उसका जीवन

उसका जीवन भारत के अप्रशंसित नायकों, असाधारण काम करने वाली सामान्य महिलाओं का मानक है।

ऑडियो, वीडियो, फोटो और टेक्स्ट का उपयोग करते हुए, महिलाएं ‘अपने जीवन’ की सफलताएं एवं आशाएं, और साथ ही अपनी असफलताएं एवं भय साझा करती हैं। यह उसका जीवन है – उसके अपने शब्दों में।

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“सोशल मीडिया सक्रियता ने मेरे जीवन को अर्थ दिया है”

सामाजिक रूप से जागरूक, चारुबाला उर्फ दीपा बारिक लोगों की समस्याओं के बारे में ट्वीट करती हैं, उन्हें ओडिशा सरकार के ध्यान में लाती हैं। वर्ष 2019 में चक्रवात से तबाह हुए एक दंपत्ति की बर्बादी को देख प्रेरित होने से अब तक, उनके ट्वीट्स ने 3,000 से ज्यादा लोगों की समस्याओं को हल करने में मदद की है। उनके काम के बारे में पढ़ें, उन्हीं के शब्दों में।

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“मैंने मिट्टी के बर्तनों को आकर्षक बनाने का फैसला किया”

जब कश्मीरी इंजीनियर साइमा शफी मीर ने अवसाद (डिप्रेशन) से निपटने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाना शुरू किया, तो उन्हें स्थानीय कुम्हारों की दुर्दशा के बारे में पता लगा, जो एक सदियों पुराने शिल्प बना रहे थे, जिसकी बहुत कम लोग परवाह करते हैं। इसलिए साइमा ने मिट्टी के बर्तनों को फिर से लोकप्रिय बनाने का फैसला किया। पढ़िए, उनका सफर उन्हीं के शब्दों में।

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“मुझे छोड़ दिए जाने का दर्द पता है”

एक बच्चे के रूप में छोड़ दिए जाने और एक अनाथालय में पली-बढ़ी, प्रकाश कौर अब ‘यूनिक होम’ चलाती हैं, जहां वह 70 परित्यक्त लड़कियों की मां हैं। उन्हें उनके काम के लिए पद्म श्री अवार्ड मिला। पेश है उनकी कहानी, उन्हीं के शब्दों में।

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“मैं जिंदगी के संघर्ष में हार नहीं मानना चाहती थी”

दूसरी बार लड़की को जन्म देने के कारण, 20 साल की उम्र में रामबाई दास को उनकी ससुराल के घर से निकाल दिया गया था। व्यक्तिगत नुकसान से दुखी होते हुए, वह दूसरों के तानों के बावजूद किसान बन गई। सफलता प्राप्त करके, अब वह अपनी बेटी के नर्स बनने का सपना देखती है।

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“मैंने लोगों का आशीर्वाद कमाने का फैसला किया”

यह एक जादुई, जीवन बदलने वाला क्षण था, जब एक अजनबी के प्रति उनके पति की उदारता और उनके बीमार बच्चे का इलाज़ एक ही समय पर हो गए। सपना उपाध्याय ने कैंसर से पीड़ित वंचित बच्चों की चिकित्सा जरूरतों को पूरा करने का फैसला किया और उनके परिवारों की सहायता के लिए आजीविका कार्यक्रम शुरू किया। यहां प्रस्तुत है उनके सफर की कहानी, उनकी जुबानी।

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पनीर बनाना – आशा की एक किरण

शकीला जफर को अपनी दो गायों का दूध बेचकर गुजारा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता था। जब उनके पति की बीमारी के कारण उनका दुख और बढ़ गया, तो पनीर आपूर्ति का एक ऑर्डर आशा की किरण बन गया, जो एक सफल पनीर बनाने के व्यवसाय में बदल गया है। प्रस्तुत है उसकी कहानी।

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“वॉशरूम के लिए गुहार लगाई, तो हमें अपमानित किया गया”

विजी पालिथोडी केरल के कोझीकोड की कार्यकर्ता बनी एक दर्जी हैं, जो कार्यस्थलों पर महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ रही हैं। विडंबना यह है कि उनके पिता द्वारा किए गए उत्पीड़न ने ही उनमें सक्रिय कार्यकर्ता की चिंगारी जलाई। प्रस्तुत है उनकी कहानी उन्हीं के शब्दों में।

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“मेरे शिष्य एक दिन ओलंपिक में खेलेंगे”

करुणा पूर्ति गरीबी और पूर्वाग्रह को हराकर राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी बनीं। अब वह उन लड़कियों को कोचिंग देती हैं, जिनकी आंखों में वही सपना है, जो उन्होंने कई साल पहले देखा था। झारखंड के खूंटी जिले की करुणा पूर्ति के सफर की कहानी उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत है।

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“मेरी बेटी ठंडी और निश्चल थी”

महामारी के दौरान, वाराणसी के बाहरी इलाके में रहने वाली शिंटू जब गर्भवती हुई, तो उसका वजन कम था और वह एनीमिक (खून की कमी) थी। क्योंकि उसके पति की नौकरी चली गई, इसलिए उसने ठीक से भोजन नहीं खाया और समय से पहले एक बच्चे को जन्म दिया, जिसकी पांच महीने बाद मृत्यु हो गई। पढ़िए, शिंटू की कहानी उन्हीं के शब्दों में।