यह विलेज स्क्वायर की 2016 में शुरुआत से, 2021 में पुनः लॉन्च होने तक की जेंडर-संबंधित अंतर्दृष्टिपूर्ण कहानियों का एक संग्रह है। जेंडर से सम्बंधित हाल की कहानियों के लिए “उसका जीवन” अनुभाग देखें।
जेंडर
डोंगरिया कोंधों को लॉकडाउन के दौरान, करना पड़ रहा है वन उपज बेचने के लिए संघर्ष
लघु वनोपज की फसल का मौसम और लॉकडाउन एक ही समय होने के कारण, नियामगिरि पहाड़ियों के आदिवासियों को, जंगल पर आधारित अपनी आजीविकाओं को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
कोविड-19 के खिलाफ जंग में झारखंड की ढ़ाल बने सखी मंडल
आपदा की घड़ी में हर मोर्चे पर लोहा लेती झारखंड के सखी मंडल की महिलाएँ
लॉकडाउन दूरदराज के आदिवासी छात्रों की शैक्षणिक सीख को पलट देगा
दूरदराज के गांवों में रहने वाले पहली पीढ़ी के छात्रों के लिए, सरकार द्वारा कार्यान्वित लॉकडाउन के दौरान, घर पर रह कर पढ़ाई के लिए ऑनलाइन और सामुदायिक संसाधनों की कमी है। इस समय के नुकसान की भरपाई के लिए उन्हें दोबारा वही पढ़ाई करने की ज़रूरत होगी|
महामारी के बाद के विभिन्न उपाय कृषि-अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करेंगे
कृषि क्षेत्र कामगारों की कमी और आपूर्ति श्रृंखला में बाधाओं की चुनौतियों का सामना कर रहा है। सरकारी उपायों से कृषि अर्थव्यवस्था को स्थिर किया जा सकता है और खाद्य उत्पादन में लगे सभी लोगों को संभाला जा सकता है
जब सबसे वंचित लोगों ने साँझा किये, अपने सीमित से संसाधन!
खाद्य ज़रूरत को पूरा करने किचन गार्डन से जुड़ी एक सामूहिक पहल
बहु-आयामी पद्यति से होगा खस्ताहाल ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पुनरुत्थान
मिट्टी और जल संरक्षण पहल के अलावा, विभिन्न उपायों के द्वारा ग्रामीण उत्पादन व्यवस्था के लचीलेपन को बढ़ाना, ग्रामीण जनता को मजबूती से पांव जमाने में सहायक होगा
डिजाइनर सुनिश्चित कर रहे हैं कि हथकरघा बुनकरों का शारीरिक और आर्थिक स्वास्थ्य बना रहे
हैंडलूम कारीगरों के साथ काम करने वाले फैशन डिजाइनर सुनिश्चित करते हैं कि लॉकडाउन के दौरान काम की कमी के बावजूद उनकी आर्थिक जरूरतें पूरी हों, और साथ ही उनके संपर्क में रहकर उनका मनोबल ऊंचा रखते हैं
ओडिशा में स्वयंसेवक सुनिश्चित करते हैं, कि फंसे हुए प्रवासियों को भूखे न रहना पड़े
प्रवासी मुद्दों पर काम करने वाले सामाजिक सेवा कर्मी, बीच रास्ते फंसे ओडिया प्रवासियों और दूसरे राज्यों के ओडिशा में फंसे प्रवासियों के लिए भोजन की व्यवस्था सुनिश्चित करने हेतु, लोकहित में काम करने वालों, प्रशासकों और स्वयंसेवकों के साथ तालमेल कर रहे हैं
कोरोना वायरस से जुड़ी भ्रांतियों के कारण, हजारों छोटे महिला मुर्गीपालक किसानों को व्यवसाय में हुआ घाटा
मुर्गी का मांस खाने से कोरोना वायरस फैलने की अफवाह के चलते, उन दस हजार से अधिक आदिवासी और दलित छोटे मुर्गीपालक किसानों को अपनी मुर्गियों को मारने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जिन्होंने सफलतापूर्वक सहकारी उद्यमों का निर्माण करते हुए गरीबी से मुक्ति पाई थी