राजदूत में भी बदल गए हैं।
अपने पारिवारिक जीवन को गहराई से दिखाता एक दिहाड़ी मजदूर, रूढ़ियों को तोड़ती एक युवा ग्रामीण महिला और एक ग्रामीण रैप गायक ओडिशा के सोशल मीडिया सितारों में से हैं।
उनके पोस्ट, ठाठपूर्ण फैशन के रुझान और शहरी व्यंजनों की एकरसता को तोड़ते हैं। इसलिए यह हैरानी की बात नहीं है कि उनकी सरल और देहाती सामग्री के दर्शक बढ़ रहे हैं।
भोजन की खोज और ग्रामीण व्यंजनों का प्रदर्शन
लॉकडाउन में जब इसाक मुंडा के बच्चे मोबाइल फोन पर कार्टून देख रहे थे, तो ओडिशा के संबलपुर जिले के दिहाड़ी मजदूर ने यूट्यूब पर पैसे कमाने के बारे में एक वीडियो देखा। उत्सुकतावश उन्होंने इस विषय पर और खोज की और जल्द ही अपना चैनल ‘इसाक मुंडा ईटिंग’ शुरू किया।
आज मुंडा के चैनल के 70 देशों के 8.4 लाख से ज्यादा ग्राहक हैं। कभी गुजारे के लिए संघर्ष कर रहे मुंडा अब कम से कम 60,000 रुपये महीना कमाते हैं। इस नई आमदनी से उन्होंने कई नए घरेलू सामान और ढुलाई का एक वाहन खरीदा है।
सातवीं कक्षा तक पढ़े मुंडा कहते हैं – “मेरे वीडियो की सादगी लोगों को आकर्षित करती है। मैं उनमें सच बताता हूँ या तथ्य प्रस्तुत करता हूं, जो गुण मेरे माता-पिता ने मुझे सिखाया था। इसलिए दर्शकों को पता है कि मेरे वीडियो असली हैं और सिर्फ ग्राहक जुटाने के लिए नहीं हैं।”
पारम्परिक खाना पकाने के साथ-साथ, उनके वीडियो व्यंजनों, पारिवारिक भोजन और ग्रामीण जीवन शैली के बारे में हैं। यहाँ तक कि इस साल जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी संस्कृति और खान-पान के मेल के लिए मुंडा की तारीफ की थी।
एक साहसी ग्रामीण महिला ने तोड़े भ्रम
किफायती इंटरनेट सुविधाएं दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में प्रवेश कर रही हैं, जिससे सोशल मीडिया शहरी-ग्रामीण विभाजन को कम कर सका है।
ओडिशा के जाजपुर जिले की 26-वर्षीय मोनालिसा भद्रा कई तरह की सामग्री प्रस्तुत कर रही हैं। अपने सिर पर पल्लू लिए, एक साड़ी में लिपटी, वह लंगूर बंदरों को खाना खिलाती हैं, घोड़े की सवारी करती हैं, एक बस और एक भारी, गियर वाली मोटरसाइकिल चलाती हैं।
उनके पति, बद्री भद्रा, की विज़ुअल मीडिया की पृष्ठभूमि है और इसलिए वह अपना यूट्यूब चैनल ‘बद्री नारायण भद्रा’ चलाते हैं। हालाँकि मोनालिसा ने 2016 में शुरुआत कर दी थी, लेकिन चैनल के माध्यम से उन्हें महामारी के समय ही सुर्खियों में लाया गया।
वह कहती हैं – “यह एक गलत धारणा है कि ग्रामीण महिलाएं पिछड़ी हुई हैं। अपने तरीके से, मैं दिखाना चाहती थी कि महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं। वीडियो मेरे रोजमर्रा के जीवन को वैसा ही दिखाते हैं जैसा वह है। साड़ी भारतीय संस्कृति का हिस्सा है और यह मेरे काम में बाधक नहीं है।”
उनके पति का कहना है कि हालाँकि बहुत से लोगों ने उनके यूट्यूब चैनल शुरू करने पर आपत्ति नहीं जताई, लेकिन उन्हें संदेह था। यहां तक कि उन्हें खुद यकीन नहीं था कि वह बड़ी संख्या में दर्शकों तक पहुंचेंगी, लोकप्रिय की तो बात ही दूर।
बद्री भद्रा कहते हैं – “मैंने नहीं सोचा था कि वह एक सनसनी बन जाएगी, लेकिन मुझे खुशी है कि ऐसा हुआ। उनके आवारा जानवरों को खाना खिलाने के वीडियो ने दूसरों को भी इसी तरह की पहल करने के लिए प्रेरित किया है।”
25.9 लाख से ज्यादा ग्राहकों के साथ, उनका चैनल कई लाख रुपये महीना कमाता है। दंपति ने अपनी कमाई का कुछ हिस्सा स्थानीय पशु चिकित्सालय बनाने के लिए अलग रखने का फैसला किया है।
दुलेश्वर टांडी उर्फ ”दुले रैपर” को एक दोस्त से पता चला कि वह अपने स्कूल के दिनों से जो गीत लिख और गा रहे थे, वह रैप शैली के हैं। इसलिए उन्होंने अपने खुद के काम में सुधार के लिए, भारत के लोकप्रिय कलाकारों को सुना।
स्नातक तक की पढ़ाई के बाद नौकरी पाने में असमर्थ, वह पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ पलायन कर गए और एक भोजनालय में काम करने लगे। महामारी में उचित नौकरी न मिलने की निराशा उनके लेखन में दिखाई पड़ती है। उनकी सामग्री महिलाओं और प्रकृति के बारे में गीतों से बदल कर बेरोजगारी और दूसरी अंदरूनी संघर्षों से जुड़े, उनके दिल से महसूस किए गुस्से की प्रस्तुति में बदल गई।
टांडी कहते हैं – “पहले लॉकडाउन की सरकार द्वारा घोषणा किए जाने पर, प्रवासियों की कठिनाइयों से नाराज होकर मैंने उनकी दुर्दशा के बारे में कुछ पंक्तियाँ लिखीं, उन्हें अपने मोबाइल पर रिकॉर्ड किया और फेसबुक पर पोस्ट कर दी। यह वायरल हो गया। मैं बहुत खुश था। इसलिए मैंने और लिखा।”
सोशल मीडिया से अच्छी तरह वाकिफ न होने के कारण, उन्होंने दोस्तों की मदद से कई प्लेटफॉर्मों पर अकाउंट बनाए। वह कुछ ही समय में लोकप्रिय हो गए।
प्रसिद्धि के दूसरे पहलू से सामना
जहां सफलता की ज्यादातर कहानियों ने ग्रामीण युवाओं को महामारी के अनिश्चित समय से निपटने में मदद की है, वहीं प्रसिद्धि के बदसूरत पक्ष से पार निकलना सहज नहीं रहा है।
प्रवासियों के बारे में रैप गायन करते हुए टांडी जब रातोंरात सनसनी बने, तो मीडिया ने उनकी कहानी पर प्रकाश डाला। उन्हें प्रसिद्ध संगीत निर्देशकों और बड़ी एजेंसियों से सहयोग के लिए प्रस्ताव मिले, लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किए।
उनका कहना है – “शुरू में, मैं अपनी मूल शैली पर टिका रहना चाहता था। हालांकि मुझे पैसा मिला, लेकिन मैंने कोई प्रस्ताव मुश्किल से ही लिया। वह एक बहुत बड़ी भूल थी। अब मेरा सारा पैसा खत्म हो गया है और दोबारा संघर्ष कर रहा हूं। मेरी तरह के रैप को लेने वाले बहुत कम हैं।”
उनका संकट और बढ़ गया, जब उनके यूट्यूब चैनल को ‘हैक’ कर लिया गया और कमाई के लिए होने प्रचार विज्ञापनों को रोक दिया गया।
मुंडा को एक अलग ही चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उनके नाम पर कई फर्जी प्रोफाइलों से जनता से आर्थिक मदद मांगी गई है।
मुंडा कहते हैं – “मैंने दर्शकों को इस तरह के फर्जी प्रोफाइल को नजरअंदाज करने की जानकारी दी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग मेरे नाम का इस्तेमाल करके आसान तरीके से धन कमाने की कोशिश करते हैं।”
टांडी का कहना है कि सोशल मीडिया में आने वाले लोगों को पहले यह समझने की जरूरत है कि यह काम कैसे करता है और इसके संभावित नुकसान क्या हो सकते हैं।
वह कहते हैं – “सोशल मीडिया बहुत चुनौतीपूर्ण स्थान है। इसमें शामिल होने वाले किसी भी व्यक्ति को पहले इसे समझना चाहिए या उसे सिखाया जाना चाहिए कि इसे कैसे संभालना है।”
फिर भी, इन कमियों ने सोशल मीडिया के इन सितारों के उत्साह को कम नहीं किया है और वे ग्रामीण और शहरी दर्शकों को समान रूप से संवाद और मनोरंजन करना जारी रखते हैं। कई मायनों में वे ग्रामीण भारत के नए राजदूत हैं, जिससे गांव और शहर के बीच की खाई को पाटने में मदद मिलती है।
तज़ीन कुरैशी भुवनेश्वर स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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