आजीविका

ग्रामीण भारत मूल गिग-इकोनॉमी (परियोजना आधारित अर्थव्यवस्था) के मजदूर का घर है। उद्यमी ग्रामीण, खेतों की जुताई से दुकान चलाने, रोज घर-घर जाकर सामान बेचने तक पहुँच जाते हैं। सूक्ष्म-उद्यमों, ग्रामीण स्टार्ट-अप और भारत के ग्रामीणों की बदलती आजीविकाओं के नवीनतम रुझानों के बारे में पढ़ें।

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“मैं जिंदगी के संघर्ष में हार नहीं मानना चाहती थी”

दूसरी बार लड़की को जन्म देने के कारण, 20 साल की उम्र में रामबाई दास को उनकी ससुराल के घर से निकाल दिया गया था। व्यक्तिगत नुकसान से दुखी होते हुए, वह दूसरों के तानों के बावजूद किसान बन गई। सफलता प्राप्त करके, अब वह अपनी बेटी के नर्स बनने का सपना देखती है।

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ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमी असफल क्यों होते हैं?

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ग्रामीण उद्यमिता के महत्व की चर्चा काफी समय से होती रही है, लेकिन ग्रामीण उद्यमी के सामने आने वाली बाधाओं और चुनौतियों को समझने और उस पर काम करने का शायद यह सही समय है।

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10 लाख प्रति हेक्टेयर!

खेत के अनुसार योजना, पोलीहॉउस, ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग विधि और सब्जी-फल मिश्रण के द्वारा 5 से 7 वर्षों में खेती से दस लाख रूपए प्रति हेक्टेयर आय संभव है। झारखण्ड में किए गए प्रयासों की सफलता दिखाती है, कि खेती से विमुख हो रहे युवाओं को वापिस लाना संभव है।

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किशोरों ने लॉकडाउन में बच्चों की पढ़ाई सुनिश्चित की

जब भारत 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने जा रहा है, हम उन बहुत से सामाजिक रूप से जागरूक ग्रामीण किशोरों के जज्बे से भरे काम पर प्रकाश डालते हैं, जिन्होंने महामारी के समय गाँव के बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना समय और ऊर्जा प्रदान की।

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कलेर डाबी – एक आदर्श ‘बदलाव दीदी’

कलेर डाबी ने बदलाव दीदी के रूप में, कल्याण योजनाओं का लाभ ग्रामीण वंचित वर्ग तक प्रभावी रूप से पहुंचा कर एक अनुकरणीय मिसाल स्थापित की है।

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देसी गुलाब लाया सफलता की मीठी सुगंध

अपनी तेज सुगंध और अनुष्ठानों एवं उत्सवों में उपयोग के लिए प्रसिद्ध "देसी गुलाब" की खेती और रचनात्मक बिक्री की बदौलत, महाराष्ट्र का कभी सूखाग्रस्त रहा गांव, आज "लखपतियों" से भरा हुआ है।

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निर्दयी नदी बनी कुम्हारों की आजीविका के लिए खतरा

माजुली द्वीप के कुम्हारों की 500 साल पुरानी विरासत खतरे में है, क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी धीरे-धीरे उनकी जमीन को निगल रही है। विडंबना यह है कि अगली पीढ़ी की कला में रुचि की कमी की तो बात ही क्या, कटाव रोकने के उपाय भी कुम्हारों के संकट को बढ़ा रहे हैं।

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धूप में सुखाई गई सब्जियां, कश्मीरी रसोई का पसंदीदा “स्वाद” हैं

कठोर सर्दियों में ताजा फसलों की कमी को पूरा करने के लिए, प्राचीन कश्मीरी रिवाज से धूप में सुखाई गर्मियों की सब्जियाँ अपने खास स्वाद और बार-बार सर्दियाँ जल्दी शुरू होने के कारण, अभी भी मांग में हैं।

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नक्सलियों के गढ़ में महिलाएँ सीताफल से आय कमा रही हैं

बस्तर के नक्सल-गढ़ में आदिवासी महिलाएं सीताफल उगाती हैं और उससे निकाले गूदे से भारत के शहरों और विदेशी बाजारों की बढ़ती मांग को पूरा करके, बढ़िया आय कमाती हैं।